महात्मा गांधी के रास्ते से ही कश्मीर में अमन-चैन लौटेगा

Edited By ,Updated: 29 Aug, 2016 12:36 AM

mahatma gandhi s return from the path of peace in kashmir

राजनाथ सिंह कश्मीर गए। वहां के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की यह अच्छी बात है लेकिन 60 से ज्यादा लोगों की फायरिंग में मौत।

(आशुतोष): राजनाथ सिंह कश्मीर गए। वहां के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की यह अच्छी बात है लेकिन 60 से ज्यादा लोगों की फायरिंग में मौत। पिछले डेढ़ महीने से कफ्र्यू। मुख्यमंत्री और मोदी सरकार का शुरूआती रवैया। इसकी पड़ताल होनी चाहिए। कश्मीर में हालात आज बहुत खराब हैं और ये हालात क्यों बने इसकी जांच होनी चाहिए। 

क्या केन्द्र के रवैये की वजह से या फिर राज्य सरकार के निकम्मेपन के कारण? क्या दोनों सरकारों के पास कश्मीर को लेकर कोई रणनीति थी या है? क्या इन दोनों को एहसास है कि कश्मीर दूसरे राज्यों की तरह नहीं है और उसके साथ उसी तरह का बर्ताव नहीं हो सकता जैसा कि किसी और के साथ किया जा सकता है?

 
कश्मीर को लेकर मोदी सरकार का रुख 3 चीजों से प्रभावित रहा। एक, आर.एस.एस. की विचारधारा जो कश्मीर को हमेशा ऐतिहासिक कारणों से शत्रुभाव से देखने की रही है। दो, मोदी की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अनुभवहीनता। राज्यों के मुद्दे और उनको हैंडल करने का अंदाज, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को देखने तथा उनको डील करने का तरीका, दोनों में जमीन-आसमान का फर्क होता है। तीन, मोदी का अपना स्वभाव। वह जिद्दी हैं और मतभेद उनको पसंद नहीं हैं।
 
विचारधारा की बंदिशों ने आर.एस.एस. और मोदी की दृष्टि को बाधित कर रखा है। वह कश्मीर की बारीकियों, जटिलताओं और संवेदनशीलता को साफ तौर पर देखने नहीं देती। कश्मीर दूसरे राज्यों जैसा नहीं है। उसका एक इतिहास है। कश्मीर अपनी इच्छा से भारत का हिस्सा नहीं बना। देश की आजादी के वक्त कश्मीर ने न तो भारत को अपनाया और न ही पाकिस्तान को। पर जब पाकिस्तान ने छुपे तौर उस पर हमला किया और पाकिस्तान की सेना श्रीनगर के एयरपोर्ट तक पहुंच गई तब वहां के राजा ने भारत से मदद की गुहार लगाई। 
 
भारत से संधि हुई और धारा 370 के तहत विशेष अधिकार के साथ वह भारत का हिस्सा बना। इस शर्त के साथ कि जनमत संग्रह कराया जाएगा कि कश्मीर के लोग भारत के साथ रहने पर क्या राय रखते हैं। पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तानी सेना वापस नहीं गई तो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वहां जनमत संग्रह नहीं  हुआ। आर.एस.एस. को सबसे पहले इसका भान होना चाहिए।
 
आर.एस.एस. की दूसरी दिक्कत यह है कि वह कश्मीर को हमेशा मुस्लिम नजरिए से देखने का अभ्यस्त है। अपनी अंदरूनी बातचीत में वह कहते भी हैं कि चूंकि वहां मुस्लिम बहुमत में हैं इसलिए कश्मीर में समस्या है। उनको अपनी यह सोच बदलनी होगी। पिछले 2 सालों में एक नए तरह का विमर्श कश्मीर के बहाने पैदा करने का प्रयास हुआ है। कश्मीर को राष्ट्रवाद के चश्मे से कसने की कोशिश की गई है। वहां के लोगों के नजरिए को समझने की जगह उसे राष्ट्र विरोध की संज्ञा दी गई है। जो लोग कश्मीर समस्या के प्रति जरा भी सहानुभूति पूर्ण रुख रखते हैं उन्हें फौरन देशद्रोही करार दे दिया जाता है। दिल्ली में बैठे तथाकथित टी.वी. चैनल और उनके अनपढ़ संपादक व एंकर इस ख़तरनाक विचार को फैलाने में लगे हुए हैं।
 
