बुजुर्गों को राहत दिल्ली पुलिस व न्यायपालिका ने उठाए कदम

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2016 01:56 AM

relief measures taken by the police and the judiciary on the elderly

भारत में प्रतिदिन 17,000 व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष से अधिक आयु) की श्रेणी में आ रहे हैं। प्राचीनकाल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें ...

भारत में प्रतिदिन 17,000 व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष से अधिक आयु) की श्रेणी में आ रहे हैं। प्राचीनकाल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें कुछ भी करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल गया है। अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद कलियुगी संतानें माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेती हैं।

 
तब उनका एकमात्र उद्देश्य माता-पिता की सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है और इसमें सफल होने के बाद अधिकांश संतानें अपने बुजुर्गों को उनके हाल पर छोड़ देती हैं। अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों को शिकायत है कि जीवन के प्रति व्यक्तिवादी एवं पदार्थवादी दृष्टिकोण के चलते संतानें अब अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल भी नहीं करतीं। इसी कारण बड़ी संख्या में वरिष्ठï नागरिकों का मानना है कि ऐसी संतानों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए।
 
 बुजुर्गों की इसी दयनीय स्थिति को देखते हुए केंद्र और अनेक राज्य सरकारों ने ‘माता-पिता के कल्याण और वरिष्ठï नागरिक कानून’ बनाए हैं जिनका उद्देश्य संतानों द्वारा परित्यक्त एवं उत्पीड़ित बुजुर्गों की देखभाल को सुनिश्चित बनाना है ताकि वे अपने जीवन की संध्या आराम से बिता सकें। इन कानूनों के अंतर्गत :
 
‘‘बेटा-बेटी, पौत्र और पौत्री पर अपने बुजुर्गों की देखभाल का दायित्व है। यदि किसी के संतान नहीं है तो उनकी प्रापर्टी पर दावा करने वाले रिश्तेदारों को उनकी देखभाल करनी होगी। ऐसा न करने वालों को कैद अथवा नकद जुर्माना या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं और बुजुर्ग उनके पक्ष में की हुई वसीयत को रद्द  कर सकते हैं।’’
 
इसी संदर्भ में मैंने 13 अगस्त के सम्पादकीय ‘कलियुगी बेटे-बहू के नाम फ्लैट न करने पर उन्होंने मां के मुंह पर थूक दिया’ में दसूहा (होशियारपुर) के 2 बुजुर्गों तथा ठाणे की एक महिला का उल्लेख किया था जिन्हें हाल ही में अदालत ने उनकी संतानों द्वारा ‘छीनी’ गई जायदाद वापस दिलवाई है।
 
इसी क्रम में 16 अगस्त को दिल्ली की 75 वर्षीय पार्वती देवी का मामला सामने आया जिसमें दिल्ली पुलिस ने पहली बार सक्रियता दिखलाते हुए ‘माता-पिता के कल्याण और वरिष्ठï नागरिक कानून 2007’ का इस्तेमाल किया और लोधी कालोनी में रहने वाले 35 वर्षीय रानू को अपनी बूढ़ी मां पार्वती को बेचारगी की हालत में लावारिस छोड़ देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
 
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार उक्त कानून के अंतर्गत रानू ने न ही अपनी मां की देखभाल की और न ही उसकी सुरक्षा का ध्यान रखा। अत: अभियुक्त के विरुद्ध उक्त कानून के अंतर्गत मामला दर्ज करके उसके विरुद्ध अदालती कार्रवाई शुरू कर दी गई है। 
 
 इसके एक सप्ताह बाद ही 22 अगस्त को ऐसे ही एक अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नजीराबाद (कानपुर) निवासी 86 वर्षीय  कैंसर पीड़ित चानण लाल अजमानी और उनकी पत्नी 82 वर्षीय कृष्णा देवी की पौत्र वधू आरती द्वारा उनका कब्जाया  हुआ घर वापस दिलवा कर अजमानी दंपति को उत्पीड़ऩ से मुक्ति दिलवाई है।
 
बुजुर्ग अजमानी दंपति के बेटे विजय का देहांत हो चुका है। उन्होंने अपने पोते अमित व पौत्रवधू आरती द्वारा उन्हें उत्पीड़ित किए जाने के विरुद्ध दायर याचिका में आरोप लगाया था कि दूसरा घर होने के बावजूद उनकी पौत्र वधू जबरदस्ती उनके घर में आकर रहती है और उनकी संपत्ति पर कब्जा करने के लिए वे दोनों उनका उत्पीड़ऩ कर रहे हैं।
 
बच्चों के सुख की खातिर अपने सब सुख त्याग देने वाले माता-पिता को उनके जीवन की संध्या में बेघर और संपत्ति से वंचित करके उत्पीड़ित करना शर्मनाक है क्योंकि इसी पड़ाव पर उन्हें अपनी देखभाल के लिए सहारे की अधिक आवश्यकता होती है। 
 
ऐसे में जीवन की संध्या में संतानों द्वारा परित्यक्त और उत्पीड़ित बुजुर्गों को राहत दिलाने के लिए दिल्ली पुलिस और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा की गई पहल सराहनीय है।
 
यह अपने माता-पिता की उपेक्षा करने वालों के लिए एक चेतावनी है जिससे वे उनके प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए विवश होंगे और साथ ही आने वाली नस्लों को भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की सीख और  नसीहत मिलेगी।     
 

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