भाजपा नेतृत्व नोटबंदी और जी.एस.टी. को लेकर उठ रही आवाजों को शांत करे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Nov, 2017 01:28 AM

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हालांकि केंद्र एवं देश के डेढ़ दर्जन के लगभग राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा अपने भीतर सब ठीक होने का दावा करती है परन्तु नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर पार्टी में उठने वाली असहमति की आवाजें कुछ और ही कहानी कहती हैं: 28 सितम्बर को...

हालांकि केंद्र एवं देश के डेढ़ दर्जन के लगभग राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा अपने भीतर सब ठीक होने का दावा करती है परन्तु नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर पार्टी में उठने वाली असहमति की आवाजें कुछ और ही कहानी कहती हैं: 

28 सितम्बर को वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने टी.वी. पर कहा कि, ‘‘जी.एस.टी. को गलत तरीके से लागू किया गया। इससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए। अर्थव्यवस्था में तो पहले ही गिरावट आ रही थी परंतु नोटबंदी ने आग में घी का काम किया है।’’ भाजपा सांसद श्याम चरण गुप्ता ने हाल ही में वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति की बैठक में कहा कि,‘‘नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को पंगु बना दिया है और यह आत्महत्याओं एवं बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार है।’’ ‘‘क्या अधिकारियों ने नोटबंदी से असंगठित क्षेत्रों में हुई आत्महत्याओं के आंकड़े जुटाए हैं और क्या यह महसूस किया है कि असंगठित क्षेत्र में स्थिति कितनी खराब हो गई है जहां लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं?’’ पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने 4 अक्तूबर को नोटबंदी को मनी लांड्रिंग स्कैम बताया और कहा कि, ‘‘इसके जरिए बड़े पैमाने पर ब्लैक मनी को व्हाइट किया गया है।’’ 

अरुण शौरी ने जी.एस.टी. लागू करने को नासमझी में लिया गया फैसला करार देते हुए कहा, ‘‘इसमें बड़ी त्रुटियां हैं। यही कारण है कि सरकार को कई बार इसके नियमों में बदलाव करना पड़ा। जी.एस.टी. से कारोबार पर संकट आया है और लोगों की आमदनी घटी है। इस समय देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है जो जी.एस.टी. के कारण ही पैदा हुआ है। ’’ 12 नवम्बर को अभिनेता-सांसद शत्रुघ्र सिन्हा ने कहा कि,‘‘ मोदी सरकार मीडिया को प्रभावित करने तथा लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है। गरीबों, मध्यम वर्ग, व्यापारियों को नोटबंदी व जी.एस.टी. से होने वाली पीड़ा और अफरा-तफरी वाली स्थिति को छिपाने और मीडिया को प्रभावित करने की हम चाहे कितनी भी कोशिश करें, यह एक ज्वलंत मुद्दा है।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘यदि एक वकील हमारी अर्थव्यवस्था पर इतना कुछ बोल सकता है और एक टी.वी. अभिनेत्री मानव संसाधन मंत्री बन सकती है तो मैं ऐसे मुद्दों पर क्यों नहीं बोल सकता? यदि एक चाय बेचने वाला देश का वो (कुछ) बन सकता है तो मैं अपनी पसंद के विषय पर क्यों न बोलूं?’’ उन्होंने सरकार द्वारा नोटबंदी की पहली वर्षगांठ मनाने की भी आलोचना की और कहा कि, ‘‘यदि लोग खुश होते तो वे भी इसका जश्र मनाते।’’ 14 नवम्बर को पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने फिर कहा कि वित्त मंत्री अरुण जेतली को वह गुजरात पर बोझ मानते हैं तथा जी.एस.टी. को लागू करने में गड़बड़ी व इस मामले में ‘चित मैं जीता पट तुम हारे’ की तर्ज पर बर्ताव कर रहे इस मंत्री से कुर्सी छोडऩे की मांग को जनता का उचित हक मानते हैं। 

यशवंत सिन्हा ने कहा कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को 3.75 लाख करोड़ रुपए का नुक्सान पहुंचा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना 14वीं सदी के दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक से करते हुए उन्होंने कहा: ‘‘बहुत सारे ऐसे शहंशाह हुए हैं जो अपनी मुद्रा लेकर आए। कुछ ने नई मुद्रा को चलन में लाने के साथ-साथ पहले वाली मुद्रा का भी चलन जारी रखा लेकिन 700 साल पहले एक शहंशाह मोहम्मद बिन तुगलक था जो नई मुद्रा लेकर आया और पुरानी मुद्रा के चलन को खत्म कर दिया।’’ कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचा कर इस समय भाजपा देश की अग्रिम राजनीतिक पार्टी बन चुकी है और अपना दायरा बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। ऐसे में पार्टी के अंदर से उठने वाले असहमति के स्वरों को दबाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। 

आखिर ये लोग भी पार्टी के प्रतिष्ठिïत एवं निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और उनका भी जनाधार है। अत: यदि पार्टी नेतृत्व अपने नाराज साथियों के गिले-शिकवे दूर करके इन्हें अपने साथ लेकर चले तो जहां पार्टी मजबूत होगी वहीं आने वाले समय में अच्छा प्रदर्शन भी कर सकेगी।—विजय कुमार

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