बिहार की राजनीति में धमाका नीतीश कुमार ने दिया त्यागपत्र

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 10:30 PM

nitish kumar gave bihar resignation

15 नवम्बर, 2015 को बिहार में लालू यादव की राजद के साथ महागठबंधन करके नीतीश कुमार.....

15 नवम्बर, 2015 को बिहार में लालू यादव की राजद के साथ महागठबंधन करके नीतीश कुमार नीत जद (यू) ने सरकार बनाई थी जिसमें लालू के दोनों बेटों में से बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्री और छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया था। 

वैचारिक धरातल पर एक-दूसरे के विरोधी होने के बावजूद किसी तरह लालू-नीतीश का यह गठबंधन चलता रहा परन्तु अचानक 8 जुलाई को लालू की बेटी मीसा भारती के फार्म हाऊसों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी और फिर तेजस्वी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मामला दर्ज होने के बाद तेजस्वी को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग तेज हो गई। 

इस बीच जहां नीतीश कुमार पर तेजस्वी को मंत्रिमंडल से हटाने का दबाव बढ़ता चला गया, वहीं तेजस्वी की गिरफ्तारी की स्थिति में लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप की डिप्टी सी.एम. के रूप में ताजपोशी की अटकलें लगाई जाने लगीं। इस बारे 11 जुलाई को जद (यू) और राजद दोनों ने ही अपने-अपने नेताओं की बैठकें बुलाईं। इनमें जहां लालू ने साफ तौर पर तेजस्वी के त्यागपत्र न देने का ऐलान किया, वहीं नीतीश ने भ्रष्टाचार पर सख्त स्टैंड लेने का संदेश दिया और जद (यू) ने राजद को इस मामले पर चार दिनों में फैसला लेने का अल्टीमेटम दे दिया। जद (यू) चाहता था कि तेजस्वी के भविष्य पर राजद ही फैसला करे। 

ऐसे माहौल के बीच लालू बार-बार तेजस्वी के त्यागपत्र न देने की घोषणा करते रहे और यहां तक कि राजद के एक विधायक ने तो तेजस्वी का त्यागपत्र लेने की स्थिति में जद (यू) से समर्थन वापस लेने तक की धमकी भी दे डाली। सोनिया ने भी  इस बारे नीतीश से बात की परन्तु जद (यू) के प्रवक्ता अजय आलोक ने भी स्पष्ट कर दिया कि सत्ता हमारे लिए जरूरी नहीं है और नीतीश 5 मिनट के भीतर सरकार को छोड़ देंगे। यह भी कहा गया कि यदि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे तो नीतीश स्वयं इस्तीफा दे सकते हैं। 

15 जुलाई को बिहार के पटना में एक सरकारी कार्यक्रम में तेजस्वी नहीं पहुंचे जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार के साथ शामिल होना था जिससे दोनों दलों में खटास और बढऩे का संकेत मिला। 15 जुलाई को तेजस्वी पर फैसला लेने के लिए जद (यू)  द्वारा दिया गया अल्टीमेटम समाप्त होने के बाद जद (यू) के भावी रुख के संबंध में अटकलें तेज हो गईं। इस बीच 19 जुलाई को तेजस्वी और नीतीश की भेंट हुई जिसमें तेजस्वी ने अपनी सफाई पेश की परंतु नीतीश उससे संतुष्टï नहीं हुए। 

इस बीच नीतीश कुमार ने नई दिल्ली में राहुल गांधी से भेंट करके दो-टूक शब्दों में कांग्रेस को तेजस्वी के मुद्दे पर अपना स्टैंड स्पष्ट करने के लिए कह दिया वहीं 26 जुलाई को एक नाटकीय घटनाक्रम में तेजी से बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच एक ओर लालू और तेजस्वी ने विधानमंडल दल की बैठक के बाद एक बार फिर इस्तीफा न देने की बात कही। लालू तथा राबड़ी ने तो यहां तक कहा कि नीतीश ने उनसे इस्तीफा मांगा ही नहीं। दूसरी ओर जद (यू) के विधानमंडल दल की बैठक के बाद नीतीश कुमार ने गठबंधन के सहयोगी दल राजद के साथ न मिट सकने वाले मतभेदों का हवाला देते हुए बुधवार शाम को अपने पद से त्यागपत्र देकर धमाका कर दिया और कहा कि ‘‘बिहार में जो हालात बने हुए हैं उसमें गठबंधन सरकार चलाना मुश्किल हो गया है। मैंने तेजस्वी से बात की थी और समस्या सुलझाने की कोशिश भी की थी।’’ 

अपने त्यागपत्र के बाद उन्होंने कहा, ‘‘मैंने गठबंधन धर्म का पालन किया है और इस माहौल में मेरे लिए काम करना और सरकार का नेतृत्व करना संभव नहीं था और इस मुद्दे को लेकर जनता के बीच जो धारणा बन रही है उसे ठीक करने की आवश्यकता है। यह मेरी अंतरात्मा की आवाज है। मुझसे किसी ने त्यागपत्र नहीं मांगा।’’ बहरहाल जहां नरेन्द्र मोदी ने नीतीश को उनके साहसिक पग के लिए बधाई दी है वहीं बिहार के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया है व उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने के लिए कहा है। यह घटनाक्रम आगे क्या रूप लेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है परंतु नीतीश कुमार ने त्यागपत्र की घोषणा करके अपने सफेद दामन को बेदाग रखने में सफलता प्राप्त कर ली है। 

अलबत्ता फिलहाल इससे बिहार की राजनीति में अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है क्योंकि 243 सदस्यीय सदन में किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है। जद (यू) के पास 71, राजद के पास 80 और भाजपा के पास 53 सीटों के अलावा कांग्रेस की 27, लोजपा की 2, रालोसपा की 2, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की 1 व सी.पी.आई. की 3 सीटों के अलावा 4 निर्दलीय हैं।—विजय कुमार

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