धारा-118 के कारण लाखों गैर कृषक हिमाचली बना डाले ‘दूसरे दर्जे के नागरिक’

Edited By shukdev,Updated: 23 Feb, 2017 01:00 AM

millions of non agricultural struck himachal second class citizens

118 के तहत लाखों गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने का हक देने के

Himachal : 118 के तहत लाखों गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने का हक देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेशों को खारिज करके भले ही राज्य सरकार को राहत दी है लेकिन हक न मिलने से सूबे के लाखों गैर कृषक हिमाचलियों की उम्मीदों पर पानी फिरा है।कोर्ट के फैसले से, सरकार के रुख से इन हिमाचलियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की, गैर कृषक हिमाचलियोंको सीधे जमीन खरीदने की अनुमति देने के मामले में खिलवाड़ ही किया है। ऐसे में आज भी लाखों गैर कृषक सीधे पंजीकरण करवाकर जमीन खरीदने से वंचित हैं। 

उधर सरकार किसानों की भूमि को बचाने की दलील देकर 1972 में लागू एक्ट के नाम पर पल्ला झाड़ती रही है। ऐसे में करीब 45 साल से लाखों गैर कृषकों को सरकार ने दूसरे दर्जे का नागरिक बना डाला है। राज्य के कृषक कहीं भी भूमि खरीद व बेच सकते हैं जबकि गैर कृषकों पर बंदिश लागू है। 

यह अलग बात है कि सरकार धारा 118 के तहत गैर कृषकों को भूमि खरीदने की अनुमति नियमानुसार देती है लेकिन यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आम गैर कृषक तो इस बारे में सोच ही नहीं सकता। जो लोग जमीनखरीदने के लिए आवेदन करते हैं उन्हें जिलाधीश कार्यालय से लेकर राज्य सचिवालय तक कितने धक्के खानेपड़ते हैं इसका अंदाजा केवल गैर कृषक ही लगा सकते हैं। उधर सरकार भी अवैध कब्जे करने वाले कृषकों पर मेहरबान नजर आ रही है। 

हाईकोर्ट ने अपने आदेशों में कहा कि सरकार तय समय सीमा में अवैध कब्जे खाली करवाए लेकिन सरकार नहीं चाहती। कब्जे छुड़ाने की बजाय कब्जों को नियमित करने के लिए सरकार ने हाई पावर कमेटी का गठन कर दिया है। कैबिनेट की बैठक में भी अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए हामी भरी गई। सरकार को अवैध कब्जाधारी किसानों के मानवीय अधिकारों की तो ङ्क्षचता है, लेकिन लाखों गैर कृषक हिमाचलियों के मानवीय अधिकारों की ङ्क्षचता नहीं है। सरकार ने इस मामले में कानून का डंडा दिखाकर अपनी आंखें मूंद लीं। 

क्या हिमाचल के विकास में लाखों गैर कृषकों का योगदान नहीं है : 
दशकों से गैर कृषक प्रदेश में आवास, व्यवसाय या खेती के लिए बिना इजाजत कृषकों की तर्ज पर सरकार से भूमि खरीदने का हक मांग रहे हैं लेकिन सत्ता में आने वाली पार्टियों ने कुछ नहीं किया। उलटा धारा 118 को हाथियार बनाकर जब- जब मौका मिला एक-दूसरे पर तान दिया। 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लाखों गैर कृषकों ने प्रदेश के विकास के लिए अपना योगदान नहीं दिया, क्या वे अपना खून पसीना नहीं बहा रहे हैं, क्या वे टैक्स नहीं देते, क्या वे वोट नहीं देते, गैर कृषकों के साथ तो संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का ही हनन हो रहा है। जिसमें कहा गया है कि भारत का नागारिक किसी भी राज्य में रहने के लिए, व्यापार करने के लिए पूरी तरह से स्वंतत्र है। 

सवाल यह भी है कि जिन किसानों की भूमि को बचाने के लिए सरकार ने धारा 118 को लागू किया था वहीं किसान दशकों से अपनी भूमि को बेचते आए हैं। आज जमीन बेचकर धन्ना सेठ ही किसान बने हैं और बड़े-बड़े बिल्डर भी। गैर कृषक तो आज भी जमीन का एक टुकड़ा खरीदने के लिए सरकार के रहमोकरम पर निर्भर है।

370 से भी काला कानून है 118 : 
जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370 से भी काला कानून साबित हुआ है धारा 118। धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर में वहां का कोई भी नागरिक राज्य में कहीं भी जमीन खरीद व बेच सकता है लेकिन धारा 118 ने तो यहां के लाखों नागरिकों को भावनात्मक रूप से दो हिस्सों में बांट डाला है। कानून विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने का हक देना है तो ये सब कानून की बजाय राजनीतिक इच्छा शक्ति से ही होगा। 

गैर कृषकों के मामले में सरकार ने जो रुख अपनाया है उसके बाद गैर कृषकों में पिछले कई सालों से पलायनवादी सोच उभरी है। बहुत से गैर कृषक अब दूसरे राज्यों की ओर रुख करने पर मजबूर हो चुके हैं जहां धारा 118 जैसी  बंदिशें नहीं हैं। हिमाचल के अलावा देश का कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां की सरकार ने ऐसा कानून लागू किया है। 

शहरी क्षेत्रों में नहीं हो रहे हैं जमीन के पंजीकरण: 
शहरी क्षेत्रों में भी गैर कृषकों के साथ भेदभाव जारी है। धारा 118 के नाम पर गैर कृषकों को यह कहकर जमीन के पंजीकरण से वंचित किया जा रहा है कि अगर गैर कृषक का पुश्तैनी घर में हिस्सा बनता है तो आप अन्यत्र भूमि खरीदने के पात्र नहीं हैं। मिसाल के तौर पर अगर नप क्षेत्र में पुश्तैनी घर 50 मीटर में बना है और उसके हिस्सेदार 4 होंगे तो उनके हिस्से 12.5 मीटर जमीन निकलेगी। सवाल उठता है कि क्या इस हिस्से में गैर कृषक रह सकता है और क्या मकान बना सकता है। 

राजस्व अधिकारी पंजीकरण करने से पहले बयान हल्फिया की मांग करते हैं। ऐसे में बहुत से पंजीकरण रुके हैं और गैर कृषकों ने भूमि मालिक को लाखों का भुगतान कई-कई साल से कर रखा है।    

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