मध्य प्रदेश को एक और बड़ा ‘आइडिया’ चाहिए

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jun, 2017 12:22 AM

madhya pradesh needs another big idea

क्या आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी .....

क्या आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर शुरू हो गई है? यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री को किसानों की ओर से हमले की आशंका नहीं थी-उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में, जिसके विकास के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर अपने तीन कार्यकालों में उन्होंने अत्यंत परेशानी उठाई। किसान बेशक अब सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं मगर मुख्यमंत्री के समर्थक पूछते हैं कि यदि चौहान नहीं होते तो वे (किसान) कहां होते। 

दूसरी ओर यह भी सच है कि 12 वर्षों तक उन्हें गद्दी पर देखने के बाद लोग चौहान से उकता गए हैं। प्रणाली में कुछ हद तक निष्क्रियता फूट पड़ी है और ऐसा दिखाई देता है कि खुद चौहान के पास आइडियाज खत्म हो गए हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार का असामान्य स्तर, विशेषकर सरकार के निचले स्तरों पर जो अन्य मुख्यमंत्रियों के लिए चौहान का लाभदायक सबक है कि ‘यदि आप सारे अंडे एक ही टोकरी में डालेंगे तो टोकरी टूट सकती है।’ चौहान के मामले में यह ‘शानदार कृषि कहानी’ बेचने की तरह था, जो उन्हें सत्ता में ले आई और यदि वह इस मामले में तेजी से कुछ नहीं कर पाए तो यही उनके पतन का कारण बनेगी। 

इसकी शुरूआत 2006 में उनके मुख्यमंत्री बनने के 8 महीनों बाद हुई। चौहान एक मजबूत कृषक पृष्ठभूमि से हैं, यद्यपि उनका परिवार अमीर नहीं था। अगस्त 2006 में उन्होंने कृषकों की एक पंचायत का आयोजन किया और 40-50 निर्णयों की घोषणा की जो किसानों की कुछ विशेष समस्याओं का समाधान करने वाले थे। उनमें से प्रमुख था किसानों के सामने पूंजी की समस्या। मध्य प्रदेश में कृषि ब्याज दर 16 प्रतिशत थी। चौहान ने घोषणा की कि ब्याज दरें कम की जाएं। उन्हें 9 प्रतिशत पर लाया गया, फिर शून्य प्रतिशत पर और 2015 में उन्होंने घोषणा की कि कृषि ऋण पर -10 प्रतिशत की दर से ब्याज लगाया जाएगा ताकि किसान कीमतें गिरने के बावजूद कृषि से जुड़े रहें। उन्होंने अपने निर्णय को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि कृषि का कोई विकल्प नहीं है। हम फैक्टरियों में गेहूं, चावल अथवा चना नहीं उगा सकते। मध्य प्रदेश में अभी तक कोई भी सहकारी बैंक असफल नहीं हुआ है। 

मगर बीच में मध्य प्रदेश अपनी खुद की सफलता का शिकार बन गया। ग्रामीण प्रायोज्य आय बढ़ गईं। आशाएं बढ़ गईं। मगर बाजारी ताकतें भी अपने काम पर लगी हुई थीं। 2015 में राज्य सरकार ने धान, गेहूं तथा मक्का के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दिया जाने वाला बोनस बंद कर दिया क्योंकि राज्य में इन फसलों का अति उत्पादन होने लगा। इसका कारण चौहान द्वारा किसानों को कृषि उत्पादन के लिए अत्यधिक सहयोग देना था विशेषकर सोयाबीन तथा गेहूं के लिए। मध्य प्रदेश भारत का 70 प्रतिशत से अधिक सोयाबीन उगाता है। 

मगर वास्तव में लुभाने वाली वस्तु है तेल रहित सोया खली का निर्यात। (सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन सामग्री तथा 26 प्रतिशत तेल सामग्री होती है। एक बार जब तेल निकाल लिया जाता है तो बची हुई हाई प्रोटीन वस्तु को तेल रहित सोया कहा जाता है, जो पशु तथा पक्षी खुराक का एक बेहतरीन स्रोत है और इसकी अर्जेंटीना तथा ब्राजील आदि में अत्यधिक मांग है। चूंकि यह गैर-अनुवांशिक संवॢधत (नॉन जी.एम.) होती है इसलिए इसके प्रति सचेत यूरोपियन खरीदार भी इसे बड़ी मात्रा में खरीदते हैं)। 

राज्य में उगाई जाने वाली ‘शरबती’ गेहूं पर उत्तर प्रदेश तथा पंजाब जैसे अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की ललचाई नजर रहती है क्योंकि यह उनके द्वारा उगाई जाने वाली किस्मों से अधिक स्वादिष्ट होता है। मध्य प्रदेश ने 2010-15 के बीच 5 वर्षों में 13.9 प्रतिशत की औसत कृषि विकास दर हासिल की। जहां राष्ट्रीय स्तर पर गत वर्ष कृषि विकास दर 4 प्रतिशत के आसपास रही, वहीं मध्य प्रदेश की कृषि विकास दर शानदार रूप से 18 प्रतिशत थी। मगर यदि कीमतें बहुत गिर रही थीं तो इस सारे अनाज को कौन खरीदता? मध्य प्रदेश में किसान ऋण माफी की बात नहीं कर रहे, वे अपने उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य चाहते हैं। चौहान दिल्ली आए और उन्होंने वे सब दरवाजे खटखटाए जिन्हें वे जानते थे। मगर इस भरमार की स्थिति में उनकी मदद कौन कर सकता था? इससे भी अधिक, वायदा कारोबार करने वालों ने भविष्यवाणी की है कि तेल रहित सोया खली की कीमतों में और गिरावट होगी। 

इसके बावजूद चौहान के लिए यह बहुत बड़े झटके की बात थी कि जिन लोगों के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की थी, वही उनके खिलाफ उठ खड़े हुए। गलतियां हुई थीं। सबसे बड़ी गलती थी आंदोलनकारी किसानों पर गोली चलाना। दूसरी थी फायरिंग में मारे गए किसानों के परिवारों से मिलने के लिए अपनी पत्नी साधना को साथ ले जाना। पत्नी को क्यों? मध्य प्रदेश तथा दिल्ली से राजनीतिक लोगों का दल क्यों नहीं? तीसरी थी किसानों को आंदोलन करने से रोकने के लिए अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठना और 26 घंटों बाद ही उसे खोल देना। क्या उनके लिए कुछ बदल गया था, जो उन्होंने उपवास को खोल दिया?चौहान को समन्वित कार्रवाई करनी पड़ेगी और वह भी तेजी से। मध्य प्रदेश को व्यस्त रखने के लिए एक और बड़े आइडिया की जरूरत है... और कांग्रेस प्रतीक्षा में है कि वह कुछ और गलतियां करें।
 

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