डोकलाम मुद्दे पर भारत की कूटनीतिक जीत परन्तु...

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Sep, 2017 01:48 AM

indias diplomatic victory on the issue of docmal

28 अगस्त 2017 को चीन और भारत के बीच आपसी सहमति के फलस्वरूप सेनाएं पीछे हटाने के बाद आखिर डोकलाम पर ....

28 अगस्त 2017 को चीन और भारत के बीच आपसी सहमति के फलस्वरूप सेनाएं पीछे हटाने के बाद आखिर डोकलाम पर बना हुआ टकराव टल गया लेकिन चीन द्वारा इस समाधान की व्याख्या कुछ अलग ढंग से की जा रही है। जहां भारत ने परस्पर सहमति के बाद अपने सभी सैनिक भारतीय क्षेत्र में वापस बुला लिए, वहीं चीन ने भी इस क्षेत्र में से अपनी अधिकतर सेना पीछे हटा ली और केवल गश्त करने वाले उसके सैनिक ही पीछे रह गए जो कि पहले भी इस क्षेत्र में गश्त करते थे। 

बेशक चीन ने भी इन तथ्यों की पुष्टि की है लेकिन स्पष्ट तौर पर अपनी घरेलू मजबूरियों के चलते वह इस तथ्य को ही रेखांकित कर रहा है कि सेनाएं तो भारत द्वारा ही पीछे हटाई गईं, जबकि चीन ने किसी प्रकार की कोई रियायत नहीं दी। नई दिल्ली और पेइचिंग द्वारा प्रस्तुत किए बिल्कुल भिन्न-भिन्न बयानों का संज्ञान लेना महत्वपूर्ण होगा। डोकलाम तनाव कम करने के लिए चीन के शियामेन शहर में होने वाले ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री मोदी के रवाना होने से 6 दिन पूर्व ही सहमति बन गई थी। 

यह माना जाता है कि शी जिनपिंग और मोदी दोनों में भविष्य में इस तरह का सीमा विवाद भड़कने की स्थिति टालने के लिए नए सुरक्षात्मक प्रावधानों हेतु सहमति बनी है। हाल ही के वर्षों में यह सहमति कुछ हद तक आहत हो गई थी। वैसे ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन कर रहे चीन के लिए भी यह जरूरी हो गया था कि 3 से 5 सितम्बर तक चलने वाली शीर्ष वार्ता से पहले-पहले डोकलाम टकराव का कोई हल ढूंढा जाए। यदि यह मुद्दा हल न होता तो इससे ब्रिक्स के अस्तित्व पर भी खतरा खड़ा हो सकता था। इसके अलावा कुछ अन्य मजबूरियां भी थीं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि दोनों देशों के बीच 28 अगस्त को ही ऐसी सीमित ‘समझदारी’ बन गई थी जिसके चलते दोनों ही अपनी-अपनी जनता को राजनीतिक रूप में संतुष्ट कर सके कि उन्होंने अपने लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। 

भारत का उद्देश्य तो इस इलाके में चीन को सड़क निर्माण करने से रोकना था लेकिन इस संबंध में चीन द्वारा कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया गया। बेशक भारतीय विदेश नीति से तंत्र में ऐसी आम सहमति बनी हुई लगती है कि डोकलाम मुद्दे पर भारत ने कूटनीति जीत हासिल की है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के पर्यवेक्षकों का मानना है कि वास्तव में इस टकराव में चीन विजयी होकर निकला है क्योंकि भारत उससे कोई लिखित आश्वासन हासिल नहीं कर सका जबकि चीन पहले की तरह ही डोकलाम पठार पर व्यावहारिक नियंत्रण बनाए हुए है।   

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