Edited By ,Updated: 17 Jan, 2017 12:06 AM
हमारे देश में आयोजित धार्मिक उत्सवों और समारोहों में पुरातन काल से ही लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते आ रहे हैं।
हमारे देश में आयोजित धार्मिक उत्सवों और समारोहों में पुरातन काल से ही लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते आ रहे हैं। अब जहां आवागमन के साधनों व आबादी बढऩे से इनमें भीड़ बढ़ गई है, वहीं लोगों के पास समय भी बहुत कम रह जाने से जल्दी लौटने की आपाधापी में तीर्थस्थलों पर भगदड़ मचने से बड़ी संख्या में मौतें होने लगी हैं।
एक दशक में ऐसी भगदड़ों में 1000 से अधिक श्रद्धालु मर चुके हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है और पिछले मात्र 2 दिनों में 2 राज्यों में 2 अत्यंत दुखद दुर्घटनाएं घटित हो गई हैं।
पहली दुर्घटना मकर संक्रांति पर 14 जनवरी शाम सारण जिले में बिहार सरकार द्वारा आयोजित ‘पतंग उत्सव’ में हुई जब जिले के सबलपुर दियारा से पटना के गांधी घाट जाने वाले स्टीमर में सवार होने जा रहे लोगों से भरी निजी नाव के उलट जाने से उसमें सवार 24 लोगों की मृत्यु हो गई। बताया जाता है कि 25 लोगों की क्षमता वाली नाव में 50 लोग सवार थे।
अगले ही दिन 15 जनवरी को भी शाम के साढ़े 5 बजे के लगभग बंगाल में दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित सागर द्वीप में भगदड़ मचने से 9 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और इसमें अनेक लोग घायल हो गए।
बिहार नाव दुर्घटना बारे कहा जाता है कि न ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, न ही उनके डिप्टी तेजस्वी यादव व न ही पर्यटन मंत्री अनीता देवी ने सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लिया। यह भी स्पष्टï नहीं है कि एक नाव डूबी या दो।
नाव चलाने वालों का कहना है कि ‘‘गंगा के इस हिस्से में प्रतिदिन 50 प्राइवेट नौकाएं चलती हैं जिनमें से 30 के लगभग नौकाएं न ही पंजीकृत हैं और न ही उनमें लाइफ जैकेट या सुरक्षा ट्यूब ही होती हैं। अधिकारी आमतौर पर उनकी नावों के सुरक्षा प्रबंधों की जांच नहीं करते और न ही इस बात की जांच करते हैं कि वे लाइफ जैकेटों से लैस हैं या नहीं।’’
‘‘अधिकांश पर्व, त्यौहारों के मौके पर लोगों को ढोने के लिए सरकारी नौकाओं की कमी के कारण भी प्राइवेट नावों में अधिक भीड़ होती है। सूर्यास्त के बाद नावें न चलाने संबंधी आदेश का पालन भी नहीं किया जाता और न ही अधिकारी निरीक्षण करने के लिए वहां जाते हैं।’’
दियारा में कार्यक्रम स्थल पर यह घोषणा की जा रही थी कि शाम 4 बजे के बाद गांधीघाट के लिए कोई नाव नहीं जाएगी इसलिए लोग जल्दी-जल्दी लौट जाएं। कोई नहीं जानता कि उक्त घोषणा कौन व्यक्ति कर रहा था!
हजारों लोगों की भीड़ जुटने के बावजूद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल को उत्सव स्थल पर नहीं बुलाया गया। आपदा प्रबंधन दल के एक सदस्य के अनुसार, ‘‘हमें तो ट्रैजेडी हो जाने के बाद ही बुलाया जाता है।’’
दुर्घटना के बाद पटना मैडीकल कालेज अस्पताल में मृतकों के पोस्टर्माटम व घायलों के इलाज के प्रबंध भी संतोषजनक नहीं थे। अस्पताल में लाशें रखने के लिए जगह न होने के कारण अनेक लाशें जमीन पर ही रख दी गईं।
जहां तक बंगाल में हुई दुर्घटना का संबंध है श्रद्धालु गंगासागर में पवित्र डुबकी लगा कर कोलकाता पहुंचने के लिए कुचुबेरिया में स्टीमर पर सवार होने के लिए एक साथ ही उमड़ पड़े। बैरीकेड टूट जाने से भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मचने से यह दुखांत हो गया।
जहां बिहार की दुर्घटना के लिए भाजपा ने नीतीश कुमार के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करने की मांग की है, वहीं लालू यादव ने कहा है कि पतंग उत्सव सरकार ने आयोजित किया था, अत: इसके लिए समुचित व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी उसी की थी।बंगाल में हुई दुर्घटना को तो तृणमूल कांग्रेस के अनेक नेताओं ने ‘भगदड़ का परिणाम’ मानने से ही इंकार कर दिया है।
दोनों ही घटनाओं में संबंधित सरकारों की बदइंतजामी सामने आई है और उक्त दोनों ही राज्यों के लिए ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। बिहार में 12 नवम्बर, 2012 को छठ पर चांचरपुल पर मची भगदड़ में 22 लोगों की मृत्यु हो गई थी जबकि 4 अक्तूबर 2014 को विजयदशमी पर पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में 33 लोग मारे गए थे
इसी प्रकार बंगाल में 2010 में भी गंगा सागर मेले में मची भगदड़ के दौरान 7 लोगों की मृत्यु और एक दर्जन के लगभग लोग घायल हो गए थे। स्पष्टï है कि अतीत में भी हो चुकी ऐसी घटनाओं से दोनों ही राज्यों की सरकारों ने कोई सबक नहीं सीखा है। जब भी कोई ऐसी घटना होती है तो संबंधित सरकारें खुद को बचाने के लिए पीड़ितों को क्षतिपूॢत देने तथा जांच के लिए किसी ‘इंक्वायरी कमेटी’ के गठन की घोषणा कर देती हैं।
सरकारों और संबंधित विभागों के ऐसे ही रवैये के कारण लगातार ऐसी दुर्घटनाएं हो रही हैं। अत: इनकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए प्रभावी तथा पुख्ता प्रबंध करने और दुर्घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी से कड़ी शिक्षाप्रद सजा देने की जरूरत है। —विजय कुमार