दिल्ली के माथे पर कलंक बच्चों का अपहरण कर उनसे भीख मंगवाना

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jul, 2017 11:50 PM

able to defame children stigma on delhis forehead

भीख मांगना और मंगवाना आज हमारे देश में ‘उद्योग’ बन गया है। इसी कारण आज देश....

भीख मांगना और मंगवाना आज हमारे देश में ‘उद्योग’ बन गया है। इसी कारण आज देश में भिक्षावृत्ति ने एक बड़ी समस्या का रूप धारण कर लिया है जिसमें सर्वहारा वर्ग के निरक्षर बच्चे, महिलाएं, युवा और वृद्ध शामिल हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) में औसतन 20 बच्चे रोजाना गुम होते हैं जिनमें से मात्र 30 प्रतिशत बच्चों का ही अपने परिवार के साथ पुनर्मिलन हो पाता है तथा शेष 70 प्रतिशत बच्चे मानव तस्कर गिरोहों द्वारा घरेलू कामकाज और भिक्षावृत्ति में धकेल दिए जाते हैं। 

बच्चों को नशीली दवाएं देकर और उनकी पिटाई करके उन्हें भीख मांगने  अथवा देह व्यापार तक के लिए विवश किया जाता है और कभी-कभी वे मानव अंगों के तस्कर गिरोहों के हत्थे भी चढ़ जाते हैं। जनता की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए भिखारी गिरोहों के सरगना किसी की चमड़ी जला देते हैं, किसी का कोई अंग भंग कर देते हैं तथा अधिक बदसूरत दिखाने के लिए उनके नाक-कान तक काट डालते हैं। बताया जाता है कि राजधानी की लगभग साढ़े तीन करोड़ जनसंख्या में लगभग डेढ़ प्रतिशत भिखारी हैं जो मुख्यत: एन.सी.आर. के मैट्रो स्टेशनों, बस स्टैंडों, धर्मस्थलों आदि के आसपास भीख मांगते देखे जाते हैं। 

भीख मांगने वालों में छोटे-छोटे बच्चे भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं जो दूर-दूर तक लोगों के पीछे चले जाते हैं और सड़कों पर बेतरतीब ढंग से भागते हुए अपनी जान जोखिम में डालने के अलावा वाहनों आदि के आगे खड़े होकर यातायात एवं सुरक्षा संबंधी समस्याएं भी पैदा करते हैं। भीख मांगने के अलावा ये भिखारी आपराधिक गतिविधियों में भी संलिप्त पाए जा रहे हैं। अभी 22 जुलाई को ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 2 भिखारिनों ने एक बी.एस.एफ. कांस्टेबल की नन्ही बच्ची का अपहरण कर लिया जो सौभाग्यवश बरामद कर ली गई। 2010 में राजधानी में ‘कामनवैल्थ खेलों’ के आयोजन से पूर्व दिल्ली में मौजूद हजारों भिखारियों को खेलों का आयोजन पूरा होने तक उनके गृह राज्यों में भेज दिया गया था जो बाद में वापस आ गए और आज ये पहले से भी अधिक संख्या में राजधानी में मौजूद हैं। 

उल्लेखनीय है कि भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने के लिए तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने 1959 में ‘बॉम्बे प्रिवैंशन आफ बैगिंग एक्ट’ बनाया था जिसे दूसरे राज्यों ने भी अपनाया है और दिल्ली में भी यह कानून 1960 से लागू है। इसमें सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगना दंडनीय अपराध करार दिया गया है तथा सार्वजनिक स्थलों पर नाच-गा कर या किसी अन्य तरीके से भीख मांगना अपराध माना गया है। इसके अंतर्गत पहली बार भीख मांगते पकड़े जाने पर 1 वर्ष व दूसरी बार पकड़े जाने पर 3 से 10 वर्ष तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं, इस कानून के अनुसार किसी भी भिखारी को बिना वारंट गिरफ्तार करके और बिना मुकद्दमा चलाए ही मान्यता प्राप्त शरणालयों अथवा जेल में भेजा जा सकता है। 

देश की राजधानी होने तथा एक प्राचीन शहर होने के नाते दिल्ली में बड़ी संख्या में विदेशी कूटनयिकों के अलावा पर्यटक भी आते रहते हैं। अधिकांश देशों में भीख मांगने की प्रथा न होने के कारण जब वे यहां भिखारियों को भीख मांगते देखते हैं तो इससे देश की छवि को आघात पहुंचता है और उनके मन में भारत के प्रति नकारात्मक धारणा बनती है। चूंकि ये भिखारी समाज के लिए परेशानी के साथ-साथ कानून व्यवस्था की भी समस्या बनते जा रहे हैं, अत: मानव तस्कर गिरोहों पर अंकुश लगाकर इस बुराई को बढऩे से रोकने के प्रयास करने और समाज कल्याण कार्यक्रमों द्वारा वर्तमान भिखारियों के पुनर्वास, शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि का प्रबंध करके इस बुराई को यथाशीघ्र समाप्त करना आवश्यक है।—विजय कुमार   

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