आर्थिक नाकाबंदी की मार उम्मीदवार कर रहे हैं पैदल चुनाव प्रचार

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2017 09:57 PM

pedestrian hit by an economic blockade are candidates campaigning

पांच चुनावी राज्यों में से एक मणिपुर जहां 4 मार्च को विधानसभा चुनावों के पहले......

पांच चुनावी राज्यों में से एक मणिपुर जहां 4 मार्च को विधानसभा चुनावों के पहले चरण का मतदान होगा, संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है। ‘मणिपुर’ का शाब्दिक अर्थ है ‘आभूषणों की भूमि’। ‘सैवन सिस्टर्स’ के नाम से विख्यात उत्तर-पूर्व के 7 राज्यों में से एक मणिपुर में पहाडिय़ों और घाटियों की भरमार है। राजनीतिक रूप से लगातार अस्थिर चले आ रहे इस राज्य में कम से कम 30 उग्रवादी गिरोह सक्रिय हैं। 

यहां किसी समय भाकपा व माकपा अजेय राजनीतिक शक्ति मानी जाती थीं पर वर्तमान चुनावों के आने तक ये दोनों ही पार्टियां मणिपुर में अपना आधार खो चुकी हैं और अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसीलिए इन्होंने समविचारक और धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के साथ मिलकर  ‘लैफ्ट एंड डैमोक्रेटिक फ्रंट’ बनाया है। 

मणिपुर के मतदाता दलबदलुओं तथा पारंपरिक पार्टियों से नाराज हैं। मतदाता अपने स्वार्थ व टिकट की खातिर अपना मूल दल छोड़ कर दूसरे दल में जाने वालों को घास डालने के मूड में नजर नहीं आते। संबंधित दलों के असली कार्यकत्र्ताओं ने भी दलबदलुओं के चुनाव प्रचार में दिलचस्पी नहीं ली जिससे दलबदलुओं को यहां काफी प्रतिकूल हालात का सामना है। 

—पारंपरिक पार्टियो से लोगों के मोह भंग होने का कारण यह भी बताया जाता है कि वे लगातार चलने वाली आर्थिक नाकाबंदी और अफस्पा समाप्त करने जैसी चिरकालिक समस्याओं का समाधान करने में नाकाम रहे हैं। राज्य में 7 नए जिले बनाने के विरोध में ‘यूनाइटेड नागा कौंसिल’ द्वारा 1 नवम्बर 2016 से राज्य में लागू आर्थिक नाकेबंदी के चलते वहां आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। 

—पैट्रोल 200-250 रुपए लीटर तक पहुंच जाने के कारण उम्मीदवार वाहनों का न्यूनतम इस्तेमाल ही कर पाए और पैदल ही चुनाव प्रचार करने को मजबूर हुए। आरोप लगाया जाता है कि यह आर्थिक नाकेबंदी भाजपा और यू.एन.सी. के बीच गुप्त समझौते का ही परिणाम है। पिछले 6 महीनों में मणिपुर में पारंपरिक पार्टियों के अलावा अनेक नई पार्टियां अस्तित्व में आ गई हैं। इनमें मणिपुर से अफस्पा हटाने के लिए 16 वर्षों तक भूख हड़ताल करने वाली 44 वर्षीय इरोम शर्मिला की ‘पीपुल्स रीसर्जन्स एंड जस्टिस पार्टी’ (पी.आर.जे.ए.) भी एक है। 

—शर्मिला ने कुछ समय पूर्व यह कह कर सनसनी फैला दी थी कि भाजपा ने उसे थोऊबाल विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री इबोबी सिंह (कांग्रेस) के विरुद्ध चुनाव लडऩे के लिए टिकट तथा 36 करोड़ रुपए की पेशकश की थी। 

—अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए साइकिल पर जाने वाली शर्मिला ने चुनाव आयोग को अपनी कुल सम्पत्ति 2.6 लाख रुपए बताई है। उसके पास न तो घर और न ही कार है। 

9.26 लाख रुपए नकद, 2 एम्बैसेडर कारों और एक 9 एम.एम. पिस्तौल के मालिक मणिपुर के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह एक किसान के बेटे हैं और अपने 9 भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1981 में निर्दलीय जीता और एक साल बाद कांग्रेस में चले गए। इन चुनावों को इनकी सबसे कठिन परीक्षा माना जा रहा है। 

मणिपुर में ‘ईसा खेतल’ स्थित एशिया के सबसे बड़े महिला बाजार में सभी 5,000 दुकानदार महिलाएं विभिन्न वस्तुएं बेचती हैं। गत वर्ष भूकंप ने इस बाजार को काफी नुक्सान पहुंचाया था। इसकी अब तक मुरम्मत नहीं होने के कारण यहां कारोबार प्रभावित हो रहा है अत: बाजार की संचालक महिलाएं चाहती हैं कि जो भी पार्टी सत्ता में आए वह बीते साल भूकंप से क्षतिग्रस्त उनकी दुकानों की मुरम्मत का भरोसा दे। 

मणिपुर के लोगों का कहना है कि अक्सर लागू की जाने वाली हर आर्थिक नाकाबंदी हमारी दिनचर्या को अस्त-व्यस्त कर देती है। जीवनोपयोगी वस्तुओं की कीमतें आकाश छूने लगती हैं और वे बाजार से गायब हो जाती हैं। राज्य में बोगस एन्काऊंटरों में हत्याओं को लेकर भी लोगों में रोष है। लिहाजा उन्हें आर्थिक और राजनीतिक नाकाबंदियों की नहीं बल्कि शांति की जरूरत है ताकि वे भी समृद्धि की डगर पर आगे बढ़ सकें। मणिपुर में मतदान के पहले चरण तक राज्य में कुछ इस तरह का माहौल नजर आया है और आगे के घटनाक्रम की जानकारी भी आप तक पहुंचाने का हमारा आपसे वादा है।                           

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