मोदी सिर्फ ‘झाड़ू’ एवं ‘चरखे’ के साथ फोटो खिंचवा कर ‘गांधी’ नहीं बन सकते

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2017 01:34 AM

he just flick and spinning wheel are photographed with the gandhi can not be

हाल ही में एक विवाद भड़क उठा जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के  एक कैलेंडर

हाल ही में एक विवाद भड़क उठा जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के  एक कैलेंडर में चरखे के साथ मोदी की फोटो प्रकाशित हुई। परम्परागत रूप में लोग चरखे के साथ महात्मा गांधी की फोटो देखने के आदी हो चुके हैं। मोदी के कुछ समर्थक यह सवाल पूछ रहे हैं कि गांधी जी से ही झाड़ू का प्रतीक लेकर जब मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए प्रयुक्त किया था तो हो-हल्ला क्यों नहीं मचा था। स्वच्छ भारत अभियान की हर तरह की प्रचारक सामग्री पर गांधी जी का चश्मा एक लोगो के रूप में भी तो छापा जाता है। 

झाड़ू या चरखे पर गांधी जी का कोई एकाधिकार नहीं है। हर कोई इन दोनों वस्तुओं के साथ फोटो खिंचवाने का अधिकार रखता है। यदि नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानना शुरू कर दिया है तो इससे बेहतर और क्या बात हो सकती है? वह तो गत वर्ष दक्षिण अफ्रीका यात्रा दौरान  जब प्रसिद्ध फीनिक्स बस्ती देखने गए तो उस रेल गाड़ी में भी यात्रा की थी जिसमें से गांधी जी को नीचे धकेल दिया गया था। वैसे नरेन्द्र मोदी के मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गांधी जी के बारे में दृष्टिकोण इतना उदार नहीं है। यदि नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी का महत्व समझ लिया है और इस विषय में आर.एस.एस. की राय बदलने में सहायक हो सके तो यह सचमुच ही बहुत बड़ी बात होगी। 

सच्चाई यह है कि यदि दुनिया भर के लोग भारत की पहचान के साथ किसी व्यक्ति को जोड़ते हैं तो वह गांधी जी ही हैं। दुनिया में शायद गौतम बुद्ध के अनुयायियों की संख्या गांधी के अनुयायियों से भीअधिक है लेकिन विश्व और बौद्ध समुदाय गौतम बुद्ध को केवल भारत तक सीमित नहीं मानते। दुनिया भर में जहां कहीं भी हाशिए पर जाने वाले लोग अपने मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन सभी के लिए गांधी जी ही प्रेरणा का स्रोत हैं। यहां तक कि कुछ पर्यावरणवादी आंदोलन भी गांधी जी से अनुप्रेरित हैं। 

लेकिन नरेन्द्र मोदी को यह अवश्य ही समझना होगा कि केवल झाड़ू और चरखे के साथ फोटो ङ्क्षखचवाने से ही वह लोगों की नजरों में गांधी जैसे नहीं बन जाएंगे। गांधी जी का लोगों पर प्रभाव उन जीवन मूल्यों के कारण था जिन पर उन्होंने जीवन भर पहरा दिया। गांधी जी के आश्रमों में सफाई का बहुत ख्याल रखा जाता था और सभी लोग शौचालयों को स्वच्छ बनाए रखने के आदी थे। 

सभी आश्रम वासियों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने ही काते हुए सूत से बना हुआ खादी का कपड़ा पहनें। चरखे के प्रयोग के पीछे स्वराज की यह फिलास्फी काम कर रही थी कि रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुएं तैयार करने के लिए स्थानीय सामग्री प्रयुक्त की जाए और ऐसी टैक्नोलॉजी अपनाई जाए जो लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाए। 

वैश्विक अनुभव ने भी दिखा दिया है कि नरेन्द्र मोदी जिन नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों पर चल रहे हैं उनसे गरीब और अमीर के बीच की खाई और भी चौड़ी हो गई है। गांधी जी स्थानीय सामग्री व संसाधनों को महत्व दिया करते थे जबकि मोदी का आकर्षण विदेशी निवेश के प्रति है। लेकिन चरखा और झाड़ू भौतिक वस्तुएं हैं। 

