भारत के बुनियादी ढांचे से किसी भी तरह का खिलवाड़ ‘राष्ट्रद्रोह’ के समान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Mar, 2018 01:36 AM

like any kind of anti national treachery of indias infrastructure

हाल ही में भारतीय संस्कृति से संबंधित तीन महत्वपूर्ण घटनाएं सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बनीं। पहली-रामसेतु को लेकर राजग-2 सरकार का सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा। दूसरी-कर्नाटक सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म-संप्रदाय की मान्यता देने...

हाल ही में भारतीय संस्कृति से संबंधित तीन महत्वपूर्ण घटनाएं सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बनीं। पहली-रामसेतु को लेकर राजग-2 सरकार का सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा। दूसरी-कर्नाटक सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म-संप्रदाय की मान्यता देने संबंधी संस्तुति को स्वीकार करना और प्रदेश के अलग झंडे को स्वीकृति और तीसरी-अयोध्या मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई। 

सेतुसमुद्रम परियोजना में  ‘रामसेतु’ को लेकर राजग-2 सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना शपथपत्र प्रस्तुत किया। यह यू.पी.ए.-1 सरकार के उस हलफनामे से बिल्कुल भिन्न है, जिसमें उसने ‘रामसेतु’ को तोड़कर योजना को आगे बढ़ाने के लिए भगवान श्रीराम और उनसे संबंधित प्रतीक चिन्हों के अस्तित्व को नकारने का प्रयास किया था। मोदी सरकार के अनुसार ‘रामसेतु’  को नुक्सान पहुंचाए बिना परियोजना के लिए कोई दूसरा वैकल्पिक मार्ग खोजा जाएगा क्योंकि यह सेतु ‘राष्ट्रहित’ में है। 

भगवान राम और ‘रामसेतु’ को लेकर कांग्रेस का दृष्टिकोण और कर्नाटक में लिंगायत समुदाय व ध्वज संबंधी निर्णय-उस विषाक्त मानस को प्रतिबिंबित करता है जो सत्ता के लिए सनातन राष्ट्र की एकता और उसकी प्राचीन संस्कृति को भी दाव पर लगाने से नहीं हिचकता है। 1980 के दशक में कांग्रेस ने पंजाब में सत्ता पाने के लिए खालिस्तानी आतंकी जनरैल सिंह भिंडरांवाले और उसके रुग्ण चिंतन को प्रोत्साहित किया, जिसकी कीमत देश को हजारों निरपराधों (तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित) की निर्मम हत्या से चुकानी पड़ी। ठीक उसी प्रकार का कदम कर्नाटक में कांग्रेस ने उठाया है, जिसमें उसने देश में अपने अधीन एकमात्र बड़े राज्य कर्नाटक में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार को बचाने हेतु प्रदेश में विशेष ध्वज सहित लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता को स्वीकृति दी है। 

मेरा दावा है कि यदि गांधी जी आज जीवित होते तो वह सिद्धरमैया सरकार के इस फैसले के विरुद्ध ठीक उसी प्रकार आमरण अनशन पर बैठ जाते जैसे 86 वर्ष पूर्व 20 सितम्बर, 1932 को तत्कालीन ब्रितानी प्रधानमंत्री जेम्स मैकडॉनल्ड द्वारा प्रस्तावित दलितों के पृथक निर्वाचन मंडल के विरोध में गांधी जी ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना यरवदा जेल (पुणे) में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया था। उनके प्रयासों के कारण ही उस कालखंड में ब्रिटिश अपनी कुत्सित चाल में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए थे किन्तु भारत की विडम्बना है कि देश  में कांग्रेस सहित स्वयंभू सैकुलरिस्ट सत्ता के लिए समय-समय पर ‘दलित बनाम शेष हिन्दू’ की झूठी औपनिवेशी अवधारणा पर सामाजिक समरसता का गला घोंट रहे हैं। आज उसी घृणित शृंखला में कांग्रेस ने कर्नाटक में ‘लिंगायत बनाम शेष हिन्दू’ का हौव्वा खड़ा किया है। 

भारत सहित शेष विश्व के सभी हिन्दू उस अनंतकालिक वैदिक सनातन संस्कृति के जीवंत प्रतीक हैं, जिसकी उत्पत्ति वेदों के अनुसार स्वयं ब्रह्मा,  विष्णु और महेश (शिव) ने की है। श्रीराम, जो भगवान विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं, उन्हें काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस यदि भगवान शिव के उपासक लिंगायतों को हिन्दू नहीं मानती, तो इस आधार पर देश में किसी को भी हिन्दू नहीं कहा जाएगा। स्वतंत्र भारत में जिस कांग्रेस ने सबसे अधिक शासन (गठबंधन सहित) किया, उसने भारतीय संस्कृति विरोधी विदेशी विचारक मैकाले-माक्र्स के मानसपुत्रों के झूठे और मिथक अध्ययनों और इतिहास को आधार बनाकर अपनी संकुचित राजनीति के लिए रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों और वेदों को गल्पकथा बताकर उनसे जुड़ी सभ्यता, प्रतीकों व घटनाओं को कपोल-कल्पित ठहराने का प्रयास किया है और आज भी ऐसा कर रही है। 

