बजट देश का होना चाहिए न कि ‘आम या खास आदमी’ का

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2016 01:56 AM

budget of the country should not ordinary or special man s

अगले सप्ताह बजट सत्र शुरू हो रहा है और 29 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा। आमतौर से बजट के बाद 2 तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं

(पूरन चंद सरीन): अगले सप्ताह बजट सत्र शुरू हो रहा है और 29 फरवरी को बजट पेश किया जाएगा। आमतौर से बजट के  बाद  2 तरह  की प्रतिक्रियाएं होती हैं सत्तापक्ष उसे ‘आम आदमी’ का और विपक्ष  ‘खास आदमी’ का बजट बताता है, मतलब यह कि जो बजट देश का होना चाहिए वह आम और खास के बीच बहस का विषय बनकर रह जाता है  और सरकारें बजट में की गई घोषणाओं पर पूरी तरह अमल करने की बजाय अपने-अपने वोट बैंक को खुश करने में लगी रहती हैं और हम लोग कार्टूनिस्ट लक्ष्मण के ‘बाबूजी’-की तरह मुंह  बाए टुकुर-टुकुर देखते रहते हैं।

 
इसके अलावा एक और बात, वित्त मंत्री और उनके अमले के लोग बजट के बारे में देश के मुठ्ठीभर अंग्रेजी जानने वालों द्वारा पढ़े जाने वाले अंग्रेजी अखबारों  को ही देश की आवाज समझने की गलती करते रहे हैं जबकि अधिकांश भारतवासी हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों के जरिए अपनी बात कहते हैं।
 
इसलिए माननीय वित्त मंत्री अरुण जेतली से निवेदन है कि यदि उन्होंने जन-जन की बात समझनी है तो इन अखबारों के जरिए ही यह संभव है। हम कुछ बातें पाठकों के सामने रखते हैं ताकि उनकी सोच हमारे भाग्य विधाताओं तक पहुंच सके।
 
अन्नदाता: किसान हमारे खाने-पीने का प्रबंध करता है और ग्रामीण क्षेत्र देशभर के फलने-फूलने का इंतजाम। न जाने किस मजबूरी में कांग्रेसी सरकारों के वित्त मंत्रियों ने किसान को टैक्स के दायरे से बाहर रखा। कृषि को कर मुक्त करने का असर यह हुआ कि किसान हिसाब-किताब रखना ही भूल गया क्योंकि आम धारणा यह है कि टैक्स देने और उससे बचने के लिए ही हिसाब-किताब रखना चाहिए। किसान को कर देना ही नहीं तो उसने आमदनी का रुपया-पैसा थैलों और बोरों में भरकर रखना शुरू कर दिया और जो गरीब किसान था उसे हिसाब-किताब का ज्ञान न होने से साहूकार ने लूट लिया और उसके घर, खेत से लेकर उसके बाल-बच्चों तक को अपनी मलकीयत समझ लिया।
 
होना यह चाहिए कि किसान को भी कर के दायरे में लाया जाए, हालांकि अन्य नागरिकों को मिलने वाली छूट उसके लिए दोगुनी से चौगुनी तक हो। इससे जहां किसान राष्ट्र विकास के लिए अपने योगदान को लेकर गर्व अनुभव करेगा, वहां अपना कालाधन सफेद करने के लिए किसान बन कर देश के साथ धोखा करने वालों के लिए रुकावट पैदा होगी।
 
किसान और विज्ञान: अब हम आते हैं किसान को सहूलियत देने की बात पर, तो इसके लिए यह जानना जरूरी है कि आज भी खेतीबाड़ी के लिए हल, बैल, कुदाल, फावड़े, खुर्पी जैसे औजारों का ही इस्तेमाल किसान करता है।
 
जो किसान आधुनिक टैक्नोलॉजी और विकसित प्रणालियां अपना कर खेती करेगा उसे प्रोत्साहन देने के लिए टैक्स में छूट मिले। यदि कोई किसान देश में निर्मित या विदेशों से कोई कृषि उपकरण खरीदता है तो उससे न तो कोई कस्टम ड्यूटी ली जाए और न ही कोई टैक्स बल्कि सरकार उनकी खरीदारी पर किसान को सबसिडी दे और इन यंत्रों का इस्तेमाल करने के लिए उसकी टे्निग का भी इंतजाम करे। 
 
