अकाली-भाजपा रिश्तों में ‘नया मोड़’

Edited By ,Updated: 18 Jan, 2015 03:28 AM

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अकाली दल-भाजपा के ‘कभी प्यार कभी नफरत’ के रिश्ते में एक नया मोड़ आया है। गत सप्ताह तक एक-दूसरे के विरुद्ध उनकी सार्वजनिक आक्रामक मुद्रा किसी से छिपी हुई नहीं है लेकिन अब फिर यह ...

(बी.के. चम) अकाली दल-भाजपा के ‘कभी प्यार कभी नफरत’ के रिश्ते में एक नया मोड़ आया है। गत सप्ताह तक एक-दूसरे के विरुद्ध उनकी सार्वजनिक आक्रामक मुद्रा किसी से छिपी हुई नहीं है लेकिन अब फिर यह उस समय सद्भावना में बदल गई जब वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप में एक-दूसरे को गले लगाया और घोषणा की कि उनकी पाॢटयां कभी भी अलग नहीं होंगी। गठबंधन सहयोगियों के मध्य जिन आक्रामक मुद्राओं ने गहरी खाई पैदा कर दी थी उनकी जड़ें नशीले पदार्थों, धर्मांतरण तथा पंजाब की मांगों के प्रति केन्द्र के असहयोगपूर्ण रवैये के संबंध में उठे विवाद में थीं। राज्य सरकार ने मोदी-नीत भाजपा सरकार से वित्तीय सहायता हासिल करने की तो विशेष तौर पर उम्मीद लगा रखी थी।

नशीले पदार्थों के मुद्दे पर गठबंधन सहयोगी एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए शब्द-युद्ध जारी रखे हुए थे। यह सारा कुछ उनके तनावग्रस्त रिश्तों की पृष्ठभूमि में चल रहा था, जिनके खराब होने के लिए अन्य बातों के साथ-साथ एक-दूसरे के परम्परागत जनाधार में सेंध लगाने के प्रयास भी जिम्मेदार थे।

मोदी-नीत सरकार के सत्तासीन होने और भाजपा द्वारा कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव जीत लेने के बाद संतुलन भाजपा के पक्ष में झुकना शुरू हो गया था। अनेक राजनीतिक रंगों के सिख नेताओं, खास तौर पर कुछ प्रमुख कांग्रेसियों ने अपनी वफादारियां अकाली दल के साथ जोड़ ली थीं।

चूंकि एक-दूसरे के परम्परागत जनाधार में अपने प्रभाव का विस्तार करने की रस्साकशी चल रही थी इसलिए नशीले पदार्थों का मुद्दा अखबारी सुर्खियों में छा गया। यह मुद्दा तब विवाद का केन्द्र बन कर उभरा जब सरगना भोला द्वारा चलाए जा रहे बहुकरोड़ी ड्रग घोटाले में राजस्व मंत्री एवं सुखबीर सिंह बादल के साला साहेब बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम उछला। इस मामले में कार्रवाई करने व मंत्रिमंडल से मजीठिया को बर्खास्त करने की मांग लेकर भाजपा ने नशीले पदार्थों के विरुद्ध अभियान तेज करने का फैसला लिया।

इसने 22 जनवरी को अमृतसर से अपने अध्यक्ष अमित शाह द्वारा इस अभियान को लांच किए जाने का भी फैसला लिया। इससे अकाली नेतृत्व हिल-सा गया और भाजपा अध्यक्ष के अभियान की पहले ही हवा निकालने के लिए इसने भारत-पाक सीमा पर 3 स्थानों पर नशीले पदार्थों के विरुद्ध जागरूकता पैदा करने के लिए धरने आयोजित किए।

जब परीक्षा की घड़ी आती है तो राजनीतिज्ञों की विश्वसनीयता और दंभ के परखच्चे उड़ते हैं। वरिष्ठ अकाली और भाजपा नेताओं के ये ‘गुण’ वर्तमान विवादों के संबंध में उनके स्टैंड से जगजाहिर हो गए। 8 जनवरी को मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि ‘‘राज्य में नशाखोरी की समस्या इतनी गम्भीर नहीं जितनी यह प्रचारित की जा रही है।’’

9 जनवरी को उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने कहा कि ‘‘नशीले पदार्थों के मुद्दे को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। यह इतना गम्भीर नहीं जितना बताया जा रहा है।’’

इन टिप्पणियों को न केवल समस्त राजनीतिक पार्टियों के नेताओं द्वारा व्यक्त लगभग सर्वसम्मत राय (कि पंजाब में नशाखोरी व्यापक पैमाने पर फैली हुई है) की रोशनी में बल्कि अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह के इस बयान की रोशनी में देखे जाने की जरूरत है कि ‘‘नशाखोरी की समस्या सचमुच ही गम्भीर है। यह पंजाब की एक पूरी की पूरी पीढ़ी को बर्बाद किए जा रही है।’’ जब चुनाव जीतने की बात चलती है तो अवसरवाद के हाथों आदर्शवाद पराजित हो जाता है।

