चुनावों में ‘धन बल’ का प्रयोग

Edited By ,Updated: 23 May, 2016 12:07 AM

the use of money power in elections

एक ओर चुनावों में धन बल का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति और पृष्ठभूमि ...

एक ओर चुनावों में धन बल का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति और पृष्ठभूमि के लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में आ रहे हैं जिससे राजनीति ‘समाज सेवा’ न रह कर अपनी और ‘अपनों की सेवा’ बन कर रह गई है। जब-जब चुनाव होते हैं तब-तब विभिन्न उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष कुछ जानकारियां दी जाती हैं जिनमें उनके विषय में रोचक तथ्य उजागर होते हैं। कुछ समय पूर्व बिहार के चुनावों में अनेक आपराधिक छवि के उम्मीदवार विधायक चुने गए और राज्य में सरकार के गठन के बाद 10 से अधिक विधायकों पर आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लग चुके हैं।

‘एसोसिएशन फार डैमोक्रेटिक रिफाम्र्स’ (ए.डी.आर.) तथा ‘नैशनल इलैक्शन वाच’ द्वारा चुनाव आयोग में प्रत्याशियों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों के विश्लेषण के अनुसार बिहार के महागठबंधन में 81 में से आपराधिक पृष्ठभूमि
 के 46 विधायकों के साथ राजद शीर्ष पर है जबकि जद (यू) के 71 में से 37, भाजपा के 53 में से 34 और कांग्रेस के 27 में से 16 विधायक आपराधिक रिकार्ड वाले हैं।
 
माकपा के तीनों विधायकों के अलावा रालोद, सपा और लोजपा के एक-एक विधायक के विरुद्ध मुकद्दमा दर्ज है। इनमें से 12 विधायकों पर हत्या, 26 पर हत्या के प्रयास, 9 के विरुद्ध अपहरण और 13 के विरुद्ध रंगदारी मांगने के गंभीर आरोपों में मामले दर्ज हैं। अब हाल ही में सम्पन्न केरल, तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल और पुड्ड़चेरी के निर्वाचित उम्मीदवारों में भी करोड़पतियों की भरमार है और इनमें से एक तिहाई विधायकों के विरुद्ध फौजदारी के मामले दर्ज हैं। 
 
विश्लेषण के अनुसार 812 उम्मीदवारों में से पुड्ड़चेरी में सर्वाधिक 83' उम्मीदवार करोड़पति थे, इसके बाद तमिलनाडु (76'), असम में आधे से अधिक (57'), केरल में 44' और पश्चिम बंगाल में 34' उम्मीदवार करोड़पति थे। 2011 की तुलना में करोड़पति विधायकों की संख्या में इस वर्ष वृद्धि हुई है। असम में पिछली बार 39', केरल में 25', पुड्ड़चेरी में 63', तमिलनाडु में 51' और बंगाल में 15' विधायक करोड़पति थे। इस वर्ष पुड्ड़चेरी के 30 विधायकों में से 25 करोड़पति पाए गए। इसी प्रकार तमिलनाडु में 223 विधायकों में से 170 विधायक करोड़पति हैं। 
 
5 राज्यों के निर्वाचित विधायकों में सर्वाधिक औसत सम्पत्ति (13.45 करोड़  रुपए), पुड्ड़चेरी के विधायकों की पाई गई। इसके बाद तमिलनाडु (8.21 करोड़ रुपए) और केरल (2.82 करोड़ रुपए) का स्थान है। इन हल्फिया बयानों के अनुसार 186 विधायकों ने कभी भी इंकम टैक्स रिटर्न दाखिल न करने की बात स्वीकार की है। केरल में ऐसे विधायकों की संख्या सबसे अधिक (60') है। इसके बाद बंगाल (20') का स्थान है।
 
इस बार के विजेता उम्मीदवारों में से 294 अर्थात लगभग 36% उम्मीदवारों के विरुद्ध आपराधिक केस हैं। इनमें से 176 के विरुद्ध हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और डकैती जैसे आरोप हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सर्वाधिक 83 विधायक (62%) केरल में हैं। पुड्ड़चेरी भले ही बहुत छोटा और शांत राज्य माना जाता है परंतु आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को चुनने में यह बहुत आगे है। यहां 11 विधायक, बंगाल में 88 विधायक (दोनों 37%) और इसके बाद तमिलनाडु में 75 विधायक (34%) आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं। इन सभी पर कुल 1043 मुकद्दमे दर्ज हैं। 
 
अलबत्ता बंगाल में गंभीर अपराधों में संलिप्त विधायकों की संख्या सर्वाधिक (32%) है और इस लिहाज से असम का रिकार्ड बहुत साफ-सुथरा पाया गया है। पार्टी के हिसाब से देखें तो माक्र्सी पार्टी के 74%, भाकपा के 65%, द्रमुक के 49, कांग्रेस के 37, तृणमूल कांग्रेस के 27 तथा भाजपा के 12.5 प्रतिशत विधायकों का आपराधिक रिकार्ड है। 
 
इन पांचों राज्यों में चुनी गई महिला विधायकों की संख्या मात्र 77 है और जहां तक इनकी आयु का प्रश्र है, चुने गए 812 उम्मीदवारों में से 5 की आयु 80 वर्ष, 38 उम्मीदवार 71 से 80 वर्ष के बीच, 187 उम्मीदवार 61 से 77 वर्ष के बीच, 278 उम्मीदवार 51 से 60 वर्ष के बीच, 212 उम्मीदवार 41 से 50 वर्ष, 87 उम्मीदवार 31 से 40 वर्ष व 5 उम्मीदवार 25 से 30 वर्ष आयु वर्ग के हैं। 
 
स्पष्ट है कि राजनीति में धन-बल तथा दूसरे हथकंडों का प्रयोग करने वाले उम्मीदवारों का दखल बहुत बढ़ चुका है इसीलिए 20 मई को ए.डी.आर. के संस्थापक सदस्य प्रो. जगदीप छोकर ने इन सभी प्रतिनिधियों के शपथ पत्रों की 6 मास के भीतर जांच करने का सुझाव दिया है ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि इन्होंने जो जानकारी दी है वह सही है या गलत। ऐसे में यदि धनबली और  बाहुबली ही हमारी संसद और विधानसभाओं में प्रवेश पाते रहेंगे तो फिर जनहितकारी कानून कैसे बनेंगे और उन्हें लागू कौन और कैसे करेगा?

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