दूसरी बात यह कि हमारा किसान अभी तक वर्षा पर ही निर्भर है और बरसात है कि वह आंख-मिचौली खेलकर किसान को छकाने में लगी रहती है, नतीजा यह कि कहीं सूखा तो कहीं बाढ़, कहीं बंजरपन तो कहीं मरुस्थल उसका पीछा नहीं छोड़ते।
 
बजट में यह व्यवस्था की जा सकती है कि फसलों, सिंचाई यंत्र और मौसम के अनुरूप उगने वाले बीजोंको किसान तक पहुंचाने का इंतजाम हो। वर्षा पर निर्भरता के कारण ही हम आधी से भी कम कृषि भूमि का इस्तेमाल कर पाते हैं। यदि जमीन को फसलों के अनुसार बांट दिया जाए तो न केवल बारिश की कमी या ज्यादती से बचाव होगा बल्कि अधिक उपज मिलने से किसान की आॢथक स्थिति मजबूत होगी और वह उपकरण, भंडारण और बिक्री तक में आत्मनिर्भर हो जाएगा। 
 
ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार बिजली न पहुंचने से हानि होती है। इसके लिए सस्ते दाम पर सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा पहुंचाने की विशाल परियोजनाएं  देहात में लगाने का प्रावधान बजट में हो जाए तो यह सोने पर सुहागा होगा। थर्मल और हाइड्रो पावर से सस्ती सोलर और विंड एनर्जी हो सकती है, बशर्ते सरकार बजट में इसकी व्यवस्था कर दे।
 
पढ़ाई-लिखाई और कामधंधा: आजादी के बाद लागू की गई शिक्षा प्रणाली ने देश को 2 वर्गों में बांट दिया, एक तो अंग्रेजी माध्यम से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले मुठ्ठीभर साधन संपन्न लोग और दूसरा अपनी मातृभाषा और काम चलाऊ अंग्रेजी में पढ़ाई करने से लगभग सभी क्षेत्रों में पिछड़ गया विशाल जनसमूह। पहला वर्ग सरकारी, गैर-सरकारी सभी पदों पर अपना कब्जा जमाकर बैठ गया और दूसरा वर्ग उनकी चाकरी या छोटा-मोटा कामधंधा जुटाने में लग गया। खैर जो हो गया, उसे तो बदला नहीं जा सकता और ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय’ की तर्ज पर सरकार शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे संस्थान खोलने की घोषणा बजट में कर सकती है जिनमेंं आधुनिक संचार साधनों के जरिए विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई के साथ स्थानीय कौशल से जुड़ी टे्निग देने का इंतजाम हो। 
 
उद्योग और अपना व्यवसाय: बजट में स्वदेशी टैक्नोलॉजी आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए विशेष छूट, करों में रियायत और उनके इस्तेमाल के लिए सबसिडी दिए जाने की घोषणा कर दी जाए तो देश की युवा पीढ़ी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचेगा।
बैंकिंग आसान हो: आज जो हम स्टार्टअप, स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया की बात करते हैं और ‘घर का जोगी जोगना और आन गांव का सिद्घ’ की कहावत पर चलते हुए विदेशियों को भारत में आकर कल-कारखाने खोलने की दावत देते हैं, उसमें बस इतना और कर दें कि बैंक हमारे युवाओं को जरूरत के मुताबिक और बिना ज्यादा कागजी कार्रवाई के कम से कम समय में धन उपलब्ध कराएं। 
 
हकीकत यह है कि आज बैंकों का हजारों-करोड़ रुपया ऐेसे उद्योगपतियों के पास दबा पड़ा है  जिनकी नीयत खराब हो जाने से वे दीवालिया और डिफाल्टर हो गए हैं। उनसे पैसा वसूल कर युवा उद्यमियों को केवल उनके प्रोजैक्ट की क्वालिटी के आधार पर आसान शर्तों के साथ वित्तीय सहायता के रूप में देने की घोषणा बजट में कर दी जाए तो फिर हमें दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की करने से कोई नहीं रोक सकता।
 

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