Edited By ,Updated: 16 Jan, 2017 12:33 AM
विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन रिटेलर को घुटने टेकने पर मजबूर करके भारतीय विदेश मंत्री ने स्पष्ट तौर पर राष्ट्र गौरव को बहाल किया है। घटनाक्रम कुछ इस ...
विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन रिटेलर को घुटने टेकने पर मजबूर करके भारतीय विदेश मंत्री ने स्पष्ट तौर पर राष्ट्र गौरव को बहाल किया है। घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है :
11 जनवरी को एक भारतीय ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ‘एमेजॉन कनाडा’ के ऑनलाइन स्टोर की एक फोटो ट्वीट द्वारा भेजी। यह स्टोर विशेष रूप में व्यक्तिगत पसंद के अनुसार बनाए गए डोर मैट बेचता है। इनमें से कुछ डोर मैट भारतीय तिरंगे के रंगों में थे।
विदेश मंत्री को ट्वीट भेजने वाले ने लिखा था, ‘‘महोदया, एमेजॉन कनाडा की हर हालत में ङ्क्षखचाई होनी चाहिए और उन्हें कठोर चेतावनी दी जाए कि भारत में तिरंगे के रंग की डोर मैट बेचने की हिम्मत न करे। कृपया इस मामले में कार्रवाई करें।’’
विदेश मंत्री ने कार्रवाई करते हुए 3 ट्वीट किए। पहला ट्वीट उन्होंने प्रात: 5.43 पर ही दाग दिया था। यह इस प्रकार था : ‘‘कनाडा में भारतीय उच्चायोग : यह बिल्कुल अस्वीकार्य है। कृपया उच्चतम स्तर पर एमेजॉन के साथ यह मुद्दा उठाया जाए। ’’
दूसरा ट्वीट उन्होंने प्रात: 6.41 पर तब भेजा जब वह इस गंभीर मुद्दे के बारे में पूरी जानकारियां हासिल कर चुकी थीं। यह ट्वीट इस प्रकार था : ‘‘एमेजॉन को हर हालत में बिना शर्त क्षमा याचना करनी होगी। उन्हें हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले सभी उत्पाद तत्काल वापस लेने होंगे।’’
दो मिनट बाद उन्होंने अपने आखिरी ट्वीट में धमकी देते हुए लिखा : ‘‘यदि ऐसा तत्काल नहीं किया जाता तो हम एमेजॉन के किसी अधिकारी को भी भारत का वीजा नहीं देंगे, जो वीजे पहले जारी हो चुके हैं वे भी रद्द कर दिए जाएंगे।’’
डोर मैट निर्माता स्वाभाविक रूप में भारतीय संस्कृति से परिचित नहीं था। पश्चिमी देशों में डोर मैटों पर ‘स्वागतम’ यानी ‘वैल्कम’ जैसे शब्द लिखे होते हैं और उन पर पांव रखने का कोई बुरा नहीं मनाया जाता क्योंकि उन देशों में संभावनाएं आहत होने की कोई संस्कृति नहीं है।
ये डोर मैट किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में भी हो सकते हैं और अधिकतर लोग अपना गौरव दिखाने के लिए इन्हें खरीदते हैं। भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया में ऐसा माना जाता है कि पांवों को किसी न किसी रूप में गंदगी लगी होती है (शायद ऐसा इसलिए होता है कि हम अपने चौगिर्दे को साफ-सुथरा रखने में विफल हैं) इसलिए हमारे यहां डोरमैट्स को अलग दृष्टि से देखा जाता है।
एमेजॉन कनाडा ने तत्काल कार्रवाई की और उस इंटरनैट ङ्क्षलक को हटा दिया जो एक थर्ड पार्टी सप्लायर से संबंधित था। एमेजॉन की वैबसाइट केवल एक बिक्री स्थल है, जहां लोग अपने-अपने उत्पाद बेचते हैं। ट्विटर पर छोड़ी गई अधिकतर टिप्पणियां सुषमा स्वराज की कार्रवाई के पक्ष में थीं क्योंकि भारत में राष्ट्रीय गौरव की भावनाएं बहुत प्रबल हैं।
