‘देश के हित में अपनी सुविधाएं छोड़ो’ वरुण गांधी की सांसदों को सलाह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Aug, 2017 02:57 AM

advise varun gandhi mp leave your facilities into the country good

हम अक्सर लिखते रहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सार्वजनिक समस्याओं पर हमारे सांसदों एवं विधायकों में....

हम अक्सर लिखते रहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सार्वजनिक समस्याओं पर हमारे सांसदों एवं विधायकों में सहमति नहीं बन पाती। यहां तक कि विभिन्न मुद्दों पर असहमति के कारण प्राय: संसद व विधानसभाओं की कार्रवाई ठप्प होने के अलावा सदस्यों में मारा-मारी भी होती रहती है, परंतु अपनी सुविधाओं, वेतन-भत्तों में वृद्धि आदि के मामले में सभी सदस्य मतभेद भुला कर एक स्वर से अपनी मांगें मनवाने में इकट्ठे हो जाते हैं। 

इस बारे भाजपा सांसद वरुण गांधी ने 1 अगस्त को लोकसभा में सांसदों में अपने वेतन बढ़वाने के लगातार बढ़ रहे रुझान पर उन्हें आड़े हाथों लिया और कहा, ‘‘एक दशक के दौरान इंगलैंड में सांसदों के वेतन 13 प्रतिशत बढ़े जबकि भारत में सांसदों ने अपने वेतन 400 प्रतिशत बढ़ाए हैं।’’ ‘‘अत: देश के हित में सांसदों के वेतन तय करने के लिए भारत में भी ब्रिटिश संसदीय प्रणाली की भांति ही एक स्वतंत्र अराजनीतिक संस्था होनी चाहिए।’’ ‘‘इतनी वृद्धि के औचित्य पर प्रश्रचिन्ह लगाते हुए उन्होंने कहा,‘‘अपनी ही तनख्वाह बढ़ाने का अपने आप को ही अधिकार देना हमारे लोकतंत्र के नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।’’ 

‘‘सांसद निजी व्यापारिक कम्पनियों की तरह वेतन ले रहे हैं जहां वेतन वृद्धि कमाए हुए लाभ के आधार पर तय होती है परंतु हमारा काम देश की सेवा का है।’’ ‘‘सांसदों को बार-बार वेतन वृद्धि की मांग उठाते देख कर मैं सदन की नैतिक सोच को लेकर चिंता में पड़ जाता हूं। एक वर्ष में देश में 18,000 किसानों ने आत्महत्या की, हमारे सांसदों का ध्यान किधर है?’’ उन्होंने गांधी जी के इस कथन का भी उल्लेख किया कि‘‘सांसदों तथा विधायकों का वेतन उनके द्वारा की गई देश सेवा के अनुपात में ही होना चाहिए।’’ ‘‘समाज के सबसे निचले तबके के आदमी की आर्थिक दशा को देखते हुए हमें कम से कम इस संसद की अवधि के लिए अनिवार्यत: अपनी सुविधाएं छोडऩी चाहिएं। जिस प्रकार देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू की कैबिनेट ने अपनी पहली ही बैठक में उस समय लोगों की मुश्किलें देखते हुए पहले 6 महीने तक वेतन न लेने का फैसला किया था।’’ 

वरुण गांधी ने संसद में विभिन्न महत्वपूर्ण विधेयक ‘सही प्रक्रिया का पालन किए बिना’ पारित किए जाने का मुद्दा भी उठाया और कहा, ‘‘पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान संसद में पेश 50 प्रतिशत विधेयक संसदीय समिति को नहीं भेजे गए तथा अनेक महत्वपूर्ण विधेयक बिना बहस के ही पारित कर दिए गए जबकि ये संसद में विधिवत बहस के बाद ही पारित होने चाहिएं।’’ ‘‘बिना बहस विधेयक पारित करने से संसद का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। संसद को कायम ही इसलिए किया गया है कि यह प्रस्तावित कानूनों का विश्लेषण करके यकीनी बनाए कि हर कानून एक स्पष्ट नीति के तहत बनाया गया है जबकि विधेयकों को पारित करने की हड़बड़ी से यह सिद्ध होता है कि इसके पीछे ‘नीति’ नहीं बल्कि ‘राजनीति’ काम कर रही है।’’ गांधी ने संसद की बैठकों में भाग लेने के प्रति सांसदों की दिलचस्पी में कमी को ‘शर्मनाक’ बताते हुए कहा कि 1953 में लोकसभा की 123 बैठकें हुई थीं जो 2016 में घट कर 75 ही रह गई हैं। 

सांसदों में संसद से गैरहाजिर रहने के रुझान के सम्बन्ध में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी आवाज उठाते हुए 22 जुलाई को कहा था कि‘‘संसदीय कार्रवाइयों को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह बहुत जरूरी है कि संसदीय कार्यों के प्रति अरुचि तथा लापरवाही समाप्त हो। ‘‘अत: ऐसा कानून बनाने की जरूरत है जिसके द्वारा संसद में सांसदों की कम से कम 100 दिन की सक्रिय उपस्थिति अनिवार्य की जाए।’’ वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में ये मुद्दे सीधे तौर पर जनता से जुड़े हैं। हमारे अधिकांश सांसद-विधायक पहले ही करोड़ों के मालिक हैं ऐसे में वरुण गांधी का सांसदों द्वारा अपने वेतन में अंधाधुंध वृद्धि के रुझान को रोकने तथा महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने के लिए सही प्रक्रिया के पालन और येचुरी द्वारा संसद में सांसदों की 100 दिन की सक्रिय उपस्थिति के सुझावों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

भला इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि महंगाई की मार आम आदमी पर कितनी भी पड़े लेकिन उसकी आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ती परन्तु हमारे सांसदों और विधायकों पर यह सिद्धांत लागू नहीं होता जो संसद और विधानसभाओं में तो विभिन्न मुद्दों को लेकर लड़ते-झगड़ते रहते हैं परंतु अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने की बात आने पर सारे मतभेद भुला कर इकट्ठे हो जाते हैं।—विजय कुमार 

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