आतंकवादियों और अलगाववादियों को महबूबा मुफ्ती की खरी-खरी

Edited By ,Updated: 25 Aug, 2016 11:59 PM

mehbooba mufti uprightness of terrorists and separatists

अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ रखा है। इसी कड़ी में ...

अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी शासकों ने भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़ रखा है। इसी कड़ी में जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के विरुद्ध ‘कम तीव्रता वाला युद्ध’ (वार विद लो इंटैंसिटी) छेडऩे के लिए  ‘आप्रेशन टोपाक’ शुरू किया जो आज भी जारी है।

तभी से पाकिस्तान ने अपने पाले हुए आतंकियों व अलगाववादियों के जरिए जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद भड़काने, बगावत के लिए लोगों को उकसाने और पत्थरबाजी व हिंसा करवाने का सिलसिला शुरू कर रखा है। इन लोगों को पाकिस्तान से भारी आर्थिकमदद मिलती है जिसके दम पर ये ऐश करते हैं। ये गरीबों के बच्चों को तो पत्थरबाज और आतंकवादी बनाते हैं लेकिन अपना इलाज, बच्चों की पढ़ाई और शादी-विवाह आदि सब कश्मीर से बाहर सुरक्षित स्थानों पर करवाते हैं।

हालांकि श्री वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल के दौरान घाटी में सक्रिय आतंकवादी और अलगाववादी तत्वों द्वारा चुनावों के बहिष्कार की धमकियों के बावजूद वहां पहली बार निष्पक्ष चुनावों का सिलसिला शुरू हुआ जो बाद में भी जारी रहा परन्तु कुछ समय से एक बार फिर वहां सक्रिय भारत विरोधी तत्वों ने वातावरण बिगाडऩे की कोशिशें तेज कर दी हैं।

हिजबुल कमांडर बुरहान वानी की 8 जुलाई को मौत के बाद 48 दिनों से जारी झड़पों में कश्मीर घाटी में 70 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। कफ्र्यू से जन-जीवन अस्त-व्यस्त है, 2 लाख बच्चों की पढ़ाई बंद है, अस्पताल बीमारों से भरे पड़े हैं। कम से कम 6000 करोड़ रुपए के व्यापार की क्षति हो चुकी है, पर्यटन तबाह हो रहा है व बड़ी संख्या में पर्यटकों ने होटलों में अपनी बुकिंग रद्द कर दी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 अगस्त को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई और 22 अगस्त को सभी दलों के नेताओं से इस समस्या का स्थायी एवं दीर्घकालिक हल निकालने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह एक महीने में दूसरी बार 24 अगस्त को श्रीनगर पहुंचे और उन्होंने सभी पक्षों के 300 लोगों तथा महबूबा मुफ्ती से वार्ता  के बाद संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में युवाओं से पत्थरबाज न बनने की अपील करते हुए कहा कि ‘‘प्रधानमंत्री को कश्मीर की चिंता है और हम लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों से वार्ता के लिए तैयार हैं।’’

इस मौके पर महबूबा ने कहा कि ‘‘पथराव व सुरक्षा शिविरों पर हमला करके किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। राज्य के 95 प्रतिशत लोग बातचीत से समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं...केवल 5 प्रतिशत लोग ही इसमें अड़चन डाल रहे हैं और अपने हितों के लिए गलत रास्ते पर चल रहे हैं। हिंसा फैलाने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।’

‘‘मिसक्रिएंट हमारे बच्चों और महिलाओं को शील्ड बनाकर कैम्पों पर हमला करवाते हैं...कुछ लोगों ने अपने नाजायज मकसद के लिए बच्चों को भट्ठी में डाल दिया है... हम कश्मीर को जहन्नुम नहीं बनने देंगे। जो लोग मारे गए हैं उनमें 90 प्रतिशत बच्चे हैं...गरीबों के बच्चे हैं...।’’

एक पत्रकार के यह कहने पर कि वह प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सुरक्षाबलों के भारी इस्तेमाल को कैसे उचित ठहरा सकती हैं जबकि 2010 में विपक्ष में रहते हुए उन्होंने लोगों के मारे जाने का विरोध किया था? इस पर महबूबा ने कहा,‘‘मछील में बोगस एनकाऊंटर हुआ था जिसमें 3 सिविलियन मारे गए थे पर इस बार एनकाऊंटर में 3 आतंकी मारे गए हैं। सरकार इसके लिए कैसे दोषी ठहराई जा सकती है? जो सुरक्षा बलों की गोलियों या पैलेट गनों से मारे गए हैं वे दूध या टाफियां खरीदने नहीं गए थे।’’

इससे पूर्व 22 अगस्त को भी महबूबा ने कहा था कि ‘‘कुछ मुट्ठी भर लोग घाटी में अशांति फैला रहे हैं और ऐसी चिंगारी की तलाश में हैं जिससे समूचा कश्मीर जला सकें। सुरक्षा बल संयम बरत रहे हैं पर जब युवक उनके कैंपों पर हमले करेंगे तो वे गोली चलाएंगे ही। ’’

‘‘कश्मीर के लोग आजादी का मतलब समझ गए हैं। वे जानते हैं कि इस देश में उन्हें जैसी आजादी है वह सीरिया, अफगानिस्तान, तुर्की व पाकिस्तान जैसे देशों में नसीब नहीं है। वहां बंदूक ने आजादी छीन ली है।’’ राजनाथ सिंह और महबूबा मुफ्ती के बयानों में कश्मीर के प्रति चिंता स्पष्टï है और यह बात किसी से छिपी हुई भी नहीं है कि इस सारे घटनाक्रम में कश्मीरियों का ही नुक्सान हो रहा है।

अत: आशा करनी चाहिए कि जल्दी ही इस अशांत राज्य के हालात सुधरेंगे जिससे यहां के लोगों के जीवन में एक बार फिर समृद्धि और खुशहाली के नए अध्याय की शुरूआत होगी जिसके लिए वे तरस रहे हैं।
  —विजय कुमार

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