कहानी ‘कोहेनूर’ हीरे की

Edited By ,Updated: 27 Apr, 2016 12:46 AM

kohinoor diamond story

हर आदमी से राष्ट्रवाद का बिल्ला लगा कर घूमने की उम्मीद करने वाली पार्टी ने सबसे बड़ा राष्ट्र विरोधी ...

हर आदमी से राष्ट्रवाद का बिल्ला लगा कर घूमने की उम्मीद करने वाली पार्टी ने सबसे बड़ा राष्ट्र विरोधी बयान दिया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि कोहिनूर हीरा महाराजा रणजीत सिंह के बेटे दलीप सिंह ने लार्ड डल्हौजी को ‘भेंट’ किया था और यह ब्रिटेन का है।
 
बयान के बाद गुस्से से भरे आए हुए बयानों को देखकर पार्टी को अपनी गलती समझ में आई और इसने अचानक अपनी राय बदल ली। उसने कहा कि कोहिनूर भारत का है और इसे ब्रिटेन से बातचीत के जरिए वापस लाया जाएगा। बात असलियत की है, इसकी नहीं कि लंदन क्या महसूस करेगा। ठीक है कि भाजपा में 2 गुट हैं- एक हीरे को वापस लेने के पक्ष में है, दूसरा मानता है कि यह अंग्रेजों का है। पार्टी  को हकीकत जाननी चाहिए, न कि वह कहना चाहिए जो पार्टी का एक गुट मानता है।

भारत में ब्रिटेन के वायसराय लार्ड डल्हौजी अपने मालिकों, ईस्ट इंडिया कम्पनी और क्वीन विक्टोरिया को खुश करना चाहते थे। वह अपने करियर को भी आगे बढ़ाना चाहते थे। पंजाब को अपने राज्य में मिलाने के लिए अंग्रेजों ने जब सिखों को हराया तो नाबालिग दलीप सिंह डल्हौजी की देख-रेख में थे क्योंकि वह वायसराय था।

दलीप सिंह का धर्म बदलने के बाद लार्ड  डल्हौजी न केवल उन्हें ब्रिटेन ले गया बल्कि अंग्रेजों की सम्पत्ति मान कर कोहिनूर को भी हड़प लिया। हीरे की रक्षा के लिए वह इतना सावधान था कि लंदन जाने के लिए स्वेज नहर वाला रास्ता लेने के बदले दक्षिण अफ्रीका से घूम कर गया जो दूूरी में दोगुना था।

बेशक कोहिनूर हजारों करोड़ का था, लेकिन इसने भारत को पहचान दी थी और इसके रहने से रौब होता था। हमारे शासकों में से एक अहमद शाह अब्दालीने नादिर शाह के साथ जबरदस्ती पगड़ी बदल ली थीजब उसे पता चला कि उसने इसमें कोहिनूर छिपा रखा है।
इन हकीकतों से अनजान भाजपा ने पहले कोहिनूर के मामले से अपना हाथ साफ कर लिया लेकिन गुस्से के स्वाभाविक बयानों को देखकर वह अपनी असली राय पर वापस आ गई। अगर कोहिनूर अंग्रेजों को ‘‘भेंट’’ दी गई (भाजपा की पहले की राय) तो पार्टी को यह समझना चाहिए कि जो देश ब्रिटेन का गुलाम हो, उसकी ‘‘भेंट’’ का कोई अर्थ नहीं है।

लेकिन मुझे उस बहस की याद आती है जो मैंने राज्यसभा में शुरू की थी, जब 90 के दशक में मैं इसका सदस्य था। भारत का उच्चायुक्त रहते हुए अंग्रेजों के सामने इस मुद्दे को उठाने में सफल नहीं होने के बाद, मैंने सोचा कि देश के साथ हुए इस अन्याय पर संसद विचार करेगी। बहस अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मुझसे आग्रह किया कि मामले को न उठाऊं। मैं इस पर हक्का-बक्का रह गया जब उन्होंने कहा कि इससेभारत और ब्रिटेन के संबंधों पर बुरा असर पड़ेगा। मुझे आज तक यह जवाब नहीं मिला है कि कैसे असर होगा।

यूनैस्को के प्रस्ताव के अनुसार भी शासन के दौरान शासकों ने जो ऐतिहासिक वस्तुएं ली हैं वे असली मालिकों को लौटा देनी चाहिएं। नई दिल्ली को ही यह पता होगा कि  उसने मामले को यूनैस्को प्रस्ताव का हवाला देकर क्यों नहीं उठाया। एक देश जिसके उपनिवेश रहे हों, उसे तो हिचक होगी ही। लेकिन भारत, जो खुद एक उपनिवेश रहा हो, उसे क्यों हिचक होनी चाहिए?

