व्हील चेयर बास्केटबाल का खेल बदल रहा महिलाओं का जीवन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Feb, 2018 03:54 AM

wheelchair basketball game changing womens life

भारत में खिलाडिय़ों के प्रति उदासीनता कोई नई बात नहीं है। विशेषकर पैरा खिलाडिय़ों के प्रति हालांकि पिछले पैरा ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी अधिक पदक लाए थे परंतु अभी भी कुछ बदला नहीं है।ऐसे में सेना के सेवानिवृत्त इंजीनियर एन्थनी परेरा जो 1971 के...

भारत में खिलाडिय़ों के प्रति उदासीनता कोई नई बात नहीं है। विशेषकर पैरा खिलाडिय़ों के प्रति हालांकि पिछले पैरा ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी अधिक पदक लाए थे परंतु अभी भी कुछ बदला नहीं है। 

ऐसे में सेना के सेवानिवृत्त इंजीनियर एन्थनी परेरा जो 1971 के भारत-पाक युद्ध में घायल हो जाने के कारण पैरा एथलीट बने, इस समय एक प्रशंसनीय प्रयास में जुटे हैं और थाईलैंड में मार्च, 2018 में होने जा रही एशियन पैरा गेम्स में भाग लेने वाली भारतीय व्हीलचेयर बास्केटबाल टीम के कोच हैं। भारतीय महिला व्हीलचेयर बास्केटबाल टीम के चयन ट्रायल पिछले दिनों चेन्नई के एक कालेज में सम्पन्न हुए। अंतर्राष्ट्रीय पैरा टूर्नामैंट में भारतीय महिला बास्केटबाल टीम के भाग लेने का यह पहला मौका है। 

यदि यह टीम इंडोनेशिया में अक्तूबर में खेले जाने वाले फाइनल में पहुंचने में सफल रही तो इनके लिए 2020 में होने वाले अगले पैरालिम्पिक खेलों में भाग लेने का प्रबल अवसर है। इन ट्रायलों के दौरान महिलाओं ने 9 दिनों तक 7-7 घंटे प्रतिदिन प्रैक्टिस की और खूब पसीना बहाया। रेखा (16) इन ट्रायलों में भाग लेने वाली सबसे छोटी आयु की खिलाडिऩ थी जो एक वर्ष की आयु में ही विकलांग हो गई थी परंतु उसने व्हीलचेयर का इस्तेमाल 3 वर्ष पूर्व ही शुरू किया है और इस समय सबसे तेज खिलाडिऩों में से एक गिनी जाती है। उसका कहना है कि कुछ भी असंभव नहीं है। 

व्हील चेयर बास्केटबाल की आधिकारिक नैशनल फैडरेशन ‘द व्हीलचेयर बास्केटबाल फैडरेशन आफ इंडिया’ की अध्यक्ष माधवी लता का कहना है कि, ‘‘खेल ने ही मेरा जीवन बचाया है। बाकी सभी खेलों में खिलाडिय़ों को सुविधाओं की कमी महसूस होती है परंतु इस खेल के लिए तो अच्छी व्हीलचेयर खरीदने के लिए फैडरेशन के पास पैसे नहीं हैं।’’ इस समय फैडरेशन 15 सदस्यीय टीम को थाईलैंड भेजने के लिए विमान का किराया जुटाने के लिए संघर्ष में लगी है। चेन्नई में होटलों, वाहनों और शौचालयों की संतोषजनक सुविधा न होने के कारण खिलाडिऩों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद इनके उत्साह में कोई कमी देखने को नहीं मिली तथा सभी का कहना है कि खेल ने उनके जीवन में संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। 

टीम की कप्तान काॢतकी पटेल (34) 2008 में एक कार दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी की चोट का शिकार होने से पूर्व भी बास्केटबाल ही खेला करती थी। चोटिल होने के बाद उसने बैंडमिंटन खेलना शुरू कर दिया लेकिन बाद में पुन: बास्केटबाल को ही अपना लिया। इन चयन ट्रायलों के दौरान खिलाडिय़ों, प्रशासकों और कोचों सभी का यही कहना था कि बास्केटबाल ने किस प्रकार उनका जीवन बदल दिया है और उन्हें स्वतंत्रता और सम्मान पूर्वक जीने के योग्य बनाया है लेकिन उन्हें अधिक सुविधाओं की जरूरत है जो इन्हें मिलनी ही चाहिए जिसके लिए  सरकारी व निजी संस्थाओं को आगे आना चाहिए।

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