भाजपा ने अमित शाह के 22 जनवरी के अभियान की योजना को रद्द कर दिया। इसकी यह दलील दोनों युद्धरत पक्षों के बीच स्पष्ट रूप में पर्दे के पीछे हुई संधि पर पर्दा डालने का केवल एक बहाना मात्र थी कि इस कार्यक्रम को दिल्ली विधानसभा चुनाव के कारण रद्द किया गया है। जब यह घोषणा ही हो गई थी कि दिल्ली चुनाव के परिणाम 10 फरवरी को आएंगे तो अमित शाह के लिए स्पष्ट रूप में दिल्ली चुनाव के संबंध में कोई व्यस्तता नहीं रह गई थी।

नशीले पदार्थों के मुद्दे पर वरिष्ठ अकाली और भाजपा नेताओं का दम्भपूर्ण रवैया एक सप्ताह से भी कम अवधि में तब बेनकाब हो गया जब उन्होंने मुक्तसर माघी मेले के मंच से 14 जनवरी को घोषणा की कि नशीले पदार्थों का मुद्दा ‘‘कांग्रेस और इसके साथ-साथ मीडिया द्वारा वास्तविकता से अधिक उछाला गया।’’ राजनीतिज्ञ जब भी ऐसी स्थिति में फंसे होते हैं जहां उन पर हल्ला बोला जा सकता है या वे अपना बचाव नहीं कर सकते तो सदा अपनी कमजोरियों और अवसरवादी रवैये पर पर्दा डालने की बजाय मीडिया को बलि का बकरा बनाते हैं।

अमित शाह का नशाखोरी की लानत के विरुद्ध अभियान रद्द होने और नशाखोरी व धरनों को लेकर एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए उनके मध्य चल रहे प्रचंड युद्ध के बंद होने के बाद एक सप्ताह से भी कम अवधि में यह बयान हमारे सामने आया है। गांधीनगर में प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर बोलते हुए 9 जनवरी को बादल ने भी कहा कि पहले जब पंजाबियों को ‘आतंकी’ कहा जाता था तो उन्हें जो पीड़ा महसूस होती थी वही आजकल तब होती है जब पंजाबियों को ‘नशेड़ी’ होने का उलाहना दिया जाता है।

‘‘पंजाबियों को पहले आतंकी और गत कुछ समय से नशेड़ी’’ का नाम दिए जाने पर बादल साहिब की व्यथा हमारी भी व्यथा है और हम इसके लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन सवाल पैदा होता है कि पंजाब को यह विशेषण दिलाने के लिए जिम्मेदार कौन है?

नशाखोरी के मुद्दे पर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। यह कोई लुकी-छुपी बात नहीं कि कुछ राजनीतिज्ञ नशीले पदार्थों की तस्करी के मामले में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार में कुछ अकाली नेताओं की संलिप्तता के बारे में मीडिया में रिपोर्टें छपती रही हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि नशीले पदार्थों की चुनौती के संबंध में मीडिया के जिस प्रचार को अतिशयोक्तिपूर्ण बताया जा रहा है, उसकी बदौलत शीर्ष अकाली नेतृत्व इस व्यापक लानत को रोकने के लिए नींद से जागा है।

श्री प्रकाश सिंह बादल का यह कहना गलत है कि पंजाबियों को पंजाबी होने के नाते ही आतंकवादी कहा जा रहा है। वे सचमुच ही आतंकी नहीं हैं। कोई भी पंजाबियों और सिखों को उनकी इसी पहचान के आधार पर आतंकी नहीं कहता। छद्म रूप में सी.आई.ए. और सीधे रूप में आई.एस.आई. द्वारा समर्थित मुट्ठी भर सिख उग्रपंथी ही पंजाब में आतंकवाद और अलगाववाद फैलाने के लिए जिम्मेदार थे। उन्हें आम पंजाबियों का समर्थन हासिल नहीं था। वे तो पंजाब के जट्ट सुपरकॉप के.पी.एस. गिल के प्रशंसक थे जिन्होंने आतंकियों का दमन सफलतापूर्वक किया था।

ये पंजाब की राजनीति की त्रासदी है कि कुछ कांग्रेसी और अकाली नेता आतंकी तत्वों को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार थे। जब केन्द्रीय गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी ने अकालियों में अंतर्कलह पैदा करने के लिए जरनैल सिंह भिंडरांवाले को आगे बढ़ाया तब तक उसे कोई जानता तक नहीं था। उसके बाद अकाली नियंत्रित एस.जी.पी.सी. ने  भिंडरांवाला और उसके सशस्त्र गिरोह को श्री दरबार साहिब कम्पलैक्स में शरण लेने की अनुमति दे दी और उन्होंने आतंकी हिंसा फैलाने के लिए इसे एक किले में बदल दिया। बाद में अकाली नेतृत्व ने आप्रेशन ब्ल्यू स्टार दौरान मारे गए उग्रवादियों को शहीद करार दे दिया और दरबार साहिब परिसर के अंदर ही उनकी यादगार निर्मित कर दी।

अतीत और वर्तमान के घटनाक्रम मांग करते हैं कि पंजाब का भला चाहने वाले राजनीतिज्ञों को आतंकवाद और नशेखोरी की लानत जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर पाखंडी रवैये का त्याग कर देना चाहिए।

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