सब ठीक है ! ( कविता)

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Feb, 2018 03:03 PM

all right  poem

देश की नय्या डोल रही है , अराजकता सर चढ़ के बोल रही है , महंगाई ने डाला गले में फंदा, भ्रष्टाचार ,काला बाजारी ,घुस खोरी , बईमानी...

देश की नय्या डोल रही है ,
अराजकता सर चढ़ के बोल रही है ,
महंगाई ने डाला गले में फंदा,
भ्रष्टाचार ,काला बाजारी ,घुस
खोरी ,
बईमानी फल फुल रही है।
जाति -वाद,क्षेत्र वाद।भाषा वाद
का शोर
है चारो ओर ,
एकता की आवाज़ कौन सुने !
बकती रहती है।
कोई बात नहीं !
सब ठीक है।
आतंक वाद की दहशत गर्दी ,
ह्त्या ,आगजनी ,गोली बारी, और
अपहरण
तो रोज़ की बात है ,
संसद भवन में नेतायों का
कुर्सियां तोडना ,
क्या नयी बात है?
और कुछ नहीं हो रहा ,
कोई इन्कलाब नहीं आ रहा ,
मगर रोज़ नए नए वायेदे ,तश्तरी
में सजाकर
हमें मिलते हैं ,
क्या यह कोई कम बात है!
हर सुभह का अखबार है नयी
सुर्ख़ियों से भरा .
नए नए अपराधों से है यह सजा
हुआ।
इसे कहते हैं विभिनता में एकता
कहाँ देखोगे दुनिया वालो !
ऐसी मिसाल तुम !
वेह्शी ,दरिदे , भेडिये ,
बलात्कारी खुले और बेखौफ
घूमते है .
जब चाहे किसी भी नारी को ,
बहिन ,बहू ,बेटी और माँ को ,
बनाले अपना निशाना .
ऐसी आज़ादी और कहाँ !
भले ही हो जाये हर एक दामन तार
तार ,
मगर सब ठीक है।
डोल रही है देश की नय्या ,
मगर डूबी तो नहीं ना !
चल रहा है राम भरोसे ,
सब ठीक है।

ओनिका सेतिया ''अनु'
 

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