जे.एन.यू. के कन्हैया कुमार को इसलिए जेल में रहना पड़ा कि वह कश्मीर पर अलग राय रखता है। उसने कभी भी देश के टुकड़े-टुकड़े होने की बात नहीं की फिर भी देशद्रोही बता कर उसे पीटा गया, उस पर जानलेवा  हमला हुआ। अभिनेत्री राम्या के खिलाफ देशद्रोह का मुकद्दमा दर्ज कर लिया गया क्योंकि वह पाकिस्तान को नर्क मानने को तैयार नहीं है जैसा कि रक्षामंत्री पार्रिकर कहते हैं । 
 
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज शरीफ को शपथ ग्रहण में बुलाया पर हुर्रियत के नेताओं के पाकिस्तान के नेताओं से मिलने की कवायद पर पाकिस्तान से बातचीत तोड़ दी क्योंकि आर.एस.एस.-भाजपा -मोदी सरकार की सोच में हुर्रियत के नेता कश्मीर के अलग होने की वकालत करते हैं इसलिए वह देशद्रोही हैं तथा पाकिस्तान से बातचीत का मतलब देश तोडऩे की साजिश है। समस्या का अति सरलीकरण कश्मीर समस्या को सुलझाने की दिशा में सबसे बड़ा खतरा है। मोदी जी विपक्ष में रहकर यह तो कह सकते हैं कि एक सिर के बदले दस सिर लाने होंगे, पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति अगर इसी सोच के साथ कश्मीर को देखेगा तो फिर समस्या सुलझने की जगह उलझेगी।
 
कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है  इससे किसी को इंकार नहीं होना चाहिए लेकिन इसके शांतिपूर्ण हल के कई तरीके हो सकते हैं, पर आर.एस.एस. की दृष्टि से अलग हर तरीके को देशद्रोही बताना यह दर्शाता है कि आर.एस.एस.-भाजपा-मोदी सरकार को न तो समस्या की गहराई का अंदाजा है और न ही वे अपने स्वभाव में लोकतांत्रिक हैं। तानाशाही में तो एक लकीर हो सकती है पर लोकतंत्र में कई लकीरें होंगी। ये लकीरें एक-दूसरे को काटेंगी भी और परस्पर विरोधी भी होंगी, पर एक लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री सारी लकीरों को समझ कर सबको साथ लेकर चलने की मानसिकता के साथ समस्या का समाधान खोजने की दिशा में बढ़ेगा। मोदी जी की प्रॉब्लम यह है कि उनके नजरिए में आज भी एक ही लकीर है  बाकी लकीरों का कोई अस्तित्व नहीं है। यह जिद एक प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देती।
 
भारत के प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि कश्मीर की समस्या सिर्फ आतंकवाद की समस्या नहीं है। सिर्फ दहशतगर्द ही अगर होते तो पुलिस व सेना उनसे निपट लेतीं। मैं कई बार कश्मीर गया हूं, जब शांति थी तब भी और जब आतंकवाद अपने चरम पर था तब भी, जब चुनाव हुए तब भी। कश्मीर में एक एहसास है कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है, और हो रही है। ऐसे में जब बुरहान वानी की मौत के बाद प्रदर्शन होने पर 60 से अधिक लोग मारे जाएं तो यह सोच कश्मीर के मनोविज्ञान में और गहरे बैठ जाती है। गोली का जवाब तो गोली से दिया जा सकता है पर सोच का जवाब गोली नहीं हो सकती। सोच की लड़ाई तो सोच कर ही लडऩी होगी। सोच एक दिन में नहीं बदलती। यह बहुत धीमी प्रक्रिया है। बहुत धैर्य रखना होगा।
 
