हिन्दी भाषी क्षेत्र में भाजपा को झटका, विजय रथ पर लगी लगाम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Mar, 2018 03:29 AM

bjp jolts in hindi speaking area rein on vijay rath

मार्च के भंवरों से सावधान रहना चाहिए। उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनावी हार तथा चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा के राजग से अलग होने के बाद भाजपा को ये भंवरे काटने लगे हैं। इससे पहले तेदेपा के 2 मंत्रियों ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने...

मार्च के भंवरों से सावधान रहना चाहिए। उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनावी हार तथा चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा के राजग से अलग होने के बाद भाजपा को ये भंवरे काटने लगे हैं। इससे पहले तेदेपा के 2 मंत्रियों ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिए जाने के विरोधस्वरूप त्यागपत्र दे दिया था। क्या इन घटनाक्रमों से भारतीय राजनीति और विशेषकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बदलाव आएगा? 

यह सच है कि 2019 के आम चुनावों के संबंध में उपचुनावों में तीन सीटों पर हार के आधार पर किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता किन्तु सच यह है कि भाजपा को उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर सीट पर हार का सामना करना पड़ा है। गोरखपुर सीट का प्रतिनिधित्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1991 से कर रहे हैं और उनके उपमुख्यमंत्री फूलपुर सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके अलावा बिहार के अररिया में राजद द्वारा अपनी सीट बचाने से स्पष्ट है कि भाजपा के लिए स्थिति अच्छी नहीं है और यह मोदी-शाह के लिए एक चेतावनी है। इन चुनावों के परिणामों के बाद लोकसभा में भाजपा की सदस्य संख्या 282 से घटकर 274 रह गई है। 

पिछले 5 महीनों में भाजपा को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार में लोकसभा की 5 सीटों के उपचुनावों तथा मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में विधानसभा की सीटों के लिए उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। यह भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इन सभी राज्यों में भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस उसे चुनौती दे रही है। भारी अंतर के साथ कांग्रेस की जीत बताती है कि इन राज्यों में भाजपा का कमजोर नेतृत्व है, उसके प्रशासन के विरुद्ध लहर चल रही है, पार्टी में अंदरूनी मतभेद हैं तथा पार्टी जीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी तथा पार्टी अध्यक्ष शाह पर निर्भर है। 

वर्ष 2014 में मोदी की सुनामी के बाद भाजपा को ऐसी चुनावी हार का सामना नहीं करना पड़ा और उत्तर प्रदेश में यह हार और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2014 में उसने 80 में से 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी और पिछले वर्ष विधानसभा चुनावों में 403 सीटों में से 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस हार का कारण केवल समाजवादी पार्टी के अखिलेश और बसपा की मायावती का एक साथ आना और पार्टी में अति आत्मविश्वास नहीं है अपितु भाजपा में अंदरूनी कलह, शहर और ग्रामीण मतदाताओं का भाजपा से मोहभंग होना, पार्टी कार्यकत्र्ताओं का निराश होना क्योंकि मंत्री उनकी शिकायतों का निवारण नहीं कर रहे हैं और स्थानीय नेता पार्टी के हितों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। 

पिछले सप्ताह गोरखपुर और फूलपुर में बुआ-भतीजे का नारा 2019 के आम चुनावों के लिए एक मॉडल तैयार कर सकता है और उन्हें दीर्घकालीन गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। सपा-बसपा का गठबंधन एक अजेय जातीय गठबंधन है जिसका तात्पर्य है कि राज्य में यादव-मुस्लिम, दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के 40-50 प्रतिशत मतदाता एकजुट होंगे और त्रिकोणीय मुकाबले में जीत के लिए केवल 30 प्रतिशत मत चाहिएं इसलिए क्षेत्रीय क्षत्रप जातीय समीकरणों पर निर्भर रहेंगे और भगवा संघ को हिन्दू वोटों का धु्रवीकरण करने से रोकेंगे। मायावती इस जीत से खुश हैं क्योंकि 2014 के चुनावों में बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी और पिछले वर्ष विधानसभा चुनावों में बसपा केवल 17 सीटें जीत पाई थी। 1993 के बाद पहली बार मायावती ने सपा को अपना समर्थन दिया है। 

