किसानों के आंदोलन से बेपरवाह तमिल विधायकों ने बढ़ाई अपनी तनख्वाह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jul, 2017 10:24 PM

regardless of the movement of farmers tamil legislators increased their salaries

अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सार्वजनिक समस्याओं पर हमारी संसद एवं विधानसभाओं में.....

अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं सार्वजनिक समस्याओं पर हमारी संसद एवं विधानसभाओं में सदस्यों में सहमति नहीं बन पाती परंतु अपनी सुविधाओं, वेतन-भत्तों में वृद्धि आदि के मामले में सभी सदस्य अपने मतभेद भुला एक होकर अपनी मांगें मनवाने में देर नहीं लगाते। 

5 अगस्त, 2016 को महाराष्ट्र विधानमंडल के सभी दलों के सदस्यों ने एक राय से अपने वेतन में 166 प्रतिशत तक वृद्धि को स्वीकृति दे दी जिससे यह 75,000 रुपए से बढ़ कर 1.70 लाख रुपए मासिक हो गया। इनके पी.ए. की तनख्वाह भी 15,000 से 25,000 रुपए मासिक व पूर्व विधायकों की पैंशन 40,000 से बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दी गई। 05 मई, 2017 को हरियाणा विधानसभा के विशेष सत्र में पारित विधेयक द्वारा मुख्यमंत्री, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, मंत्रियों और विपक्ष के नेता का वेतन 50,000 रुपए से बढ़ा कर 60,000 रुपए तथा कार्यालय भत्ता 2000 रुपए मासिक से बढ़ाकर 20,000 रुपए कर दिया गया। और अब 19 जुलाई को तमिलनाडु सरकार ने अपने विधायकों के वेतन में 100 प्रतिशत की वृद्धि करके इसे 55,000 रुपए से बढ़ाकर सीधे 1.5 लाख रुपए कर दिया है।

मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधानसभा के स्पीकर के भत्तों में भी 25,000 रुपए मासिक वृद्धि की गई। विधानसभा के उपाध्यक्ष, विपक्ष के नेता और मुख्य सचेतक के भत्ते भी बढ़ा कर 47,500 रुपए मासिक तथा पूर्व विधायकों की मासिक पैंशन भी 12,000 रुपए से बढ़ाकर 20,000 रुपए कर दी गई। यह खबर सुन कर कर्ज माफी और अपने उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य के लिए दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसान एक बार फिर भड़क उठे और उन्होंने खुद को चप्पलों से पीटना शुरू कर दिया। इससे पूर्व वे सिर मुंडवा कर तथा नरमुंड और मानव हड्डिïयों के साथ प्रदर्शन करने के अलावा मानव मूत्र तक पी चुके हैं। 

इसी दिन वर्तमान वेतन में गुजारा न होने की गुहार लगाते हुए सांसदों ने भी किसान आत्महत्याओं और दलितों पर अत्याचार जैसे मुद्दों पर राज्यसभा में हंगामे के बीच केंद्र सरकार से उनका वेतन और भत्ते बढ़ाने तथा इन्हें वेतन आयोग से जोडऩे की मांग की जिसका सभी दलों ने पूर्ण समर्थन किया। ‘सपा’ सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा, ‘‘सांसद लम्बे समय से वेतन वृद्धि की मांग कर रहे हैं परंतु सरकार द्वारा कोई सुनवाई न करने से लगता है कि जैसे सांसद अपने लिए वेतन नहीं बल्कि भीख मांग रहे हों।’’ 

कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए कहा, ‘‘दुनिया में कहीं भी भारत की तरह सांसद इतने प्रताडि़त-अपमानित नहीं हैं। हमारा वेतन नौकरशाहों से भी कम है लिहाजा सरकार इसे वेतन आयोग के साथ जोड़े।’’ जहां उग्र रूप धारण कर चुके किसान आंदोलन की पृष्ठïभूमि में तमिलनाडु सरकार ने अपने मंत्रियों और विधायकों आदि के वेतन में वृद्धि करके किसानों की समस्याओं के प्रति संवेदनहीनता दर्शाई है, वहीं इस वेतन वृद्धि से सार्वजनिक कोष पर बोझ डालकर जनप्रतिनिधियों की झोलियां भरना कदापि उचित प्रतीत नहीं होता। 

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि एक ओर तो हमारे सांसद और विधायक संसद और विधानसभाओं में नियमित रूप से आना आवश्यक नहीं समझते परंतु दूसरी ओर उनमें अपने वेतन और भत्ते बढ़वाने की होड़ लगी रहती है। इसी को देखते हुए कुछ समय पूर्व यह सुझाव भी दिया गया था कि सांसद और विधायक जितने दिन सदन से अनुपस्थित रहें उनका उतने दिनों का वेतन काट लिया जाए। यह बात दुखद है कि सांसद और विधायक सदन के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते और यदि आते भी हैं तो संसद और विधानसभाओं में विभिन्न मुद्दों को लेकर लड़ते-झगड़ते रहते हैं परंतु जब अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने की बात आती है तो सारे मतभेद भुला कर ‘एक’ हो जाते हैं। ‘लडऩ-भिडऩ नूं वक्खो-वक्ख ते खान-पीन नूं कट्ठे’। —विजय कुमार 

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