वास्तव में, अंग्रेज सरकार ने हीरे के स्वामित्व पर भी सवाल उठाए थे। इसने कहा कि पाकिस्तान बनने के बाद कोहिनूर पर सिर्फ भारत नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान दोनों का स्वामित्व है। लंदन में विदेश विभाग के उच्चाधिकारी ने कोहिनूर को नहीं लौटानेको इस आधार पर सही ठहराया था कि यह पाकिस्तान का है। मैंने उससे कहा कि उन्हें इसे इस्लामाबाद को लौटाने दीजिए। कम से कम, यह भारतीय उपमहाद्वीपमें तो आ जाएगा और फिर हम उनसे इस मुद्दे को उठाएंगे।

यह साफ है कि हीरे या उस बात के लिए, विक्टोरिया या अल्बर्ट म्यूजियम के तहखाने में पड़ी कई टन वस्तुओं को लौटाने का ब्रिटेन का कोई इरादा नहीं है। हालांकि इंगलैंड की ओर से कोई जवाब नहीं आया, फ्रांस ने यूनैस्को प्रस्ताव का पालन किया और उन प्राचीन वस्तुओं को छोड़ दिया जो उनके शासन के समय कब्जे में आई थीं।

जब लंदन में नेहरू कार्नर खोला गया तो मैंने संरक्षक से पूछा कि तहखाने का कितना सामान उन्होंने प्रदर्शनी में लगाया है। उस महिला का जवाब था -5 प्रतिशत। इसके बावजूद सारा खर्च भारत को उठाना पड़ा। मैंने महिला से भारत के खर्चे से बाकी चीजों को प्रदर्शनी में रखने का प्रस्ताव किया। उसने विनम्रतापूर्वक ‘न’ कह दिया। उसने मेरा यह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया कि हम अपने खर्चे से अपने देश में तहखाने की चीजों की प्रदर्शनी लगाएंगे और फिर म्यूजियम को वापस कर देंगे।  तहखाने के सामानों में पांडुलिपियां, किताबें, मानचित्र, पोस्टर और कई अन्य तरह के सामान हैं। भारत के लोग इन चीजों को शायद नहीं देख पाएं क्योंकि सरकार इस मुद्दे को उठाने से हिचकती है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ दिनों पहले हुए ब्रिटेन के दौरे के समय ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जरूर राजी कर लिया होगा कि वह कोहिनूर के सवाल को नहीं उठाएं। नहीं तो, यह समझ में नहीं आता है कि उन्होंने एक बार भी इस विषय को सीधे या परोक्ष रूप से क्यों नहीं उठाया।मोदी सरकार को प्राचीन निशानियोंं का सवाल लंदन के सामने फिर से उठाना चाहिए। इससे पिछली कांग्रेस सरकार को शर्मिंदगी हो सकती है क्योंकि उन्होंने अपने शासन के समय कुछ नहीं किया। लेकिन देश के हित में जरूरी है कि जो इतिहास के हिस्से हैं वे भारत में हों, जहां घटनाएं हुईं। ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की भावना समझनी चाहिए।

ब्रिटिश सरकार ने हीरों की सालाना प्रदर्शनी में कोहिनूर का प्रदर्शन कर अच्छा किया। शायद कैमरन  सरकार को लगा कि हर बार जब कोहिनूर को आम लोगों के देखने के लिए रखा जाता है, भारत की ओर से इसे लौटाने की मांग होती है। यह दोबारा साबित करता है कि यह हीरा वास्तव में भारत का है और लार्ड  डल्हौजी इसे धोखाधड़ी से लंदन ले गया।

मुझे लगता है कि जब साम्राज्य का सवाल आता है तो अंग्रेज निष्पक्ष नहीं रह सकते। वहां गौरव है, विनम्रता नहीं, हमने सही किया का भाव है और अपने अंदर झांकने का नहीं। अपने संबंधों को लेकर अंग्रेजों को घमंड है और बीती यादों में रहते हैं, लेकिन खीझ पैदा करने की हद तक सरपरस्ती का भाव रखते हैं। पुरानी लाइन को दोहराने के बदले, नई पीढ़ी को अलग होना चाहिए था और एक नया संदेश देना चाहिए था।
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