‘आदर्श ग्राम योजना’ से बनेगा आदर्श भारत

Edited By ,Updated: 05 Oct, 2015 01:10 AM

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने विदेशी दौरों के माध्यम से जिस प्रकार आप्रवासी भारतीयों को आत्मीयता का परिचय दिया है

(अविनाश राय खन्ना): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने विदेशी दौरों के माध्यम से जिस प्रकार आप्रवासी भारतीयों को आत्मीयता का परिचय दिया है उसी भाव से उन्होंने विदेशी उद्योगपतियों और नेताओं को भी अपने जीवन के माध्यम से भारतीय सभ्यता का एक महान रूप दिखाने में सफलता हासिल की है। विदेशी दौरों के माध्यम से उन्होंने अनेकों नए विचारों को एकत्र भी किया है जिन्हें भारत में लागू करने की नितांत आवश्यकता थी। हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति नि:संदेह मानवता की सभी कसौटियों पर खरी उतरती है।

बेशक, हमारा देश आज भी एक कृषि प्रधान देश है, परन्तु कृषि प्रधान समाज के लिए यह आवश्यक नहीं है कि गांवों में गंदगी का ढेर जगह-जगह लगा हो, गांवों के जौहड़ मच्छर पैदा करने के स्थान बन जाएं, खुले में शौच की परम्पराएं बेरोक-टोक चलती रहें और छोटे-बड़े हर प्रकार के अपराधों पर कोई रोकथाम न लगे, पंचायतें अपना प्रभाव समाप्त करती रहें और जिस कृषि प्रधान समाज के बल पर हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता का आदर्श आदिकाल में पैदा हुआ था वह आदर्श समाप्त होते जाएं।
 
नरेन्द्र मोदी के मन में भारत के समग्र विकास की परिकल्पना प्रबल रूप से विद्यमान है। वह हर योजना पर चर्चा करते समय इस बात का बड़ी बारीकी से ध्यान रखते हैं कि किसी भी बड़ी से बड़ी योजना का लाभ छोटे से छोटे स्तर के ग्रामीण व्यक्ति को किस प्रकार मिलेगा और कहीं उसे किसी प्रकार की हानि तो नहीं होगी। वह जब विदेशी उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करते हैं तो स्वाभाविक रूप से उन्हें स्मरण रहता है कि भारत के गांवों की दशा सुधरनी चाहिए। गांव का व्यक्ति भारतीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वाला दिखाई देना चाहिए। सभ्य नागरिकों के अतिरिक्त गांवों की भौतिक दशा जैसे- सड़कें, सफाई, बिजली, पानी इत्यादि भी आधुनिक शैली में विकसित होनी चाहिए।
 
इस चिंतन के साथ उन्होंने अक्तूबर 2014 में ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ की घोषणा की। इस योजना का नाम ‘ग्राम विकास योजना’ भी रखा जा सकता था यदि उद्देश्य केवल गांव के भौतिक विकास तक सीमित होता। ‘विकास’ के स्थान पर ‘आदर्श’ शब्द के पीछे भी बहुत बड़ी दार्शनिकता छिपी है। इस योजना के माध्यम से मोदी ने दो मुख्य महान नेताओं महात्मा गांधी तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचार को भारतीय समाज में क्रियान्वित करने का प्रयास किया है। उनका यह प्रयास केवल उनके अपने भाजपा सांसदों तक ही सीमित नहीं है बल्कि केन्द्रीय योजना के माध्यम से उन्होंने इस प्रयास में राजनीतिक दायरे से ऊपर उठकर सभी दलों के सांसदों को शामिल होने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है।
 
महात्मा गांधी का प्रबल विचार था कि ‘ग्राम स्वराज’ नैतिक मूल्यों पर ही मजबूत हो सकता है। एक आदर्श ग्राम को विवादों, झगड़ों, चोरियों आदि से मुक्त होना चाहिए जिससे लोग भेदभाव रहित वातावरण में जी सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी के इन विचारों के बल पर ही आदर्श योजना का शुभारम्भ करते हुए कहा कि गांव में प्रकाश केवल बिजली के खंभों से ही नहीं आएगा बल्कि सच्चा प्रकाश जीवन मूल्यों, अच्छी शिक्षा तथा सामूहिक भावनाओं से पैदा होगा। देशभक्ति, आत्मविश्वास उतने ही आवश्यक हैं जितना भौतिक सुख-सुविधाएं जैसे- अच्छी सड़कें, बिजली, पानी तथा पूर्ण स्वच्छ वातावरण जिससे लोगों का स्वास्थ्य सदैव उत्तम बना रहे। इसके लिए नशों से मुक्ति तथा स्वास्थ्यवद्र्धक परम्पराओं का विकास, वृद्ध नागरिकों का सम्मान आदि अत्यंत आवश्यक हैं।
 
