ई.वी.एम. पर फिजूल बहस अब बंद होनी चाहिए

Edited By ,Updated: 17 May, 2017 11:53 PM

evm but the debate is now closed

पिछले कुछ सालों से ई.वी.एम. के समर्थक और विरोधी मिलकर देश में एक निरर्थक बहस....

पिछले कुछ सालों से ई.वी.एम. के समर्थक और विरोधी मिलकर देश में एक निरर्थक बहस चला रहे हैं। न पहले भाजपा ने सोचा था, न आज भाजपा विरोधी यह सोच रहे हैं कि अपने क्षुद्र खेल में वे लोकतंत्र को कितना नुक्सान पहुंचा रहे हैं। कांग्रेस और सपा यह नहीं बतातीं कि 2014 से पहले इसी ई.वी.एम. से वे चुनाव कैसे जीती थीं। 

आम आदमी पार्टी का सीधा हिसाब है .. जब-जब वह चुनाव जीतती है तब-तब चुनाव आयोग और ई.वी.एम. ठीक है, जब से वह हार रही है समझो तभी से ई.वी.एम. में धांधली हुई है। भाजपा कहती है  2009  से पहले धांधली थी, अब मशीन सुधर गई है। अब भाजपा चुनाव आयोग में आस्था का सवाल उठाती है। टी.वी. एंकर भूल गए हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त ‘जेम्स माइकल लिंगदोह’ का नाम लेकर चुनावी सभाओं में उन पर उंगली उठाने वाले पहले राजनेता नरेन्द्र मोदी थे। ई.वी.एम. को लेकर चली बहस सिर्फ  इसलिए फिजूल नहीं है कि सभी पार्टियां दोमुंही बातें कर रही हैं। 

यह बहस इसलिए फिजूल है कि दोनों पक्ष गलत सवाल पर बहस कर रहे हैं। बहस इस सवाल पर हो रही है कि ई.वी.एम. में कभी कोई हेरा-फेरी हो सकती है या नहीं। ई.वी.एम. के समर्थक कहते हैं कि यह ऐसी मशीन है जिसमें कोई छेड़छाड़ संभव ही नहीं है। इस दावे के जवाब में ई.वी.एम. विरोधी ये साबित करने में जुटे रहते हैं कि ई.वी.एम. पूरी तरह दोषमुक्त नहीं है और इसमें कुछ गड़बड़ी करके चुनाव परिणाम में हेरा-फेरी करना असंभव नहीं है।

इस सवाल का सीधा-सा जवाब यह होगा कि दुनिया की कोई भी इलैक्ट्रॉनिक मशीन ऐसी नहीं है जिसमें हेरा-फेरी न की जा सके। मैं कोई इंजीनियर नहीं हूं, लेकिन इतनी बात जरूर समझता हूं कि चिप या मदरबोर्ड बदलकर किसी भी मशीन से कुछ भी करवाया जा सकता है। सॉफ्टवेयर के जरिए बारीक से बारीक हेरा-फेरी भी करवाई जा सकती है। सच यह है कि ई.वी.एम. में हेरा-फेरी असंभव नहीं है लेकिन हमारी चुनावी व्यवस्था में इसकी सम्भावना नगण्य प्राय: है। सिद्धांत रूप में ई.वी.एम. के गुण-दोष की चर्चा बेमानी है। जैसे मोबाइल फोन के सैंकड़ों मॉडल होते हैं, उसी तरह दर्जनों तरह की ई.वी.एम. होती हैं। दूसरे देशों में किस मॉडल की मशीन के साथ क्या अनुभव हुआ, इसका हमारे लिए कोई मतलब नहीं है। सवाल यह है कि हमारे यहां ई.वी.एम. के जरिए हेराफेरी की सम्भावना कितनी है।

ई.वी.एम. का जो बिल्कुल बेसिक मॉडल हमारे यहां इस्तेमाल होता है उसमें इंटरनैट या मोबाइल का कोई सिग्नल नहीं आ सकता। यानी कि मशीन का सॉफ्टवेयर बदले बिना दूर से कोई छेडख़ानी नहीं हो सकती। फैक्टरी से ही मशीन की चिप में कोई हेराफेरी करने से किसी पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि मशीन चिन्ह या पार्टी का नाम नहीं पहचानती। मशीन सिर्फ उम्मीदवार नम्बर पहचानती है। चुनाव से 2 सप्ताह पहले तक किसी को यह पता नहीं होता कि उसकी पार्टी के उम्मीदवार का नाम किस चुनाव क्षेत्र में किस नम्बर पर होगा। 