कश्मीर को देखते हुए हमारे प्रधानमंत्री जी यह भूल जाते हैं कि कश्मीर के बगल में पाकिस्तान है। पड़ोस में चीन भी है। पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि कश्मीर शांत हो क्योंकि कश्मीर के बहाने पाकिस्तान अपनी हीन ग्रंथि को निकालता रहता है। वह अपनी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाया है। कश्मीर पर अगर वह चुप हो गया तो फिर वह किस नजर से पाकिस्तान के अस्तित्व को उचित ठहराएगा। उसके जन्म को सही बताएगा। मोहम्मद अली जिन्ना ने यह कहकर पाकिस्तान की वकालत की थी कि हिन्दू और मुसलमान 2 अलग कौमें हैं और यह साथ-साथ नहीं रह सकतीं। जिन्ना ने पाकिस्तान की वकालत तो कर ली पर पाकिस्तान क्या होगा, कैसा होगा यह कभी नहीं सोचा।
 
पाकिस्तान पहला मुल्क है जिसका विचार पहले आया और देश बाद में बना। जिन्ना जब इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान मांग रहे थे तब भी उन्हें नहीं पता था कि पाकिस्तान का भूगोल कैसा होगा। इसके लोग कौन होंगे। लेकिन जब पाकिस्तान से बंगलादेश अलग हो गया तो पाकिस्तान बनने का तर्क खत्म हो गया। यह साबित हो गया कि इस्लाम के नाम पर बंगलादेश के लोग पाकिस्तान के साथ नहीं रह सकते। हर मुल्क के अपने पैमाने होते हैं। पाकिस्तान आज कश्मीर के बहाने अपने उस तर्क को दोबारा स्थापित करने में लगा है। वह कश्मीर के बहाने भारत से बदला भी ले रहा है और अपनी कुंठा भी सरेआम कर रहा है। मोदी जी को यह मानना होगा कि जंगबाजों वाले तरीके से न तो कश्मीर संभलेगा और न ही पाकिस्तान की साजिश बेनकाब होगी।
 
आर.एस.एस.-भाजपा-मोदी सरकार को खुले मन से कश्मीर के सभी तबकों से बातचीत करनी होगी। हुर्रियत से भी बात करनी होगी और उनसे भी जो आज बंदूक चला रहे हैं। वहां के लोगों को समझाना होगा, उन्हें भरोसे में लेना होगा, उनसे मित्रता का व्यवहार करना होगा। भारतीय चैनलों को भी कश्मीर को देशद्रोह के कटघरे में डालने की सोच से उबरना होगा। मैं यह नहीं कहता कि चैनलों पर कोई प्रतिबंध लगे लेकिन हर विमर्श का सरलीकरण करने की मानसिकता और देशप्रेम के दायरे में कसने की जिद को खत्म करना होगा क्योंकि अब यह पत्रकारिता देश को नुक्सान पहुंचाने लगी है। देश में दोस्ती का नहीं दुश्मनी का वातावरण बना रही है। 
 
इससे कश्मीर में अमन नहीं आएगा। इससे आग भड़केगी। इस आग को बुझाने के लिए बड़प्पन दिखाना होगा। दिल बड़ा करना होगा। विचारों में लोकतंत्र लाना होगा। शत्रु भाव खत्म कर प्रेम का संदेश देना होगा। लाख कह लें पर देश तो महात्मा गांधी के ही रास्ते पर चलेगा और उसी रास्ते पर चल देश तरक्की भी करेगा और कश्मीर में अमन चैन लौटेगा। 
 
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