कांग्रेस में इस विकृति का आगमन तब हुआ जब गांधी जी की मृत्यु के पश्चात पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके बाद इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माक्र्सवादी बौद्धिक चिंतन को आत्मसात कर लिया जिसके वैचारिक कण आज भी कांग्रेस की कार्यशैली का संचालन कर रहे हैं। यही कारण है कि जिस सत्य को गांधी जी ने प्रभु राम में देखा और उनके वनवास को धर्मपालन मानकर रामराज्य की परिकल्पना की, उन्हीं के स्वघोषित उत्तराधिकारी भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर न केवल सवाल उठा रहे हैं अपितु राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए भारत को विभाजित करने की कुत्सित योजना में भी शामिल रहे हैं। 

समुद्र की जिन विशाल लहरों के समक्ष ‘रामसेतु’ सैंकड़ों वर्षों से विद्यमान है, उसे मिथक बताकर तोडऩे का स्वप्न वामपंथी सहित स्वयंभू सैकुलरिस्ट देख रहे हैं। यह कुछ-कुछ मजहब प्रेरित उस अभियान का स्मरण कराती है, जिसमें कई शताब्दी पूर्व क्रूर विदेशी इस्लामी शासकों ने भारत पर हमला कर उसकी बहुलतावादी संस्कृति को खत्म करने का प्रयास किया था, जिसमें बलात् मतांतरण के साथ-साथ मंदिरों, मूर्तियों और संबंधित प्रतीक चिन्हों को भी जमींदोज किया गया था। वर्ष 1528 में रामजन्मभूमि अयोध्या में स्थापित मंदिर पर भी जेहादी जुनून कहर बनकर टूटा था। 464 वर्षों तक न्याय की प्रतीक्षा करते हिन्दुओं की आहत भावना एकाएक बेकाबू हो गई और मस्जिद गिरा दी गई। अब इसी से संबंधित मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। 

अयोध्या में रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण-करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से संबंधित है, जो एक भूखंड के लिए या फिर मस्जिद के विरुद्ध में कभी नहीं रहा। उसका एक स्पष्ट कारण है। जब विवादित ढांचा गिराया गया, तब क्या उग्र भीड़ ने आसपास की अन्य मस्जिदों के साथ भी ऐसा किया था? अयोध्या में अढ़ाई दशक पहले कारसेवकों ने जिस ढांचे को जमींदोज किया था, उसे विदेशी हमलावरों ने इबादत के लिए नहीं, अपितु  पराजित हिन्दुओं को नीचा दिखाने और अपमानित करने हेतु स्थापित किया था। 

इस संबंध में 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ब्रितानी इतिहासकार आर्नोल्ड जोसेफ टॉयनबी द्वारा उल्लेखित वृत्तांत महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, ‘‘पोलैंड की राजधानी वारसॉ पर रूस के पहले कब्जे (1614-1915) के दौरान रूसियों ने शहर में एक चर्च की स्थापना की थी, जो आस्था या मजहब से जुड़ा न होकर विशुद्ध रूप से राजनीतिक और पोलैंडवासियों का अपमान व उनकी भावनाओं को आहत करने से प्रेरित था किन्तु वर्ष 1918 में स्वतंत्रता के पश्चात पोलैंड सरकार ने इस चर्च को गिरा दिया।’’ इसी प्रकार मध्यकाल में भारत में इस्लामी आक्रांताओं द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों की स्थापना और उन्हें अपमानित करना भी मजहबी राजनीति से प्रेरित था-जिसका हल राजनीतिक आधार से भी संभव है। 

जो लोग श्रीराम, रामसेतु और भगवान हनुमान की उडऩे की क्षमता आदि पर प्रश्न खड़ा कर हिन्दुओं की आस्था और भावनाओं को आहत करते हैं-क्या वे इसका प्रमाण दे सकते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद ने अपने जीवनकाल में मक्का से यरुशलम की यात्रा एक उडऩे वाले घोड़े बुर्राक में बैठकर की थी, जिसके बाद वह इसी स्थान से स्वर्ग भी गए थे? जब मुस्लिम समुदाय की आस्था को ध्यान में रखकर ‘सेटेनिक वर्सेस’ और ‘लज्जा’ जैसी पुस्तकों को सरकार राजनीतिक रूप से प्रतिबंधित कर सकती है तो करोड़ों हिन्दुओं की आस्था और भावना को अदालती प्रक्रिया के दौरान क्यों बार-बार कलंकित करने का प्रयास किया जा रहा है?
-बलबीर पुंज

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