अगर हर मशीन में एक नम्बर उम्मीदवार के पक्ष में हेराफेरी की गई तो उसका फायदा अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग पार्टी को होगा। उम्मीदवारों की घोषणा के बाद भी यह हेराफेरी बड़ी मुश्किल है क्योंकि चुनाव आयोग चुनाव से 3-4 दिन पहले तक इसका फैसला नहीं करता कि कौन-सी मशीन किस चुनाव क्षेत्र में जाएगी। वोटिंग शुरू होने से पहले सुबह हर पार्टी के एजैंट को बूथ पर ई.वी.एम. के बटन दबा कर मशीन की जांच करने का मौका मिलता है। 

आम आदमी पार्टी ने इसके अलावा हेराफेरी की एक और गुंजाइश बताई है। अगर चुनाव से पहले ई.वी.एम. का मदरबोर्ड बदल दिया जाए तो उसमें संभव है कि सुबह जांच होने के बाद वोटिंग होते समय कोई वोटर चुपचाप से कोई कोड दबा जाए और उसके बाद हेराफेरी शुरू हो जाए। यह असंभव नहीं है लेकिन आप जरा सोचिए ऐसी हेराफेरी करने के लिए क्या कुछ करना पड़ेगा। दिल्ली नगर निगम जैसे छोटे चुनाव में भी कोई 15000 मशीनों को खोलकर उसके पार्ट्स बदलने होंगे। और फिर हजारों बूथों पर कम से कम एक व्यक्ति को इस साजिश में राजदार बनाकर उससे कोड डलवाना होगा। 

आप सोचिए हमारे जैसे देश में क्या यह संभव है कि इतनी बड़ी घटना हो जाए और एक भी व्यक्ति उसकी पोल खोलने को तैयार न हो? हजारों लोगों में से एक भी व्यक्ति बोलने को तैयार न हो? एक भी बूथ पर यह हेराफेरी पकड़ी न गई हो? इसलिए हम इस सैद्धांतिक सवाल पर बहस में उलझना बंद कर दें कि ई.वी.एम. में हेराफेरी संभव है या नहीं। हमें सिर्फ  इस पर बहस करनी चाहिए कि किसी चुनाव विशेष में ऐसी हेराफेरी हुई या नहीं? और यह ङ्क्षचता करनी चाहिए कि भविष्य में इस छोटी सी सम्भावना को भी खत्म कैसे किया जाए? पहले सवाल पर फिलहाल कोई भी पार्टी किसी चुनाव में हेराफेरी हुई, इसका कोई भी प्रमाण नहीं दे पाई है। 

मुम्बई में एक उम्मीदवार के अपने बूथ पर एक भी वोट न मिलने की बात और मध्य प्रदेश उपचुनाव में मशीन की गड़बड़ी के आरोप मीडिया द्वारा जांच करने पर झूठे साबित हुए हैं। हाल ही के चुनावों में सभी शिकायतें चुनाव परिणाम आने के बाद आईं, चुनाव वाले दिन सुबह पार्टी एजैंट की जांच में ई.वी.एम. की शिकायत नहीं थी। अगर पंजाब या उत्तर प्रदेश चुनाव में हेराफेरी हुई होती तो जिन विधानसभा क्षेत्रों में पर्ची वाली ई.वी.एम. का इस्तेमाल हुआ, कम से कम वहां का चुनाव परिणाम अलग होना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है। दूसरे सवाल का जवाब चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट दोनों दे चुके हैं। 

हर कोई सहमत है कि ई.वी.एम. में हेराफेरी की थोड़ी-बहुत गुंजाइश को खत्म करने के लिए नए मॉडल की पर्ची वाली ई.वी.एम. (वी.वी.पी.ए.टी. मशीन) लागू की जानी चाहिए। नई मशीन के लिए चुनाव आयोग को जितना पैसा चाहिए था वह कांग्रेस सरकार और पिछले 3 साल तक भाजपा सरकार ने नहीं दिया था। इस बहस का एकमात्र फायदा यह हुआ है कि अब केन्द्र सरकार यह पैसा देने को राजी हो गई है। चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि आगे से सभी चुनाव नए मॉडल की ई.वी.एम. से हुआ करेंगे। अब तो सभी पार्टियों से यह उम्मीद करनी चाहिए कि वे इस फिजूल सवाल पर बहस बंद कर देंगी। 

पुनश्च: दिल्ली नगर निगम का चुनाव हमारी पार्टी स्वराज इंडिया ने लड़ा था। हम कोई सीट नहीं जीत पाए। वोट भी हमारी उम्मीद से बहुत कम मिला। हमारे भी बहुत उम्मीदवारों को लगा कि मशीन ने धोखा दे दिया। लेकिन ई.वी.एम. का बहाना लगाने की बजाय हमने अपने गिरेबान में झांकना बेहतर समझा। आशा है कि बाकी पार्टियां भी यही करेंगी। 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!