‘दास्तान-ए-रफी’: सचमुच ‘जैंटलमैन’ थे मोहम्मद रफी

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2017 12:46 AM

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क्या आप संजय गांधी बनाम किशोर कुमार प्रकरण के बारे में जानते

क्या आप संजय गांधी बनाम किशोर कुमार प्रकरण के बारे में जानते हैं? और क्या ये भी जानते हैं कि किस प्रकार रफी साहिब किशोर के बचाव में उतरे थे? ये उन प्रमुख सवालों में से कुछ एक हैं जो बालीवुड के दीवानों के दिलो-दिमाग पर छाए रहते हैं। अपनी फिल्म ‘दास्तान-ए-रफी’ के माध्यम से रजनी आचार्य बालीवुड के इस सबसे करिश्माई और बहुआयामी गायक के जीवन की अंतरंग झांकी हमारे सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं। 

उनका कहना है, ‘‘मोहम्मद रफी बिल्कुल ही अलग तरह के गायक थे। वह शास्त्रीय संगीत में बहुत अच्छी तरह पारंगत थे। हालांकि वह पढ़े-लिखे नहीं थे, उनका रवैया ही मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत था।’’ 

रजनी कहते हैं कि भारत एक संगीतप्रेमी देश है और हम सभी लोग अपने दिन की शुरूआत संगीत सुनते हुए ही करते हैं। ऐसे लोगों के लिए एक संगीतकार की जीवन कहानी से बढ़कर अधिक रोचक क्या बात हो सकती है? 

रजनी की नजरों में ‘‘रफी एक महान अभिनेता भी थे। जब वह दिलीप कुमार के लिए गाते थे तो वह बिल्कुल दिलीप कुमार ही बन जाते थे। इसी प्रकार वह शम्मी कपूर, जॉनी वाकर इत्यादि के व्यक्तित्व को भी जीवंत कर देते थे। यह एक ऐसी कला है जो आजकल मुश्किल से ही किसी गायक में दिखाई देती है। हम में से कौन है जिसके पास रफी के गाए गानों की अपनी-अपनी पसंदीदा सूची न हो।’’

25 से भी अधिक वर्षों से फिल्म उद्योग से संबंधित रजनी आचार्य का अपना प्रोडक्शन हाऊस है और वह उन लोगों के बारे में बहुत गहरी जानकारी रखते हैं जिनकी बदौलत यादगारी फिल्मों का निर्माण होता है। 5 वर्ष पूर्व उन्होंने ‘दास्तान-ए-रफी’ पर शोध कार्य शुरू किया था और अब तक इस पर 55 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। बहुत से प्रोडक्शन हाऊसों ने रफी साहिब से संबंधित फुटेज उन्हें सौंपने से इंकार कर दिया था। यहां तक कि जिन लोगों के उन्होंने साक्षात्कार लेने का प्रयास किया उनमें से भी कई एक ने पैसों की मांग की। आखिर 120 दिन की शूटिंग के बाद उन्होंने फिल्म मुकम्मल कर ली। 

इसकी कुछ शूटिंग पाकिस्तान के अलावा पंजाब के गांव कोटला सुल्तान सिंह में भी हुई है। जहां उन्होंने रफी साहिब के भाई, बेटे और दोस्तों से बातचीत की। उन्होंने शमशाद बेगम, गुलाम अली, लता मंगेशकर, सम्पूर्ण कपूर खानदान सहित  कुल 60 लोगों से बातचीत की। इसी बातचीत के बीच-बीच रफी साहिब के संबंधित गीतों की चाशनी भी बिखेरी गई है। 

फिल्म में इस विश्व प्रसिद्ध गायक के करियर में आए उतार-चढ़ावों का भी चित्रण किया गया है। आचार्य लिखते हैं कि वह उन बहुत ही कम गायकों में से एक थे जो एक बार नीचे गिरने के बाद भी फिर से उभरने में सफल हुए थे। 

जब मीडिया की दृष्टि से रफी का करियर समाप्त होने पर आ गया था तो किशोर कुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर यह अनुरोध किया था कि रफी को नकारना इतना आसान काम नहीं। जब संजय गांधी ने पार्टी फंड जुटाने के लिए संगीत कार्यक्रमों हेतु किशोर कुमार से सम्पर्क किया तो किशोर ने अपनी फीस की मांग की। इस पर भड़के हुए संजय ने रेडियो पर उनके गाने ही बंद करवा दिए। फिल्म निर्माताओं ने उन्हें काम देना बंद कर दिया। 

लोगों ने आकर रफी साहिब को बताया कि अब उनके लिए बहुत शानदार अवसर पैदा हो गया है। लेकिन रफी साहिब ने स्वयं संजय गांधी से सम्पर्क करके मुफ्त में गाने की पेशकश करने की बजाय किशोर कुमार पर लगी पाबंदी उठाने को कहा। 

रजनी आचार्य की फिल्म में रफी पर केवल एक गायक के रूप में ही नहीं बल्कि एक महान इंसान के रूप में फोकस किया गया है। रजनी का कहना है, ‘‘हमने जितने भी लोगों से बात की, एक-एक ने कहा कि रफी सचमुच जैंटलमैन थे।’’-(साभार ‘हिंदू’)

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