गुड गवर्नैंस में हिमाचल ने दिखाई नई राह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Aug, 2017 11:20 PM

himachal shows new road in good governance

यह हर हिमाचली के लिए गर्व की बात है कि गुड गवर्नैंस के मामले में हिमाचल प्रदेश को देश के सभी छोटे ...

यह हर हिमाचली के लिए गर्व की बात है कि गुड गवर्नैंस के मामले में हिमाचल प्रदेश को देश के सभी छोटे राज्यों में अव्वल आंका गया है। सार्वजनिक मामले सूचकांक (पी.ए.आई.) की तरफ से यह सर्वेक्षण 2 करोड़ से कम आबादी वाले देश के छोटे राज्यों को लेकर किया गया था। इस सर्वेक्षण में समूचे राज्यों के शासन की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया और हिमाचल प्रदेश को प्रथम स्थान से नवाजा गया। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलइया व पब्लिक अफेयर सैंटर के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन. संतोष हेगड़े ने बेंगलुरू में आयोजित कार्यक्रम में यह पुरस्कार हिमाचल प्रदेश को प्रदान किया। 

इस पहाड़ी राज्य का गुड गवर्नैंस की कसौटी पर खरा उतरना इस बात का परिचायक है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में सुशासन देकर किस तरह प्रशासनिक कामकाज में पारदर्शिता लाई है और जन आकांक्षाओं की कसौटी पर स्वयं को खरा साबित किया है। हिमाचल प्रदेश को यह सम्मान उस समय मिला है जब विपक्षी दल ने प्रदेश में माफिया राज का राग अलाप कर सरकार के खिलाफ रैलियों का सिलसिला शुरू कर रखा है। किसी भी राज्य को गुड गवर्नैंस में अव्वल स्थान मिलने का श्रेय वहां के राजनीतिक नेतृत्व के साथ-साथ राज्य के अधिकारियों व कर्मचारियों को जाता है क्योंकि राज्य में शासन में अधिकारी व कर्मचारियों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। पिछले साढ़े चार साल के दौरान राज्य सरकार हमेशा ही पारदर्शी एवं उत्तरदायी शासन देने के प्रति कृतसंकल्प रही है। 

स्वयं श्री वीरभद्र सिंह अपनी 55 सालों से अधिक लम्बी पारी में सुशासन और जनकल्याणकारी सरकार की अवधारणा को साबित करने में लगे हैं। लोगों को पारदर्शी, जवाबदेह तथा समयबद्ध सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न विभागों की 86 सेवाओं को ‘लोक सेवा गारंटी’ अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है। इस वर्ष के अंत तक 100 से अधिक सेवाओं को इस अधिनियम के अंतर्गत लाया जाएगा। वैसे भी सुशासन को हम तभी सुशासन मान सकते हैं जब सरकार का नेतृत्व सही हो। प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े सभी लोग सही ढंग से कार्य कर रहे हों। जब व्यवस्था में सभी नागरिकों के हितों का ध्यान रखा जाता हो। यह तभी संभव है जब सरकार गरीबों, बच्चों, वृद्धजनों, महिलाओं आदि के अधिकारों की भी रक्षा करे और इनके कल्याण के लिए भी विभिन्न प्रकार की योजनाएं संचालित करे। पिछले साढ़े 4 वर्षों के दौरान हिमाचल प्रदेश सुशासन के इन मानकों व कसौटी पर खरा उतरते हुए जिस तरह विकास के नए शिखरों को छू रहा है, वह देश के अन्य सूबों के लिए एक उदाहरण से कम नहीं है। 

प्रदेश शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाएं, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, रोजगार सृजन, मैक्रो इकोनामी तथा पूंजी निवेश में देश का अग्रणी राज्य बनकर उभरा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रदेशवासियों के सामाजिक- आर्थिक स्तर में व्यापक सुधार आया है। एक तरफ देश में महंगाई तेजी से बढ़ती जा रही है, वहीं हिमाचल प्रदेश के 37 लाख लोगों को राजीव गांधी अन्न योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा प्रदान की जा रही है। बेरोजगारी दूर करने के वायदे के नाम पर देश में राजनीतिक दल बेरोजगारों के वोट खूब बटोरते आए हैं लेकिन हिमाचल में इन्हीं साढ़े 4 वर्षों में सरकारी तथा निजी क्षेत्र में 80 हजार से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान किया गया है। प्रदेश में महत्वाकांक्षी कौशल विकास भत्ता योजना से अभी तक करीब दो लाख से अधिक युवा लाभान्वित हो चुके हैं।

सरकार ने अपने चुनावी वायदों को पूरा करते हुए बेरोजगारी भत्ते का तोहफा भी युवाओं को प्रदान किया है। इस अवधि के दौरान विकास के लाभ प्रदेश के दूरदराज व ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने की दिशा में एक ठोस पहल हुई है। पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों में दर्जनों नए उपमंडल, तहसीलें, उप तहसीलें, कालेज व अन्य शिक्षा संस्थान खोले गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य नैटवर्क सुदृढ़ किया गया है। वर्तमान कार्यकाल में 32 नए महाविद्यालय, 26 नए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान एवं 2 इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना कोई कम उपलब्धि नहीं है। 

इसके अलावा प्रदेश की रीढ़ माने जाने वाले कर्मचारी वर्ग को भी इस अवधि में डटकर सौगातें देना और उनका दिल जीतना कोई कम महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं है। अगर हम हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास और परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो यह बात साबित हो  जाती है कि प्रदेश का कर्मचारी वर्ग हमेशा चुनावों में एक प्रमुख भूमिका निभाकर सरकारों को बनाता व गिराता आया है। एक तरह से इस पहाड़ी प्रदेश की राजनीतिक धुरी कर्मचारियों के इर्द-गिर्द घूमती आई है। कर्मचारी राजनीति से उभरकर कई नेता प्रदेश की राजनीति में भी सक्रिय हुए और प्रदेश में विधायक व मंत्री तक रहे। 

आमतौर  पर यह भी देखने में आया है कि प्रदेश में किसी भी सरकार के कार्यकाल के अंतिम एक-डेढ़ साल में कर्मचारी वर्ग अपनी हताशा  या नाराजगी का खुलकर इजहार करने लगता है लेकिन कांग्रेस सरकार के मौजूदा कार्यकाल में स्थिति भिन्न है। इस चुनावी वर्ष में कर्मचारी वर्ग खुलकर वीरभद्र सिंह के नेतृत्व की तारीफ करते हुए सरकार के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा है।  

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