शिक्षा में राजनीति बच्चों के भविष्य से खिलवाड़

Edited By ,Updated: 21 May, 2017 10:45 PM

politics in education fits with the future of children

प्लेटो अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में बताते हैं कि समाज के लिए सरकारें क्यों जरूरी

प्लेटो अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में बताते हैं कि समाज के लिए सरकारें क्यों जरूरी हैं। सरकार किस प्रकार की है या उसकी गुणवत्ता का व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर क्या असर होता है। व्यक्ति की भौतिक कुशलता ही नहीं, हर बात इससे निर्धारित हो सकती है।

जैसे उसके आध्यात्मिक विकास का स्तर, वह क्या खाता है, उसका परिवार कितना बड़ा हो सकता है, कौन-सी सूचना उसे मिले तथा कौन-सी नहीं, उसे कैसा काम मिलता है, वह कैसे मनोरंजन का अधिकारी है, वह कैसे आराधना करता है, उसे आराधना करने की इजाजत होनी भी चाहिए या नहीं। दूसरे शब्दों में प्लेटो के अनुसार किसी समाज को बनाने या बिगाडऩे के पीछे सरकार का बड़ा हाथ होता है। ईसा पूर्व 380 में लिखी इस पुस्तक में प्लेटो कहते हैं कि हर चीज का क्षय होता है और इसी प्रकार सरकार की किस्मों का भी क्षय होता है। उनका मानना है कि सरकारों के चार प्रकार होते हैं। सर्वोत्तम प्रकार की सरकार का क्षय होने लगता है तो कुछ समय बाद वह कम उत्तम प्रकार की सरकार बन जाती है और उसके बाद उसका और क्षय होता है तथा वह और उसकी अच्छाइयां और कम हो जाती हैं।

अंतत: जब ईमानदारी तथा शिक्षा के स्तर अत्यधिक गिर जाते हैं तो उसका स्वरूप सबसे खराब तरह की सरकार का बन जाता है। इसमें अधिक जोर शिक्षा पर दिया गया है। न सिर्फ सरकार के प्रमुख का दार्शनिक और योद्धा होना आवश्यक है बल्कि शिक्षा का प्रबुद्ध स्वरूप भी अच्छे जीवन के लिए आवश्यक है। अत: जब शिक्षा को जनता को ‘गवर्न’ करना पड़े तो यह किसी भी सरकार का एक महत्वपूर्ण कारक बन जाती है। 

सरकार को स्कूली शिक्षा के संबंध में सहायता और परामर्श देने वाली संस्था ‘राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद’ (एन.सी.ई.आर.टी.) ने स्कूली पाठ्य पुस्तकों की विषयवस्तु का आंतरिक पुनरीक्षण करना आरंभ कर रखा है। परिषद के अनुसार इसका उद्देश्य पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में आए बदलावों का पाठ्य पुस्तकों में समावेश करना तथा ‘जानकारियों को अपग्रेड’ करना है। इसका यह भी कहना है कि वर्तमान सरकार ने इस परियोजना को प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ाने का निर्णय किया है। 

पाठ्य पुस्तकों की सामग्री को सहज, सुगम प्रासंगिक, समयसंगत और आसान बनाना इसलिए आवश्यक है ताकि छात्र इसे आसानी से समझ सकें और उन विषयों को आत्मसात कर लें जिनकी वे पढ़ाई कर रहे हैं। पुस्तकों को केवल राजनीतिक एजैंडा सुधारने के लिए इस्तेमाल करने से तो पुन: सीमित किस्म का ज्ञान ही छात्रों को प्रदान किया जा सकेगा। पिछले 2 वर्षों के दौरान पाठ्य पुस्तकों में किए गए बदलाव विवादास्पद मुद्दा रहे हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट से अनेक भाजपा शासित राज्यों ने जिस प्रकार पाठ्य पुस्तकों में संशोधन किए उन्हें देखते हुए सरकार पर शिक्षा के भगवाकरण के आरोप लगे।

उदाहरण के तौर पर राजस्थान सरकार ने अपनी पाठ्य पुस्तकों में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू संबंधी उल्लेख संक्षिप्त कर दिए, महाराणा प्रताप के संबंध में भी कई बदलाव किए गए। इसी प्रकार हरियाणा सरकार ने आर.एस.एस. के अनुयायी दीनानाथ बत्तरा द्वारा लिखित नैतिक शिक्षा लागू करने का निर्णय किया। उल्लेखनीय है कि दीनानाथ बत्तरा ने 2014 में गुजरात में इतिहास की पुस्तकों में यह सुधार किया था कि उत्तरी धु्रव मूलत: आज का उड़ीसा और बिहार था जो बाद में वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हो गया और इस प्रकार आर्य जाति का भारत में उद्भव हुआ। 

यह तो श्री बत्तरा द्वारा इतिहास में किए गए सुधार का एक उदाहरण मात्र है जबकि जीव विज्ञान की पुस्तकों में सुधार संबंधी उनकी अवधारणा तो और भी लाजवाब है। जैसे कि उनका उद्देश्य गुजरात में छात्रों को उस इतिहास पर गर्व का एहसास करवाना था जो वह पढ़ रहे हैं न कि उन्हें वास्तविक तथ्यों से अवगत कराना ताकि वह विश्व को बेहतर ढंग से समझ सकें। अधिकारियों का दावा है कि इस बार पुस्तकों का निरीक्षण इनमें नोटबंदी और जी.एस.टी. शामिल करने के लिए किया गया है। 

नि:संदेह इतिहास विजेता की गाथा है, इसीलिए आपातकाल के दौरान 12वीं कक्षा के छात्रों को अपने पाठ्यक्रम में इंदिरा गांधी के 20-सूत्रीय आॢथक कार्यक्रम के बारे में पढऩा पड़ा था। पुस्तकों का संशोधन करना और उन्हें विश्व के मापदंडों के अनुसार अप-टू-डेट करना या यहां तक कि उन्हें देश भर में एक समान बनाना ज्यादा बेहतर और वांछित कदम होगा परन्तु बिना सोचे विचारे राजनीतिक झुकाव के अधीन लिए गए निर्णय से एक बार फिर यह प्रक्रिया अवरुद्ध ही होगी।  

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