सामान्य भारतीय जन के प्रतीक हैं- शिव

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Feb, 2018 12:05 PM

common indian people are symbols of shiva

त्याग और तपस्या के प्रतिरुप भगवान शिव लोक-कल्याण के अधिष्ठाता देवता हैं। वे संसार की समस्त विलासिताओं और ऐश्वर्य प्रदर्शन की प्रवृत्तियों से दूर हैं। सर्वशक्ति सम्पन्न होकर भी अहंकार से मुक्त रह पाने का आत्मसंयम उन्हें देवाधिदेव महादेव - पद प्रदान...

त्याग और तपस्या के प्रतिरुप भगवान शिव लोक-कल्याण के अधिष्ठाता देवता हैं। वे संसार की समस्त विलासिताओं और ऐश्वर्य प्रदर्शन की प्रवृत्तियों से दूर हैं। सर्वशक्ति सम्पन्न होकर भी अहंकार से मुक्त रह पाने का आत्मसंयम उन्हें देवाधिदेव महादेव - पद प्रदान करता है। शास्त्रों में शिव को तमोगुण का देवता कहा गया है, किन्तु उनका पुराण-वर्णित कृतित्व उन्हें सतोगुणी और कल्याणकारी देवता के रूप में प्रतिष्ठित करता है। सृष्टि की रचना त्रिगुणमयी है। सत, रज और तम -- इन तीनों गुणों के तीन अधिष्ठाता देवता हैं -- ब्रह्मा, विष्णु और शिव। ब्रह्मा सतोगुण से सृष्टि रचते हैं, विष्णु रजोगुण से उसका पालन करते हैं और शिव तमोगुण से संहार करते हैं। यह रेखांकनीय है कि शिव जगत के लिए कष्ट देने वाली अशिव शक्तियों का ही संहार करते हैं; उनका रौद्ररूप सृष्टि-पीड़क दुश्शक्तियों के लिए ही विनाशकारी है। अन्यत्र तो वे साधु-सन्तों और भक्तों के लिए आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले) और अवढरदानी ही हैं। उनसे बड़ा तपस्वी-वीतरागी देवता दूसरा नहीं है। शिव सामान्य जन के प्रतीक हैं। न्यूनतम आवश्यकताओं में निर्वाह करने वाले; संग्रह की प्रवृत्ति से मुक्त और दूसरों के लिए सहर्ष सर्वस्व अर्पित करने वाले; स्वयं अभावों का हलाहल पान कर संसार को आहार का अमृत प्रदान करने वाले कृषक की भाँति संतोषी देवता हैं शिव तथा सादाजीवन उच्चविचार का मूर्तिमान आदर्श हैं शिव। कृषि-प्रधान भारतवर्ष की निर्धन जनता के जीवन और कर्म से भगवान शिव के व्यक्तित्व और कृतित्व का अद्भुत साम्य है। वृषभ कृषक का सर्वाधिक सहयोगी-सहचर प्राणी है और वही भगवान शिव का भी वाहन है। जिस प्रकार कृषक द्वारा उत्पादित अन्न से सज्जन-दुर्जन सभी का समान रूप से पोषण होता है उसी प्रकार शिव की कृपा सुर-असुर सभी पर बिना भेदभाव के समान रूप से बरसती है। खेत-खलिहान में कार्य करने वाला कृषक सर्प आदि विषैले जीवनजन्तुओं के सम्पर्क में रहता है और गिरि-वन- वासी शिव भी नागों के आभरण धारण करते हैं। अन्याय, अत्याचार और स्वाभिमान पर प्रहार पाकर सदा शान्त रहने वाला सहनशील कृषक उग्र रूप धारण कर मर मिटने को तैयार हो जाता है और इन्हीं विषम स्थितियों में शिव का भी तृतीय नेत्र खुलता है; तांडव होता है तथा अमंगलकारी शक्तियाँ समाप्त होती हैं। सामान्य भारतीय कृषक-जीवन के इस साम्य के कारण ही शिव भारतवर्ष में सर्वत्र पूजित हैं। उनकी प्रतिष्ठा भव्यमन्दिरों से अधिक पीपल और वटवृक्षों की छाया में मिलती है क्योंकि भारत के मजदूर किसान भी महलों में नहीं तृणकुटीरों और वृक्षों की छाँह में ही अधिक आश्रय पाते हैं। सच्चे अथों में शिव सामान्य भारतीय जन के प्रतीक हैं और इसीलिए सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।

 

डाॅ. कृष्णगोपाल मिश्र
 

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