अच्छी पहल : तिरुपति देव स्थानम में दलितों को पुरोहिताई का दायित्व

Edited By ,Updated: 13 Nov, 2015 02:10 AM

good initiative the pastoral responsibility of the dalits in tirupati devasthanam

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की पहाडिय़ों पर स्थित तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं अमीर तीर्थस्थलों में से एक है...

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की पहाडिय़ों पर स्थित तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं अमीर तीर्थस्थलों में से एक है जहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। 

सैंकड़ों वर्ष पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है। चोल, होएसल और विजयनगर के राजाओं का इस मंदिर के निर्माण में आर्थिक रूप से विशेष योगदान रहा है।
 
इस मंदिर के विषय में एक जनश्रुति के अनुसार प्रभु वेंकटेश्वर या बाला जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है जिन्होंने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था।
 
यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाडिय़ां शेषनाग के सात फनों के आधार पर सप्तगिरि कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है जो वेंकटाद्री के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां आने पर व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
 
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार 11वीं शताब्दी में संत रामानुज तिरुपति की इस 7वीं पहाड़ी पर पधारे थे। तब प्रभु श्रीनिवास (श्री वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
 
ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद वह 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और स्थान-स्थान पर घूम कर उन्होंने वेंकटेश्वर भगवान का गुणगान करके उनकी ख्याति फैलाई। 
 
1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में लेकर एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति तिरुमाला तिरुपति के हाथ में सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने के बाद इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्र प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया। 
 
यहां आने वाले भक्तों की लम्बी कतारें देख कर इसकी लोकप्रियता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है तथा यहां दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं को घंटों अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
 
एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए अब इस मंदिर के प्रबंधकों ने दलितों को इस देव स्थान की रीति-नीति और संस्कारों का प्रशिक्षण देने का निर्णय किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 3 महीने की अवधि के लिए दलित और पिछड़े समुदायों से संबंध रखने वालों को मंदिर में प्रशिक्षण दिया जाएगा। शुरूआत में इन्हें चित्तूर और गोदावरी जिलों से चुना जाएगा। 
 
विश्व के सबसे अमीर इस मंदिर के प्रशासन द्वारा दलितों और पिछड़े वर्गों से संबंधित लोगों को वैदिक संस्कारों के संबंध में सर्टीफिकेट कोर्स आरंभ करने का यह पहला अवसर है। इससे पूर्व तिरुपति तिरुमाला देव स्थानम द्वारा जनजातीय पुजारियों के लिए वेद संस्कारों का प्रशिक्षण देने के अल्प अवधि के कोर्स चलाए जा चुके हैं परंतु अब यह पूर्णकालिक प्रशिक्षण होगा जिसे पूरा करने के बाद संबंधित अभ्यर्थी को श्री वेंकटेश्वर वैदिक  विश्वविद्यालय का प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।  
 
 इससे पूर्व इस देव स्थान द्वारा दलित बस्तियों में हिन्दू धर्म का प्रचार करने के लिए ‘दलित गोविंदम’ नामक योजना भी शुरू की गई थी जिसके अंतर्गत युवकों को देवताओं को प्रसाद अर्पित करने का प्रशिक्षण दिया जाता था।  
 
इस समय जबकि देश में स्थान-स्थान पर दलितों से भेदभाव और उन पर अत्याचार किए जाने और यहां तक कि जिंदा जलाने और दलित समुदाय की महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने तक के घिनौने कृत्य हो रहे हैं, तिरुपति तिरुमाला देव स्थानम के प्रबंधकों द्वारा दलितों, पिछड़े और सर्वहारा वर्ग के लोगों को गले लगाने और पुरोहिताई का प्रशिक्षण देने की परियोजना से समाज में सद्भावना बढ़ाने में अत्यधिक सहायता मिलेगी।  
 

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