जयप्रकाश नारायण का मानना था कि सामूहिक लोकतंत्र की शुरूआत गांव से ही हो सकती है जहां प्रत्येक व्यक्ति गांव के विकास से संबंधित आवश्यकताओं का निर्धारण करे और सामूहिक निर्णयों के माध्यम से गांव के विकास पर ईमानदारी से धन खर्च हो। इस विचार का अनुमोदन करते हुए प्रधानमंत्री ने आदर्श ग्राम योजना के माध्यम से यह सुनिश्चित कराने का आदेश दिया है कि गांव में भोजन की किसी प्रकार से कमी न हो, कोई व्यक्ति बेरोजगार न हो, कोई अशिक्षित न हो, ग्रामीण उद्योग प्रगति करें, पूर्ण स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण को सुनिश्चित कराते हुए सभी भौतिक सुविधाएं गांवों में भी सुनिश्चित कराई जाएं।
 
इसके लिए प्रत्येक सांसद को प्रारम्भ में एक-एक गांव चुनने का निवेदन किया गया और उसे आदर्श ग्राम की तरह विकसित करने के लिए प्रथम दो वर्ष का समय दिया गया। सांसद के 5 वर्षीय कार्यकाल में शेष 3 वर्षों में उन्हें एक-एक वर्ष के लिए एक-एक और गांव चुनकर उसी प्रकार विकसित करना होगा जैसे प्रथम गांव।
 
इस योजना के माध्यम से गांव के विकास को मुख्यत: 7 भागों में बांटा गया है। व्यक्तिगत विकास के नाम पर नैतिक मूल्यों, स्वास्थ्यवद्र्धक परम्पराओं तथा परस्पर सम्मान की आदतों को गांव के लोगों में स्थापित करना। मानव विकास के नाम पर स्वास्थ्य सुविधाएं, भ्रूण हत्या जैसी  कुरीतियों को समाप्त करना, स्वास्थ्यवद्र्धक भोजन, शिक्षा के लिए हर प्रकार की सुविधाएं। सामाजिक विकास के नाम पर गांव में अपने से वृद्ध लोगों का सम्मान, सामूहिक सेवा कार्यों के लिए तैयार रहना, हर प्रकार के अपराध से मुक्त वातावरण तथा अनुसूचित जाति, जनजाति या किसी अन्य प्रकार के भेदभाव को समाप्त करके एकीकृत समाज की रचना। 
 
आर्थिक विकास के नाम पर खेती में नए-नए प्रयोग, पशुपालन तथा दुग्ध उत्पादन में वृद्धि, ग्रामीण लघु उद्योगों को प्रोत्साहन तथा गांवों को उस आर्थिक विकास के स्तर पर ले जाना जिससे आदर्श ग्राम एक पर्यटन स्थल की तरह विकसित हो सके। पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण, वर्षा के पानी को एकत्र करना, प्रत्येक घर में शौचालय का निर्माण, मूलभूत सुविधाओं में स्वच्छ पेयजल, मुख्य सड़क मार्गों से गांव को जोड़ते हुए सड़क मार्ग, प्रत्येक घर में बिजली, बैंक, ए.टी.एम. तथा इंटरनैट सुविधाएं। स्वराज प्रशासन के नाम पर गांवों को भी विद्युत प्रशासन के तरीकों से जोडऩा, हर प्रकार के प्रमाण पत्र आदि सरलता से उपलब्ध कराना तथा पंचायतों के निर्वाचन सर्वसम्मति के आधार पर करने की परम्पराएं विकसित करना।
 
मैंने पंजाब के होशियारपुर जिले में ‘आदमबल’ गांव को आदर्श ग्राम योजना के अन्तर्गत गोद लेने के उपरांत उपरोक्त सभी उद्देश्यों का क्रियान्वयन करने के लिए स्वयं रुचि लेना प्रारम्भ कर दिया है। मेरा अनुभव है कि केन्द्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए कोष के बल पर भौतिक विकास कार्यक्रमों से भी अधिक आवश्यक है गांवों के अन्दर व्यक्तिगत विकास, मानव विकास और सामाजिक विकास के लिए गांव के लोगों को शामिल करके समय-समय पर भावनात्मक दिशा-निर्देश देना। पंचायत को पूर्ण स्वायत्तता का अहसास करवाना। मेरा विचार है कि भारत के प्रत्येक संसद सदस्य को आदर्श ग्राम योजना के माध्यम से विकास की एक नई डगर प्रस्तुत करनी चाहिए। 
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