समय तो बदला परन्तु चीन की प्रवृत्ति नहीं बदली

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jul, 2017 11:35 PM

changed time but chinas trend did not change

भारत -चीन के बीच तनाव बढऩे का मुख्य क्या कारण है? गत 1 माह से अधिक समय से .....

भारत -चीन के बीच तनाव बढऩे का मुख्य क्या कारण है? गत 1 माह से अधिक समय से डोकलाम क्षेत्र को लेकर भारत और चीन के बीच सैन्य तनातनी चरम पर है। शांति बनाए रखने हेतु वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं। यह सही है कि पं. नेहरू-माओ के युग की तुलना में आज आर्थिक पहलुओं का महत्व, भौगोलिक सीमा से कमतर नहीं है और भारतीय बाजार पर निगाहें टिकाए बैठा चीन,  भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंधों और सकारात्मक माहौल की गंभीरता को संभवत: समझता है। फिर भी चीन ऐसा क्यों है? 

पठारी क्षेत्र डोकलाम में 16 जून को चीन द्वारा सड़क निर्माण कार्य से इस विवाद का जन्म हुआ। जहां भारत इस क्षेत्र को डोकलाम कहता है, वहीं चीन इसे डोंगलोंग बताता है। यह क्षेत्र चीन द्वारा कब्जाए तिब्बत और भारत के उत्तर-पूर्व में सिक्किम व भूटान की सीमा पर स्थित है, जो तीनों देशों का त्रिसंगम बिंदु भी है। जब भूटान ने चीनी सड़क निर्माण का विरोध किया और उसने इस संबंध में भारत से मदद मांगी, तब भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों को काम करने से रोक दिया। आखिर भारत के लिए डोकलाम के मायने क्या हैं, यह क्षेत्र सामरिक रूप से भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि चीन यहां सड़क बनाने में कामयाब हो जाता है तो उसके लिए भारत के ‘चिकन नैक’ कहे जाने वाले सिलीगुड़ी तक पहुंच काफी सुगम हो जाएगी। 

डोकलाम से सिलीगुड़ी गलियारा की दूरी केवल 50 किलोमीटर है। यह क्षेत्र शेष भारत को पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से जोड़ता है। 200 किलोमीटर लम्बा और 60 किलोमीटर चौड़ा यह क्षेत्र, देश की एकता और संप्रभुता के लिए काफी जरूरी है। भूटान के भारत के साथ खास रिश्ते हैं। वर्ष 1949 और 2007 की संधियों के अनुसार भूटान के भू-भाग और विदेशी मामलों को देखना भारत की जिम्मेदारी है। अब तक चीनी सत्ता अधिष्ठानों और सरकारी मीडिया की ओर से जिस तरह के संदेश दिए जा रहे हैं, उनसे स्पष्ट है कि वह स्थिति को शांत तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहता। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पेइङ्क्षचग दौरे से पूर्व चीनी सरकारी समाचारपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ के संपादकीय ने सीधे अजीत डोभाल को विवाद का जनक बताया। यही नहीं, इसी अखबार के संपादकीय ने भारत में हिंदू राष्ट्रवाद को भी डोकलाम तनातनी का बड़ा कारण बताया था। 

जून माह के अंत में चीनी रक्षा मंत्रालय ने डोकलाम विवाद की पृष्ठभूमि में भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेने तक की धमकी दे डाली थी जिसका उपयुक्त और निर्भीक उत्तर भारत सरकार की ओर से भी दिया गया। डोकलाम को लेकर चीन की कड़वाहट अकस्मात नहीं है। एक योजनाबद्ध तरीके से पहले परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की भागीदारी का उसने विरोध किया। फिर मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने वाले भारतीय प्रस्ताव पर वीटो लगाया और भारत को चुनौती देने के लिए ओ.बी.ओ.आर. जैसी आर्थिक योजना बना रहा है। चीन न केवल भारत की सीमाओं पर गिद्ध दृष्टि रखे हुए है अपितु वह अपनी दक्षिणी सीमा पर वियतनाम तो पूर्वी चीन सागर के कुछ द्वीपों को लेकर जापान के साथ भी टकराव की स्थिति में है। नेपाल में चीन एक ऐसे वर्ग को संरक्षण दे रहा है, जो घोर भारत विरोधी और चीनपरस्त है। 

