जापान परमाणु ऊर्जा का विकल्प न छोडऩे को मजबूर

Edited By ,Updated: 17 Oct, 2016 01:57 AM

not forced to leave japan for nuclear energy

11 मार्च 2011 को हुए फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र की भीषण दुर्घटना के परिणामस्वरूप दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रेडियोधर्मी सामग्री लीक हो...

11 मार्च 2011 को हुए फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र की भीषण दुर्घटना के परिणामस्वरूप दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रेडियोधर्मी सामग्री लीक हो जाने से डेढ़ लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। यहां 6 परमाणु रिएक्टरों में से 3 रिएक्टर एक सप्ताह के भीतर-भीतर विस्फोट से तबाह हो गए जिससे यहां इतना रेडियोएक्टिव विकिरण फैल गया कि इसके चलते बाकी रिएक्टरों की मुरम्मत का काम भी ठप्प पड़ गया। 

फुकुशिमा की त्रासदी के 5 साल बाद भी जापान को इससे मुक्ति नहीं मिली है। प्लांट में अब भी परमाणु ईंधन पड़ा है,  इस बेहद गर्म रेडियोएक्टिव ईंधन से विकिरण का फैलना अब भी जारी है तथा इस प्लांट को ठंडा रखने के लिए हर दिन बिना सोचे-समझे हजारों लीटर पानी उंडेला जा रहा है।

प्लांट से हर दिन लगभग 100 टन प्रदूषित पानी निकलता है। इसके आसपास ही विशालकाय टैंक बनाए गए हैं जिनमें 2011 से ही यह पानी जमा किया जा रहा है। खबर है कि टोक्यो इलैक्ट्रिक पावर कम्पनी (टेप्को) चोरी-छिपे यह पानी अक्सर प्रशांत महासागर में छोड़ देती है। 

पावर प्लांट के चारों ओर 20 कि.मी. का क्षेत्र खाली पड़ा है। आशंका है कि अब यहां कई दशकों तक आबादी नहीं बस सकती। फुकुशिमा के नजदीक रेडियोएक्टिव कचरे के निपटारे के लिए 1,14,700 अंतरिम कचराघर बनाए गए थे। इनमें लगभग  90 लाख बैग भर कर कचरा रखा गया है लेकिन सरकार के पास इसके स्थायी निपटारे की कोई योजना नहीं है।

इस इलाके के लगभग 2 लाख लोग अब भी अस्थायी घरों में रह रहे हैं और सबसे भयावह बात यह है कि इन लोगों में विकिरण के दुष्प्रभाव से कई रोग फैलने का खतरा है जिस कारण इन्हें एक तरह का सामाजिक बहिष्कार भी झेलना पड़ रहा है। परमाणु दुर्घटना का जापान में भारी राजनीतिक असर देखा गया है। मार्च 2012 के बाद से टोक्यो में संसद भवन के बाहर हर शुक्रवार को हजारों लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं। 

लोगों की यह एकजुटता राजनीतिक लिहाज से किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है तथा लोगों के विरोध प्रदर्शनों के बावजूद जापान सरकार विश्व का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र काशीवाजाकी-करीवा चालू करने की बड़े पैमाने पर कोशिश कर रही है। टोक्यो इलैक्ट्रिक पावर कम्पनी इसके तथा अपने अन्य परमाणु संयंत्रों के रखरखाव पर गत वर्ष 5.8 अरब डॉलर खर्च कर चुकी है परंतु  यह एक वॉट भी बिजली उत्पन्न नहीं कर सका है। 

कम्पनी ने इस संयंत्र के 7 रिएक्टरों में से 2 को पुन: आरंभ करने के लिए जापान के परमाणु नियामक प्राधिकरण के पास आवेदन किया है लेकिन यदि नियामकों ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया तो भी राजनीति तथा जनता का विरोध इसकी राह में रोड़ा अटका सकते हैं। 

निगाटा प्रान्त जहां यह परमाणु संयंत्र स्थित है, के नए राज्यपाल का चुनाव होने वाला है। इस पद के दोनों प्रमुख उम्मीदवार संयंत्र को पुन: आरंभ करने के लिए उत्साहित दिखाई नहीं देते। आपदा से पहले जापान में परमाणु संयंत्रों से बिजली की 25 प्रतिशत बिजली बनती थी। तत्कालीन सरकार 2020 तक इसे 50 प्रतिशत ले जाने की उम्मीद कर रही थी लेकिन अब संयंत्रों को शुरू होने में अड़चनों ने ऐसे लक्ष्यों को बहुत दूर कर दिया है फिर भी जापान सरकार अपने बंद पड़े परमाणु सयंत्रों को चालू करने पर अड़ी हुुई है। 

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार जापान में सरकार और प्रशासन पर आम जनता का भरोसा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों  के साथ जुड़े जोखिमों के चलते डावांडोल हो रहा है और लोग इन्हें चालू करने के विरोध में उतर आए हैं। 

जापान में परमाणु संयंत्र के विरोधियों का यह भी कहना है कि  परमाणु शक्ति के बगैर भी ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का प्रयोग करके जापान अपना काम चला सकता है क्योंकि जापान की आबादी सिकुड़ रही है इस कारण वहां ऊर्जा की मांग में मामूली वृद्धि ही हो रही है। 

बहरहाल इस समय जब कई देश परमाणु ऊर्जा का विकल्प छोड़ रहे हैं भारत में इसकी अनदेखी करके अभी भी बड़े स्तर पर परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की तैयारी हो रही है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के साथ जुड़े हुए जोखिमों को ध्यान में रखते हुुए ही इस संबंध में भावी निर्णय लिए जाएं। इस संबंध में सौर ऊर्जा का दोहन एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

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