लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना जरूरी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Dec, 2017 03:51 AM

democracy needs to have strong opposition

भारतीय लोकतंत्र आज एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जिसके बाद दुनिया के सबसे बड़े देश का लोकतंत्र मजबूत भी हो सकता है और कमजोर भी। भारतीय जनता पार्टी ने नारा दिया है कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का। अच्छा होता यदि नारा केवल भ्रष्टाचार मुक्त और गरीबी...

भारतीय लोकतंत्र आज एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जिसके बाद दुनिया के सबसे बड़े देश का लोकतंत्र मजबूत भी हो सकता है और कमजोर भी। भारतीय जनता पार्टी ने नारा दिया है कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का। अच्छा होता यदि नारा केवल भ्रष्टाचार मुक्त और गरीबी मुक्त भारत बनाने का होता। शायद भारतीय जनता पार्टी का भाव यही है। 

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में आज केवल कांग्रेस ही अखिल भारतीय पार्टी है। पूरे देश के सभी क्षेत्रों में अपनी पैठ रखने वाली कोई भी पार्टी नहीं है। यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्य की बात है कि 130 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी केवल एक ही परिवार में सीमित होकर रह गई है। यदि प्रणव मुखर्जी को कांग्रेस देश के प्रधानमंत्री के रूप में पेश करती तो भारत के लोकतंत्र का इतिहास कुछ और होता। पार्टी न तो एक परिवार से बाहर निकल रही है और न ही राहुल गांधी पूरी तरह से दायित्व निभा पा रहे हैं। वह प्रयत्न कर रहे हैं, सीख भी रहे हैं, शायद अब उन्हें कोई पप्पू नहीं कहेगा परन्तु सच्चाई यह है कि नेता बनाए नहीं जा सकते, एक स्वाभाविक प्रक्रिया से स्वयं निर्मित होते हैं। 

आज देश में भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता के रूप में इस पर प्रसन्न हुआ जा सकता है परन्तु एक जागरूक नागरिक के तौर पर यह स्थिति चिंता का कारण है। लोकतंत्र सशक्त विपक्ष के बिना सफल नहीं हो सकता। मजबूत विपक्ष एक सफल और मजबूत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। हिमाचल और गुजरात के चुनाव का परिणाम कांग्रेस के लिए ही नहीं, लोकतंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है।

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद यदि कांग्रेस इन दोनों चुनावों में पूरी तरह परास्त होती है तो भविष्य में देश एक सशक्त विपक्ष के बिना हो जाएगा। आज कोई अन्य पार्टी राष्ट्रीय पार्टी नहीं कही जा सकती। इतने बड़े देश में लाखों गांवों में कोई नई पार्टी बनाई भी नहीं जा सकती। शरद यादव एक बार फिर से विपक्षी दलों के टुकड़ों को जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे टूटे टुकड़े मिल कर विकल्प नहीं बन सकते। 

18 दिसम्बर के परिणाम लगभग स्पष्ट हैं। हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले कांग्रेस बहुत पीछे है। हिमाचल चुनाव के इतिहास में किसी भी पार्टी को सबसे बड़ी जीत 1990 के चुनावों में यदि मिली थी तो वह भाजपा ही थी। भाजपा ने 51 सीटें लड़ीं और 46 जीतीं। सहयोगी जनता दल ने 11 सीटें जीतीं। पूरे प्रदेश में कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। कांगड़ा जिला की 16 सीटों में से कांग्रेस केवल 1 सीट पर सिमट कर रह गई थी। तब भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी नहीं थी। केंद्र में भाजपा सरकार नहीं थी। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे। चुनाव के लिए हैलीकाप्टर साधन उपलब्ध नहीं थे और तब कांग्रेस का मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार में इतना डूबा हुआ नहीं था। आज इतिहास में भाजपा की सबसे बढिय़ा और कांग्रेस की सबसे बदतर स्थिति है। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस को 1990 से भी बुरी हार मिलनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो भाजपा को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करना होगा। 

इस सब के बाद भी हिमाचल में वीरभद्र सिंह ने जिस साहस से चुनाव लड़ा उसकी भी प्रशंसा की जानी चाहिए। सब प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में, जबकि  उनके हाईकमान ने उनको लगभग अकेला छोड़ दिया था और भाजपा ने इतिहास का सबसे आक्रामक चुनाव प्रचार किया, उस स्थिति में भी वीरभद्र सिंह ने जिस साहस से चुनाव लड़ा है वह सचमुच प्रशंसनीय है। गुजरात के चुनाव में भी कांग्रेस के लगभग सभी दाव विफल होते नजर आ रहे हैं। मणिशंकर अय्यर ने रही-सही कसर निकाल दी। विकास और मोदी का करिश्मा अभी भी बरकरार है। इन दोनों चुनावों के परिणाम में यदि कांग्रेस और अधिक कमजोर होगी तो सत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं होगा परन्तु यही होने वाला है। भारतीय लोकतंत्र में अच्छे और मजबूत विपक्ष की रिक्तता कैसे पूरी होगी, यह तो भविष्य ही बताएगा।-शांता कुमार

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