चीन साम्यवादी होने के साथ-साथ एक कुटिल साम्राज्यवादी भी है, जो अपने रणनीतिकार पूर्वजों के सुझाए मार्गों पर आज भी चल रहा है। चीनी युद्ध, रणनीतिकार सुन त्जू के अनुसार, ‘‘युद्ध की कला सिखाती है कि हम यह सोचकर न बैठें कि शत्रु नहीं आ रहा है या नहीं आएगा। जरूरी है कि हम स्वयं युद्ध के लिए कितने तत्पर हैं। हम अपने दुश्मन को हमला करने का मौका न दें, इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी सीमाओं को अभेद्य बनाएं।’’ क्या चीन बीते कई वर्षों से अपने अधिकतर पड़ोसी (भारत सहित) के खिलाफ इसी नीति का अनुसरण नहीं कर रहा है। चीन ने भारत पर एकमात्र प्रत्यक्ष हमला 1962 में किया था, किंतु परोक्ष रूप से वह भारत को निरंतर अस्थिर करने की योजना बनाने में जुटा है। यदि भारत की सनातन बहुलतावादी संस्कृति को नष्ट करना पाकिस्तान का मजहबी दायित्व है तो उसे मूर्त रूप देना आज चीन की अघोषित कुटिल नीति बन चुकी है। 

यही कारण है कि आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामरिक हितों को साधते हुए चीन ने इस्लामी आतंकवाद के गढ़ और बदहाल पाकिस्तान को ओ.बी.ओ.आर. परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। भारत के साथ सीमा विवाद के लिए चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता तो जिम्मेदार है ही, साथ ही पं. नेहरू के यथार्थ से परे स्वप्नदर्शी कूटनीति और वामपंथियों की चीनपरस्ती भी समस्या का मुख्य कारण रही है। 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर पुन: कब्जा कर लिया, तब पं. नेहरू की सरकार मौन रही। जब देश में राष्ट्रवादी, चीनी कुटिलता को भांप चुके थे, तब वामपंथी चिंतन से प्रभावित होकर पं. नेहरू ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के मुगालते में रहते हुए पंचशील समझौता किया। जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया, तब न केवल पं. नेहरू को वास्तविकता का ज्ञान हुआ अपितु वामपंथियों का असली चेहरा भी देश के सामने आ गया। 

चीन के प्रति जिस प्रकार का रुख पं. नेहरू का रहा था, उसका अनुसरण कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व आज भी कर रहा है। जब सीमा पर भारत और चीन की फौज आमने-सामने थी, तब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 8 जुलाई को चीनी राजदूत से मुलाकात की थी। आखिर उस भेंट का औचित्य क्या था? डोकलाम विवाद में वामपंथियों की जो प्रतिक्रिया सामने आई, वह स्वाभाविक है। समान विचारधारा होने के कारण भारतीय वामपंथी सदैव ही चीन के पक्ष में खड़े मिलते हैं, इसके कई उदाहरण भी हैं। हालिया मामले में भी ऐसा ही हुआ है। सी.पी.एम. के पूर्व महासचिव प्रकाश कारत ने डोकलाम तनातनी पर जहां चीन का पक्ष लिया है, वहीं चीन की भाषा बोलते हुए मोदी सरकार को सलाह दी है कि यह मामला भूटान-चीन के बीच का है। 

भारत के संदर्भ में चीन की विस्तारवादी नीति का फार्मूला इस प्रकार रहा है कि वह किसी क्षेत्र को पहले विवादित बताता है, फिर उस क्षेत्र में सेना को जबरन तैनात कर उस पर कब्जा करने का प्रयास करता है। मोदी सरकार में ऐसा पहली बार हुआ है कि चीनी फौज को भारतीय सेना ने खदेड़ दिया। दिल्ली में राजनीतिक इच्छाशक्ति से सुसज्जित केंद्र सरकार के साथ-साथ सीमा पर भारतीय सेना चीन के समक्ष आक्रामक तेवर के साथ डटी है तो दक्षिण चीन सागर में अमरीका और जापान ने चीन पर दबाव बढ़ा दिया है। इससे वामपंथियों की तकलीफ समझी जा सकती है। क्या भारत-चीन के सामान्य रिश्ते संभव हैं? यदि आर्थिक और सैन्य रूप से भारत निर्बल बना रहा तो चीन उसे न केवल अपमानित करेगा बल्कि उन सभी क्षेत्रों को हड़पने का प्रयास भी करेगा, जिन पर वह अपना अधिकार जताता है। यदि भारत स्वयं को सबल राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है तो अंततोगत्वा चीन न केवल उसका सम्मान करेगा बल्कि एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहना भी सीख जाएगा। 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!