इटली में संविधान मेें बदलाव के लिए जनमत संग्रह

Edited By ,Updated: 05 Dec, 2016 02:02 AM

italy for a change in the constitution referendum

यूं तो यूरोप में सबकी नजर आस्ट्रिया में अप्रैल से अब तक तीसरी बार होने जा रहे चुनाव की ओर है किंतु यूरोप ...

यूं तो यूरोप में सबकी नजर आस्ट्रिया में अप्रैल से अब तक तीसरी बार होने जा रहे चुनाव की ओर है किंतु यूरोप की ‘ब्रिग्जिट’ हलचल इटली में होने जा रही है। कहते तो यह एक जनमत मात्र है जोकि इटली की सरकार के स्वरूप को पुन: परिभाषित करेगा किंतु इटली के लोग उसे वैश्वीकरण एवं अप्रवास के विरोध में एक जनमत मान रहे हैं। 

बेशक यह देश संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में आधुनिक यूरोप की आधारशिला के रूप में माना जाता है परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार है और इस अवधि में 65 बार सरकार बदल चुकी है लेकिन अब की बार न केवल इसके राजनीतिक व आॢथक ढांचे को क्षति पहुंच सकती है बल्कि  यूरोपियन यूनियन को भी यह अलविदा कह सकता है।  इन दिनों वहां संविधान बदलने की कवायद चल रही है और इसके लिए रविवार 4 दिसम्बर को वहां जनमत संग्रह करवाया  गया।

इसके द्वारा देश के संविधान में भारी परिवर्तन करने के लिए जनता की अनुमति  ले कर किसी नए कानून और किसी निर्वाचन सदस्य का निर्वाचन रद्द करने या केवल सरकार की किसी विशिष्टï नीति को स्वीकार या अस्वीकार न करने से संबंधित अधिकार प्राप्त करने के लिए वर्तमान संविधान में संशोधन द्वारा नया संविधान बनाना वांछित है। 

इस जनमत संग्रह को लेकर प्रधानमंत्री मैटियो रैंजी अजीब उलझन में फंसे हुए हैं और जिस प्रकार इंगलैंड में यूरोपीय संघ में शामिल रहने या अलग होने के प्रश्र पर जनमत संग्रह के नतीजों के बाद प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा था, उसी प्रकार इटली के जनमत संग्रह में प्रधानमंत्री मैटियो रैंजी की कुर्सी दाव पर लगी हुई थी। 

मैटियो रैंजी इटली की सीनेट की शक्तियों में भारी कमी करना चाहते हैं ताकि संसद पर इटली की भावी सरकारों की पकड़ को अधिक मजबूत करके क्षीण बहुमत वाली मुख्य पार्टी को भी निरंकुश शक्तियां प्रदान की जा सकें। इन बदलावों के पक्ष में प्रधानमंत्री मैटियो रैंजी का कहना है कि आर्थिक संकट से गुजर रही इटली को संकट से निकालने के लिए विधायिका में यह बदलाव आवश्यक था। 

इन बदलावों द्वारा प्रधानमंत्री के लिए यह निर्णय करना भी आसान हो जाएगा कि किसे राष्टपति बनाना है और चूंकि इटली में अधिकांश जजों का चयन राष्टपति या संसद द्वारा किया जाता है इसलिए प्रधानमंत्री द्वारा देश की न्यायपालिका को प्रभावित करना भी आसान हो जाएगा। 

चूंकि निरंकुश अधिकार प्राप्त करने के लिए मैटियो रैंजी संविधान में बदलाव के पक्ष में हैं, लिहाजा लोगों का कहना था कि यदि देश की जनता ने संविधान में बदलाव के विरुद्ध मत व्यक्त किया तो रैंजी की कुर्सी चली जाएगी। 

मतदान से काफी समय पहले ही संविधान का विरोध करने वालों द्वारा रैंजी पर अधिकाधिक शक्तियां प्राप्त करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। शुरू-शुरू में इन बदलावों का समर्थन करने वाली फोरजा इटालिया पार्टी के नेता सिलवियो बरलुस्कोनी ने चेतावनी दी है कि ‘‘इससे प्रधानमंत्री इटली और इटली वालों का मालिक बन जाएगा।’’

इसी प्रकार कुछ नर्म शब्दों में इन बदलावों की आलोचना करने वालों का कहना था कि भले ही रैंजी द्वारा अधिकाधिक शक्तियां प्राप्त करने को बर्दाश्त कर लिया जाए परंतु किसी दिन ये शक्तियां किसी ऐसे प्रधानमंत्री के हाथ में भी आ सकती हैं जिसकी लोकतंत्र में आस्था न हो। 

बहरहाल इस जनमत संग्रह के संबंध में पूर्वानुमान व्यक्त करने से पूर्व किए गए जनमत संग्रह के अनुसार जनमत संग्रह के पक्ष और विपक्ष में लोगों की संख्या में मात्र 4 प्रतिशत के लगभग ही मामूली अंतर चल रहा था। लेकिन इसके साथ ही इन सर्वेक्षणों में यह भी बताया गया था कि अभी भी  40 से 60 प्रतिशत के बीच मतदाताओं ने इस विषय में कोई निर्णय नहींलिया है और या फिर वे इस जनमत संग्रह से अनुपस्थित रहने की सोच रहे थे। 

यदि ऐसा होता है तो इसका देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यंत बुरा असर पड़ेगा और इटली का तीसरा सबसे बड़े बैंक मोनटे डे पाशची डी सिएना के लिए संकट खड़ा हो जाएगा। 

एक ङ्क्षचता यह भी व्यक्त की जा रही थी कि जनमत संग्रह मेें रैंजी की पराजय का मतलब है उनकी डैमोक्रेटिक पार्टी के पीछे-पीछे चल रही इटली की कट्टरवादी और उच्छृंखल फाइव स्टार मूवमैंट (एम-5एस) का उदय जो किसी भी हालत में शासन करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है।

इसके अलावा चिंता का एक तीसरा कारण भी है। इस जनमत संग्रह का कोई परिणाम न निकलने पर इटली के राजनीतिक और आर्थिक ठहराव की अवधि बढ़ सकती है जिससे देश का आर्थिक विकास अवरुद्ध होगा।  
 

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