होना एक औद्योगिक घराने के मालिक का बेटे के हाथों मोहताज!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Aug, 2017 11:05 PM

being an industrial house owner son is delighted

अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें अपने बुजुर्गों से उनकी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवाकर अपने....

अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें अपने बुजुर्गों से उनकी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवाकर अपने माता-पिता की ओर से आंखें फेर कर उन्हें अपने हाल पर अकेला छोड़ देती हैं। इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार यह लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो कर दें परन्तु उसे ट्रांसफर न करें। 

आम लोगों की बात तो एक ओर, बड़े अमीर परिवारों के सदस्य भी अपनी संतान के हाथों उत्पीड़ित हो रहे हैं। इसी बारे कुछ वर्ष पूर्व पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के एक पूर्व जज का केस मीडिया में अत्यंत चर्चित हुआ था जिन्हें उनके बेटे से उनके मकान का कब्जा दिलाने के लिए न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इसी प्रकार देश के एक बड़े व्यापारिक परिवार ‘शॉपर्स स्टॉप’ के संस्थापक गोपाल रहेजा का पारिवारिक सम्पत्ति विवाद भी देश में काफी चर्चित रहा और अब देश के एक अन्य बड़े औद्योगिक परिवार की सम्पत्ति छीनने का विवाद अदालत में है। देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक तथा अपने बेटे गौतम को अपना कारोबार सौंपने से पहले अपने घराने को देश के सबसे बड़े परिधान ब्रांड में से एक बनाने वाले डा. विजयपत सिंघानिया आज एक ‘दुखी’ व्यक्ति हैं। 

2005 से 2006 तक मुम्बई के शैरिफ रह चुके डा. सिंघानिया एक उद्योगपति ही नहीं सक्रिय हवाबाज भी हैं तथा विश्व में सर्वाधिक ऊंचाई पर गर्म हवा के गुब्बारे में यात्रा करने का विश्व रिकार्ड भी बना चुके हैं। 2006 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित डा. सिंघानिया ने ‘एंजल्स इन द कॉकपिट’ नामक पुस्तक भी लिखी है जिसमें उन्होंने 1988 में माइक्रोलाइट विमान में इंगलैंड से भारत तक की अपनी यात्रा का विवरण दर्ज किया है। इतनी बड़ी नामी हस्ती होने के बावजूद श्री सिंघानिया आज दक्षिण मुम्बई की ग्रांड पाराडी सोसायटी में एक किराए के मकान में रहने को विवश हैं। 

मालाबार हिल्स में पुनर्विकसित 36 मंजिला ‘इमारत’  में एक डुप्लैक्स का कब्जा लेने के लिए बम्बई हाईकोर्ट में इनके वकील ने याचिका दायर करने के बाद कहा कि उनके मुवक्किल को उनके बेटे ने एक-एक पैसे के लिए मोहताज बना दिया है और उन्हें अपना घर भी छोडऩा पड़ा है। इनके वकील दिनयार मैडोन द्वारा अदालत में दिए बयान के अनुसार,‘‘जहां डा. सिंघानिया ने अपनी सारी सम्पत्ति अपने बेटे गौतम को दे दी है वहीं गौतम अब उन्हें हर चीज से वंचित करता जा रहा है।’’ डा. सिंघानिया का कहना है कि वह अपने बेटे के प्यार में अंधे हो गए जिस कारण उन्होंने अपना सब कुछ उसके नाम कर दिया। मैडोन के अनुसार डा. सिंघानिया ने कम्पनी में करीब 1000 करोड़ रुपए के सभी शेयर अपने बेटे के पक्ष में कर दिए हैं परन्तु अब वह अपने गुजारे के लिए गौतम पर आश्रित होकर रह गए हैं और उनसे कार व ड्राइवर जैसी सुविधाएं भी वापस ले ली गई हैं। 

मैडोन ने अन्य बातों के अलावा कम्पनी की ओर से उन्हें प्रति मास 7 लाख रुपए दिलवाने की भी अदालत से यह कहते हुए गुहार की है कि वह कम्पनी की लागत पर ये सुविधाएं प्राप्त करने के अधिकारी हैं। वकील का आरोप है कि उन्हें किराए के मकान के लिए 7 लाख रुपए भी नहीं दिए जा रहे जोकि समझौते का ही एक हिस्सा है। बम्बई हाईकोर्ट के जस्टिस गिरीश कुलकर्णी ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद उन्हें यह मामला आपस में निपटाने की सलाह देते हुए कहा है कि इस तरह की मुकद्दमेबाजी अदालत में कतई आनी ही नहीं चाहिए तथा इसे अदालत से बाहर ही सुलझाया जाना चाहिए जिस पर दोनों पक्षों ने सहमति व्यक्त की है तथा अदालत ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 22 अगस्त तय कर दी है। 

इस मामले पर अदालत का जो भी निर्णय हो यह तो भविष्य के गर्भ में है। मैं तो यही कहना चाहूंगा कि एक बेटा पाने के लिए माता-पिता क्या-क्या नहीं करते! बेटा पैदा होने पर पूरा परिवार खुशी से झूम उठता है। खुसरे नचाए जाते हैं, मिठाइयां बांटी जाती हैं परन्तु उक्त घटनाक्रम को देखते हुए मन में यह प्रश्र उठना स्वाभाविक ही है कि क्या इसीलिए माता-पिता बेटा मांगते हैं कि वह बड़ा होकर उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर कर दे?—विजय कुमार

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