परमाणु ऊर्जा से सस्ती और सुरक्षित ‘पवन’ एवं ‘सौर ऊर्जा’

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2017 11:17 PM

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परमाणु ऊर्जा की विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका है और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ऊर्जा के रूप में इसके अधिकतम ...

परमाणु ऊर्जा की विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका है और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ऊर्जा के रूप में इसके अधिकतम इस्तेमाल के लिए भारत सरकार ने 2005 में अमरीका के साथ महत्वाकांक्षी परमाणु संधि की थी परंतु शुरू से ही इस पर अमल के मामले में भारत को अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे में पिछले दिनों आई खबर से सरकार की चिंता और बढ़ गई है कि इस संधि को आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाने वाली जापानी कम्पनी ‘तोशिबा’ की सहायक कम्पनी वेस्टिंग हाऊस की वित्तीय कठिनाइयों के चलते इस संधि को अमली जामा पहनाने में और देर हो सकती है।

इसी कारण आंध्र प्रदेश में 6 न्यूक्लियर रिएक्टरों के निर्माण संबंधी जून, 2017 तक कांट्रैक्चुअल एग्रीमैंट्स को अंतिम रूप देने का काम पीछे खिसक गया है।इस मामले में भारत के हाथ में कुछ नहीं है अत: इसे अपने ऊर्जा कार्यक्रमों के लिए एक आघात के रूप में देखने की बजाय सरकार ऊर्जा संबंधी अपनी भावी जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा संबंधी नीति पर पुनॢवचार करके अन्य सस्ते वैकल्पिक उपाय तलाश करे।

बेशक रूस की सहायता से निर्मित तमिलनाडु की कुडनकुलम न्यूक्लियर परियोजना के यूनिट 1 तथा 2 चालू हो चुके हैं परंतु इनके निर्माण में दोगुना समय लगा जबकि यूनिट 3 और 4 के निर्माण में भी देरी हो सकती है। परमाणु ऊर्जा के कुछ लाभों की तुलना में खतरे अधिक हैंं। इसके भयावह खतरों को समूचा विश्व जापान में 2011 में हुए भारी परमाणु विनाश के रूप में देख चुका है। जापान के फूकूशिमा परमाणु कांड की सुनवाई कर रही एक जापानी अदालत ने इस संबंध में बड़ी हृदय विदारक टिप्पणियां की हैं।

लिहाजा भारत की ऊर्जा नीति के निर्धारकों को जापान और रूस के परमाणु संयंत्रों द्वारा मचाई गई विनाश लीला का संज्ञान लेते हुए अधिक घातक परमाणु ऊर्जा की बजाय सुरक्षित और स्वच्छ ‘पवन’ तथा ‘सौर ऊर्जा’ के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। देश में परमाणु भट्टियां लगाने में अधिक लागत तथा भूमि अधिग्रहण की समस्या के अलावा पानी के विशाल स्रोतों की भी जरूरत होती है। सरकार द्वारा वर्ष 2032 तक 63000 मैगावॉट क्षमता वाले 55 परमाणु रिएक्टरों की योजना को आगे बढ़ाने की स्थिति में पानी की जरूरत और बढ़ जाएगी।

यही नहीं, आंध्र तट की निकटता और सुनामी जैसे खतरे की आशंका को देखते हुए, जहां इनमें से अधिकांश परियोजनाएं स्थापित की जाने वाली हैं सरकार को इस सम्भावित खतरे के विषय में सोचना होगा। इस पृष्टिभूमि में परमाणु ऊर्जा की भारत के लिए उपयोगिता और इससे होने वाले लाभ पर प्रश्र चिन्ह लग गया है जिसे देखते हुए भारत को अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित रूप से गैर परमाणु स्रोतों का दोहन करने की ओर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।

इस बारे ‘पवन’ एवं ‘सौर ऊर्जा’ हमारे लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है। इनसे सस्ती, सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा मिलेगी जो कम लागत पर लघु औद्योगिक इकाइयों को उपलब्ध करवाई जा सकती है। ‘पवन’ और ‘सौर ऊर्जा’ के दोहन में किसी प्रकार का कोई खतरा भी नहीं है।‘सौर ऊर्जा’ न सिर्फ कभी समाप्त न होने वाला संसाधन है बल्कि वातावरण के लिए भी लाभकारी है और इससे कोई भी विषैली गैस न निकलने के कारण पर्यावरण को किसी प्रकार की क्षति भी नहीं पहुंचती और इसे सभी क्षेत्रों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

औद्योगिकप्रतिष्ठानों और आवासीय एवं अन्य परिसरों पर ‘सोलर पैनल’ लगाकर मात्र शुरूआती खर्चे के बाद मुफ्त ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इसी कारण बिजली के एक बड़े विकल्प के रूप में उभरे ऊर्जा के स्रोत के रूप में ‘पवन’ एवं ‘सौर ऊर्जा’ के दोहन पर  इस समय सारे विश्व की नजरें केंद्रित हो गई हैं और हमें भी इनका दोहन करने में जल्द कदम उठाने चाहिएं।

‘सौर ऊर्जा’ पर शुरूआती लागत और प्रति यूनिट खर्चा घट कर बहुत कम (अर्थात लगभग 3.50 रुपए प्रति यूनिट) रह गया है तथा यह इस समय थर्मल प्लांट द्वारा उत्पादित ऊर्जा से भी बहुत सस्ता पड़ रहा है। अत: ‘सौर ऊर्जा’ पैनल लगाने पर न सिर्फ तुलनात्मक दृस्टि से सस्ती ऊर्जा मिलेगी बल्कि प्राणीजगत व पर्यावरण की भी रक्षा हो सकेगी। —विजय कुमार  

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