सरकारी अस्पतालों में हो रहा है उपचाराधीन रोगियों के जीवन से खिलवाड़

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2015 11:48 PM

patients undergoing treatment in government hospitals is messing up life

वैसे तो लोगों को सस्ती व स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा उपलब्ध करवाना सरकार का कत्र्तव्य है परन्तु इसने इस ओर से पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं।

वैसे तो लोगों को सस्ती व स्तरीय चिकित्सा एवं शिक्षा उपलब्ध करवाना सरकार का कत्र्तव्य है परन्तु इसने इस ओर से पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज बहुत महंगा है और सरकारी अस्पतालों में इतनी अव्यवस्था है कि वहां इलाज करवाने के लिए लोग जाना ही नहीं चाहते। 

न सिर्फ सरकारी अस्पतालों के वार्डों की हालत अत्यंत दयनीय है बल्कि चिकित्सा स्टाफ की लापरवाही भी शिखर पर है जिससे अनेक ऐसी मूल्यवान जिंदगियां मौत के मुंह में जा रही हैं जिन्हें बचाया जा सकता था : 
 
* 19 सितम्बर को कोलकाता नैशनल मैडीकल कालेज व अस्पताल के 2 डाक्टरों द्वारा सड़क दुर्घटना में घायल इसी कालेज के एक छात्र के इलाज में लापरवाही बरतने और समय रहते उसके दिमाग का सी.टी. स्कैन न करने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। 
 
* 21 अक्तूबर को डेराबस्सी के सिविल अस्पताल में डाक्टरों की लापरवाही के चलते एक नवजात की मौत हो गई। बच्चे के परिजनों ने आरोप लगाया कि संबंधित डाक्टर ने उन्हें धोखे में रखा और यदि वह डिलीवरी करने में असमर्थ था तो उसे पहले ही बता देना चाहिए था। 
 
* 22 अक्तूबर को इंदौर में प्रसूताओं को एम.वाई. अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड में ले जाने के लिए स्ट्रेचर और वार्ड ब्वाय उपलब्ध न हो सके। दर्द से कराह रही एक प्रसूता को उसका पति गोद में उठा कर एमरजैंसी वार्ड तक लाया परंतु कोई विशेषज्ञ डाक्टर प्रसव करवाने नहीं आया जिससे उसकी डिलीवरी वार्ड के बाहर गलियारे में ही हो गई।  
 
* 26 अक्तूबर को भिवंडी के इंदिरा गांधी मैमोरियल उप जिला अस्पताल में प्रसूति के दौरान डाक्टरों की लापरवाही के कारण एक महिला के शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उसकी मृत्यु हो गई। 
 
* 8 नवम्बर को राजस्थान में गंगानगर के जिला अस्पताल में उपचाराधीन  महिला को गलत ग्रुप का खून चढ़ा देने से उसकी मृत्यु हो गई। 
 
* 8 नवम्बर को ही बिहार के सहरसा जिले में कोसी स्थित सदर अस्पताल में एक ही रात में 11 बच्चों का जन्म हुआ जिनमें से 5 बच्चों की संबंधित डाक्टरों व नर्सों द्वारा आक्सीजन व अन्य आवश्यक दवाएं न देने से उसी दिन मृत्यु हो गई। यही नहीं अस्पताल के स्टाफ ने कराह रही महिलाओं के परिजनों से ही 200-200 रुपए लेकर शवों को दफनाने के नाम पर उन्हें बाहर झाडिय़ों में ही फैंक दिया।
 
* 15 नवम्बर को उत्तर प्रदेश में रामपुर के सरकारी अस्पताल की महिला डाक्टर तैयबा और पैरा मैडीकल स्टाफ ने ब्रीच पोजीशन (गर्भ में उलटा बच्चा) में टांग पहले बाहर निकल आने पर बच्चे के पैर से लम्बी डोरी बांधी और उस डोरी से ईंट बांध कर उसे नीचे लटका दिया ताकि शिशु बाहर आ सके लेकिन ऐसे गलत इलाज से बच्चे की मृत्यु हो गई। 
 
* 18 नवम्बर को धनबाद के सैंट्रल अस्पताल में उपचाराधीन रोगी की मृत्यु हो गई परंतु अस्पताल प्रशासन ने उसके परिजनों को इसकी सूचना नहीं दी। पता चलने पर परिजनों ने मृतक का उपचार कर रहे डाक्टर की पिटाई की और आरोप लगाया कि रोगी की मृत्यु गलत इंजैक्शन लगाने से हुई है। 
 
* 19 नवम्बर को हरियाणा के महेंद्रगढ़ में आयोजित एक नसबंदी शिविर में महिलाओं के आप्रेशन करने के लिए रिवाड़ी के सरकारी अस्पताल से आया हुआ डाक्टर 3 महिलाओं के आप्रेशन करने के बाद बाकी बेहोश पड़ी 27 महिलाओं को, जिन्हें एनैस्थैटिक टीका लगाया जा चुका था, छोड़ कर चला गया और फिर वापस ही नहीं आया। 
 
महिलाएं 2 घंटे तक उसका इंतजार करती रहीं। नारनौल के सिविल सर्जन के अनुसार संबंधित डाक्टर का अपनी सफाई में यह कहना है कि उसकी सहायता के लिए नॄसग स्टाफ न होने के कारण उसने आप्रेशन रोक दिए थे। 
 
बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और झारखंड से संबंधित डाक्टरों की लापरवाही की उक्त घटनाएं इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि इलाज में लापरवाही का यह रोग लगभग समूचे देश के सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक वर्ग में फैला हुआ है।
 
इसीलिए गरीब से गरीब व्यक्ति भी यही कोशिश करता है कि वह किसी न किसी तरह प्राइवेट अस्पताल में ही अपना या अपने परिजनों का इलाज करवाए, भले ही इसके लिए उसे अपना सब कुछ दाव पर क्यों न लगाना पड़े।
 
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों के मन में बैठी यह भावना दूर करने हेतु तुरंत सुधारात्मक पग उठाने व त्रुटियां दूर करके सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जनता का विश्वास बहाल करने की जरूरत है।

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