EVM से छेड़छाड़ की आशंका बेबुनियाद

Edited By ,Updated: 21 Mar, 2017 11:33 PM

evm fears of tampering

चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद पराजित उम्मीदवारों ने इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों...

चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद पराजित उम्मीदवारों ने इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) द्वारा उनके साथ किए गए अन्यायपूर्ण व्यवहार की दुहाई देनी शुरू कर दी है। वे अपनी पराजय के लिए इस बेजान मशीन को दोषी मानते हैं जो स्वयं बोलकर अपना पक्ष स्पष्ट नहीं कर सकती। बेशक उम्मीदवार अपनी जीत या हार के मद्देनजर इन मशीनों को पसंद या नापसंद करते हैं तो भी ई.वी.एम. का व्यवहार हरदम एक जैसा ही रहता है और वह न तो किसी के पक्ष में लिहाजदारी दिखाती है और न ही उसके विरुद्ध कोई पूर्वाग्रह। 

1989 में जब इन मशीनों के प्रयोग की अनुमति मिली थी तब से 100 से अधिक चुनावों में इन्हें प्रयुक्त किया जा चुका है। इतने सारे वर्षों में बार-बार जिन लोगों ने ई.वी.एम. की विश्वसनीयता पर उंगलियां उठाई हैं, उन्होंने ही कई अवसरों पर इन पर आशंका व्यक्त करने वालों का उपहास उड़ाया है। कुछ ऐसे निराशावादी जिन्होंने कभी ई.वी.एम. मशीन अपनी आंखों से देखी भी नहीं, उन्होंने वीडियो प्रकाशित करके यह दावा करने की कोशिश की है कि इन मशीनों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है लेकिन एक भी व्यक्ति कभी यह सिद्ध नहीं कर सका कि सचमुच ही ई.वी.एम. के साथ जालसाजी की जा सकती है। किसी विजयी उम्मीदवार ने कभी भी ई.वी.एम. के विरुद्ध एक शब्द तक नहीं बोला। 

भारतीय ई.वी.एम. को मजबूत बनाने वाली बहुत सी बातें हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि इन्हें किसी भी तरह इंटरनैट या मोबाइल फोन जैसे किसी बेतार उपकरण के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। इससे यह सुनिश्चित होता है कि इन्हें कोई भी व्यक्ति बाहर से नियंत्रित नहीं कर सकता और न ही इनमें कम्प्यूटर की तरह वायरस फिट किया जा सकता है। यह दावा करना कि इंटरनैट से न जुड़ी होने के बावजूद ई.वी.एम. में वायरस घुस सकता है, यह कहने के तुल्य है कि जिस प्रकार आपके ए.सी. का रिमोट कंट्रोल या डिजीटल क्लाक वायरस से प्रभावित हो सकते हैं उसी प्रकार ई.वी.एम. भी प्रभावित हो सकती है। 

जिन लोगों को ई.वी.एम. में हेराफेरी की साजिश दिखाई देती है उनमें से कुछेक यह सुझाव देते है कि गोपनीय ‘की-स्ट्रोक कोड’ ई.वी.एम. के व्यवहार को बदल सकता है। लेकिन यदि ऐसा हो सकता तो 100 से अधिक चुनावों में प्रयुक्त होने और 20 वर्षों की अवधि गुजर जाने के बाद ही यह वायरस क्यों सामने आता। ये आशंकाएं पूरी तरह बेबुनियाद हैं। फिर भी इनके निवारण के लिए चुनाव आयोग ने विभिन्न सुरक्षात्मक कदम उठाए है।  

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