Edited By ,Updated: 27 Aug, 2015 02:10 PM
मैं इक इकसार हूं मेरा न हो सका कोई यहां,
हर निगाह में पड़ी पर कोई न जां सका....
मैं इक इकसार हूं मेरा न हो सका कोई यहां,
हर निगाह में पड़ी पर कोई न जां सका यहां |
सेहरा की धूप में अक्स मेरा फ़ीका पड़ गया,
आबगीने में देखने लायक न बचा रहा यहां |
किसी ने चाँद को देखा कोई दागदार रहा है,
अमावस में इक शख्स होले से गुजरा यहां |
पनाहों में है जो क़त्ल करने की आरज़ू लिए,
वो दो वक़्त की रोटी को मोहताज़ रहा यहां |
सहरा-सहरा गुलशन-गुलशन रूह फिरी मेरी,
मुझे ढूढने वाला खुद भी गुमशुदा रहा यहां |
चंद वा-वाही के लम्हों के लिए नीलाम हए,
यूँ कोई राख ज़मीर के साथ छुप रहा यहां |
अनुभूति गुप्ता