तिरंगा और कवि (कविता)

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Mar, 2018 10:53 AM

tricolor and poet poetry

तिरंगा बोला कवि से ,ऐ मेरे दोस्त ! कुछ मेरा हाल -ऐ-दिल भी सुन ले . तेरे एहसासों में दर्द है सारी कुदरत का,अब ज़रा मेरे दर्द का भी एहसास कर ले . क्या कहूँ तुझसे मैं अपना अफसाना , ग़मों से बोझिल हूँ ,तुझे सब ज्ञात है . शहीदों के पवित्र शवों से लपेटा...

तिरंगा बोला कवि से ,ऐ मेरे दोस्त !
कुछ मेरा हाल -ऐ-दिल भी सुन ले .
तेरे एहसासों में दर्द है सारी कुदरत का,
अब ज़रा मेरे दर्द का भी एहसास कर ले .
क्या कहूँ तुझसे मैं अपना अफसाना ,
ग़मों से बोझिल हूँ ,तुझे सब ज्ञात है .
शहीदों के पवित्र शवों से लपेटा जाता था ,
अब हो रहा मेरा दुरूपयोग ,यह औकात है!
नहीं जनता मैं ,के क्यों इस तरह ,
मेरा गौरव ,मेरा सम्मान घट गया ?
इन २१ वीं सदी के आधुनिक लोगोंके ,
दुर्व्यवहार से मेरा कलेजा फट गया .
मैने तो नहीं की कोई खता ,मेरे दोस्त !
खताएं तो इंसान ही करता है.न !
देश से गद्दारी करने ,देश के खिलाफ बोलने ,
का महा -अपराध भी इंसान ही करता है न !
१०० वर्ष की गुलामी के पश्चात् गोरो से,
मेरे देश को अमर शहीदों ने मुक्त करवाया .
मुझे थामकर हाथों में ,बड़ी बहादुरी से,
मेरे प्यारों ने आज़ादी का बिगुल बजाया
मै कोई मामूली ध्वज नहीं ,राष्ट्रीय ध्वज हूँ,
मुझे मेरे गौरव का एहसास महावीरों ने
दिलवाया .
मैं हूँ राष्ट्र की एकता,अखंडता और
स्वायत्ता का प्रतीक ,
मेरे साये तले मुझे जवानों और किसानो
ने शीश झुकाया.
मुझे हाथों में थामकर होता है मन मैं
शक्ति का संचार,
ऐसा अपने विषय में अब तक मैं सुनता
आया हूँ,
युद्ध मैं दुश्मनों को चित करने हेतु,
होंसला मुझसे मिला ,
मैं देश और देशवासियों का स्वाबिमान हूँ.
मेरे तीनो रंग है कत्था, सफ़ेद और हरा ,
इन सब की अपनी महत्ता है.अशोक चक्रहै
वीरता का,
मेरे प्यारों का बलिदान, मेरे देश की
शांति प्रियता ,
और खुशहाली / सुख-समृधि का परिचायक है.
मगर अब देखो मेरी दशा मौजुदे वक़्त मैं,
क्या से क्या हो गयी है जानते हो तुम .
शहीदों के कफ़न से लिपटाया जाता था
कभी,
अब किसी हसीना के कफ़न से !! देख सकते हो तुम .
मेरा गर्व ,मेरा मान तो लोगों ने
नष्ट कर दिया,
बनाकर बच्चों के हाथों का प्लास्टिक
का खिलौना .
और कभीकिसी फ़िल्मी हस्ती /रजनीतिक हस्ती
के कफ़न से ,
जोड़ दिया ,मुझे अपने हाल पर आ रहा है
रोना,
कह दो इन देश वासियों से ,इन
राजनेताओं से ,
मैं राष्ट्रिय ध्वज हूँ ,कोई
मामूली चादर नहीं.
है मेरा दामन बस मात्रभूमि पर
बलिदानी वीर सैनिकों के लिए ,
मगर अफ़सोस! मेरे और वीर सैनिकों
वास्ते ,
तुम्हारे ह्रदय में क्यों कोई आदर
नहीं. मुझे एहसास है ऐ कवि ! के मेरे दर्द ने ,
तेरे एहसासों को ज़रूर कहीं छुआ है.
अब मेरा दर्द भरा पैगाम भी जन-जन-तक
पहुँचा दे ,
जो हाल-ऐ-दिल बयाँ मैने तेरे समक्ष
किया है.
सिर्फ मतलब से नहीं दोस्तों !
मुहोबत से मुझे सदा अपनाया कीजिये
मात्र राष्ट्रिय उत्सवों के दिन
ही नहीं,
निशदिन मुझे अपना सम्मान और प्यार
दीजिये.
है एक देशवासी का कर्तव्य यही ,
वक़्त आये तो अपना तन-मन-धन कुर्बान
करना .
अपने राष्ट्र के संविधान का आदर
से पालन करना,
और अपने राष्ट्र -ध्वज, राष्ट्र

 


गीत ,राष्ट्र प्रतीक

ओनिका सेतिया ''अनु''
 

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