सपा-बसपा की जीत ने विपक्षी पाॢटयों को भाजपा विरोधी मंच तैयार करने के लिए उत्साहित किया है ताकि मोदी के विजय रथ पर लगाम लग सके। अखिलेश और मायावती लोकसभा चुनावों के लिए बराबर सीटों पर लडऩे के लिए सिद्धांतत: सहमत हुए हैं। अब इन 2 पूर्व प्रतिद्वंद्वी पाॢटयों की परीक्षा कैराना लोकसभा उपचुनाव में होगी। इस परिणाम से महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन तथा तमिलनाडु में कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन के पुन: बनने के आसार बनेंगे तथा साथ ही इससे भाजपा के नाराज सहयोगियों को अपनी शिकायतें आगे बढ़ाने का मौका मिलेगा। अररिया उपचुनाव में राजद की जीत बताती है कि जेल में रहकर भी लालू का प्रभाव बरकरार है और इससे यादव परिवार के प्रति सहानुभूति पैदा हुई है। सपा, बसपा और राजद ने भाजपा का मुकाबला करने का रास्ता दिखाया है और यह 1990 के दशक की मंडल बनाम कमंडल राजनीति की याद दिलाता है जिसमें सांप्रदायिक धु्रवीकरण और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण भाजपा के सहयोगी उससे अलग हो गए थे। 

वर्तमान में आदर्श स्थिति यह है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत करे और यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा की जीत से इन दोनों दलों के साथ कांग्रेस की सौदेबाजी की ताकत कम हुई है। अकेले चुनाव लडऩे के राहुल के उत्साह से पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा इसलिए यदि कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी बने रहना है तो राहुल को अपने दृष्टिकोण में सुधार लाना होगा। उन्हें न केवल सीटों के नुक्सान अपितु मत प्रतिशत के नुक्सान पर भी विचार करना होगा। पार्टी की अगली परीक्षा कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश में होगी। इसके साथ ही इन चुनावों में भाजपा की हार से नमो और शाह को पार्टी में आंतरिक मतभेदों को दूर करना होगा। प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हिन्दुत्व के मुद्दे का प्रभाव समाप्त हो गया है और यदि ऐसा है तो यह परिणाम पार्टी के लिए खतरनाक है।

पिछले कुछ समय से हर कीमत पर सत्ता प्राप्त करने की भाजपा की अवसरवादिता और दोहरे मानदंड दिखाई दे रहे हैं। पार्टी समर्थक पार्टी में ऐसे नेताओं को शामिल करने से नाराज हैं जिन्होंने पार्टी की आलोचना की थी। इस क्रम में महाराष्ट्र में नारायण राणे और उत्तर प्रदेश में सपा के नरेश अग्रवाल, उत्तराखंड में विजय बहुगुणा, असम में हिमन्त बिश्वशर्मा और पश्चिम बंगाल में मुकुल रॉय को पार्टी में शामिल करने से संघ भी नाराज हुआ। मोदी की समस्या यह है कि पार्टी में सर्वेसर्वा होने के कारण उन्हें सभी मोर्चों पर लडऩा पड़ेगा क्योंकि वह अच्छे दिन और भ्रष्टाचार मुक्त भारत के वायदों को पूरा नहीं कर पाए और क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ निरंकुशता से पेश आ रहे हैं। विपक्षी एकता के अलावा मतदाताओं की नाराजगी भी भाजपा के विरुद्ध है। 

भाजपा इन हारों की समीक्षा कर रही है और उसके अनुरूप 2019 के लिए रणनीति बनाएगी। नमो को और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी और इस बात को ध्यान में रखना होगा कि कहीं उनके विरोधी उनसे पहल न छीन लें। देखना यह है कि क्या वे ऐसा कर पाएंगे अन्यथा भाजपा और मोदी 272 के निकट होने पर भी बहुत दूर हो जाएंगे। सभी पार्टियों को यह ध्यान में रखना होगा कि राजनीति में 5 माह का समय बहुत लंबा होता है। नए गठबंधन, जातीय समीकरण, दल-बदल आदि देखने को मिलेंगे किन्तु यह एक नई चिंगारी बन सकती है और राजनीति में कभी पूर्ण विराम नहीं लगता है और हमेशा अगली चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है।-पूनम आई. कौशिश

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