गांधी जी की पहचान इन दोनों वस्तुओं के कारण ही नहीं है। जनता के दिलों में गांधी जी का स्थान इसलिए बन पाया था कि उन्होंने दुनिया को सच्चाई और आर्थिक का मार्ग दिखाया और सत्याग्रह जैसा संघर्ष का तरीका सिखाया। सच्चाई का मार्ग विकट भी है और लंबा भी। इस मार्ग पर चलकर सफलता हासिल करने के लिए न तो किसी समझौते की गुंजाइश है और न ही कोई आड़ा-टेढ़ा व छोटा रास्ता (शॉर्टकट) ही अपनाया जा सकता है।

इस मार्ग पर किसी प्रकार की तड़क-भड़क यानी ग्लैमर नसीब नहीं होती। जैसा कोई है, उसे उसी रूप में दुनिया के सामने आना होगा। कोई भी व्यक्ति अपनी नाकामियों और त्रुटियों को छुपा नहीं सकता। प्राकृतिक रूप में मानवीय प्राणी अहिंसा ही होने चाहिएं लेकिन इंसान अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए हिंसा प्रयुक्त करना शुरू कर देते हैं। शायद प्रत्येक शासक ने किसी न किसी हद तक हिंसा प्रयुक्त की है। लेकिन जो व्यक्ति अहिंसा पर निष्ठा रखता है वह न तो लोगों को आतंकित करता है और न ही भय का वातावरण सृजित करता है। 

किसी दुश्मन को समाप्त करने का बेहतर तरीका है उसके साथ दोस्ती पैदा कर लेना। इस लिहाज से ब्रितानवी लोगों के प्रति गांधी जी के  रवैये का स्मरण करना असंगत नहीं होगा। वह किसी भी व्यक्ति को दुश्मन नहीं समझा करते थे, फिर भी दृढ़ता से साम्राज्यवाद के उलट लड़ते रहे। यही कारण है कि ब्रिटेन के लोग उनका दिल से सम्मान करते थे। गांधी जी हिन्दू-मुस्लिम के पक्षधर थे लेकिन नरेन्द्र मोदी के शासन काल के दौरान इन दोनों समुदायों के बीच दूरियां और भी बढ़ गई हैं। 

नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि उन्होंने लोक सेवा के लिए अपना पारिवारिक जीवन बलिदान किया है लेकिन गांधी जी ने दिखाया था कि किस प्रकार हम पारिवारिक जीवन को सार्वजनिक जीवन का अंग बना सकते हैं। बेशक गांधी जी के पारिवारिक सदस्य उनके कुछ तौर-तरीकों के विरुद्ध थे, तो भी वह सदा उन लोगों को साथ लेकर चलने का प्रयास करते रहे। 

गांधी जी ने एक-एक कदम गरीबों को ध्यान में रखकर ही उठाया था। नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियां गरीबों की तुलना में अमीरों को अधिक लाभान्वित कर रही हैं। वास्तव में गरीब तो उनके शासन में अधिक से अधिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 

गांधी जी द्वारा अपनाए गए जीवन मूल्यों का अनुसरण करने का नरेन्द्र मोदी का प्रयास बिल्कुल सतही है। वह गांधी जी को केवल अपनी छवि पुख्ता करने के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं। इससे उन्हें कोई सहायता मिलने वाली नहीं है। गांधी जी की राजनीतिक सत्ता हासिल करने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी, वह तो जीते-जी लोगों के दिलों पर राज करते थे और आज भी कर रहे हैं। सत्ता में बैठे व्यक्ति को लोग तब तक ही सम्मान देते हैं जब तक वह सिंहासन पर आसीन है। जैसे ही वह सत्ता से बाहर होता है, कोई उसकी पूछताछ नहीं करता। 

गांधी जी ने जो कुछ भी किया वह उनके व्यापक दृष्टिकोण एवं सम्पूर्ण जीवन शैली का अंग था। उनकी कुछ बातों को केवल प्रबंधन मानसिकता का अंग बनाकर और शेष को ठेंगा दिखाकर हम गांधी जी के अनुयायी नहीं बन सकते। यदि मोदी चाहते हैं कि उन्हें चरखे से जुड़े जीवन दर्शन के पक्षधर के रूप में देखा जाए तो वह अपने मित्र अंबानी को रक्षा उद्योग का उपक्रम स्थापित करने में सहायता कैसे दे पाएंगे? यदि  उनकी पार्टी के नेता और कार्यकत्र्ता लोगों से दादागिरी करना और उन पर अनुचित टिप्पणियां जारी रखते हैं तो मोदी को एक विश्वस्तरीय नेता की छवि हासिल नहीं हो सकेगी।  

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