कुछ लोगों ने महसूस किया कि सुषमा ने जरूरत से अधिक बड़ा कदम उठाया है। पहले तो ऐसे लोगों ने यह कहा कि भारत का आत्मसम्मान और राष्ट्रीय गौरव इतना कमजोर नहीं कि इस प्रकार की बातों से आहत हो। इसके बाद उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि एमेजॉन ने भारत में अरबों डालर का निवेश किया है इसलिए उसके साथ अधिक सम्मानजनक तरीके से पेश आना चाहिए था।
मैं इस बात से असहमत हूं। इसका कोई अर्थ नहीं कि राष्ट्र गौरव को ठेस लगाने वाला व्यक्ति या निकाय कौन और कैसा है? भारत सरकार को हर हालत में सभी के साथ बराबरी से पेश आना होगा। सुषमा स्वराज की कार्रवाई के संबंध में मेरी समस्याएं अलग तरह की हैं। पहली बात तो यह है कि सुषमा स्वराज की धमकियां उस तथ्य की पुष्टि करती हैं जो बहुत से लोगों की नजरों में वास्तविक भारत हैं।
यानी कि यह एक ऐसा देश है जो नियमों और कानूनों के आधार पर काम नहीं करता बल्कि काम चलाऊ और मनमर्जी के फैसलों के सहारे चलता है। यदि एमेजॉन के अधिकारियों ने अपने वीजे सही दस्तावेजों के आधार पर हासिल किए हैं तो सुषमा स्वराज किस कानून के अंतर्गत इन्हें रद्द करने की धमकी दे रही थीं?
यदि उन्हें महसूस होता था कि अपराध किया गया है तो कानून का सम्मान करने वाले व्यक्ति के रूप में उन्हें एमेजॉन के विरुद्ध एफ.आई.आर. या शिकायत दर्ज करवानी चाहिए थी। इसकी बजाय उन्होंने ट्वीटर के माध्यम से एक तोप के गोले की तरह फतवा दाग दिया। ऐसा करते समय उन्होंने बिल्कुल किसी निरंकुश शासक जैसा व्यवहार किया था।
दूसरी बात यह है कि एमेजॉन एक ग्लोबल बिक्री स्थल है। यदि कोई भी व्यक्ति बहुत पैनी दृष्टि से देखे तो उसे किसी न किसी गुरु, देवता या पैगम्बर के विरुद्ध यहां कुछ न कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिल ही जाएगी और मैं दावे से यह बात कह सकता हूं कि डोर मैट जैसे उत्पाद को वापस लिए जाने के बाद भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा।
वास्तव में तो अगले ही दिन ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि भारतीय तिरंगे के रंग के जूते भी बेचे जा रहे हैं और इन्हें भी दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आपत्तिजनक माना जाता है। अगली बार यदि इसी तरह की कोई समस्या खड़ी होती है तो सुषमा जी क्या कार्रवाई करेंगी?
तीसरी बात कि जनता का आक्रोशपूर्ण राष्ट्रवाद हमारे नेताओं को बहुत आसानी से अपील करता है। पिछले साल भी इन्हीं दिनों में हम राष्ट्रवाद पर चर्चा कर रहे थे। फरवरी 2016 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवॢसटी में नारेबाजी का मुद्दा भड़का था। मीडिया में 2 सप्ताह तक यह सनसनीखेज खबर बनी रही थी।
हमारी केन्द्रीय शिक्षा मंत्री इतनी आवेश में आ गई थीं कि उन्होंने अपना सिर काट देने की धमकी दी थी। गृह मंत्री ने कहा था कि इस नारेबाजी के पीछे लश्कर-ए-तोयबा और हाफिज सईद का हाथ है। प्रधानमंत्री स्वयं इस बहस में कूदे थे और उन्होंने ‘सत्यमेव जयते’ कहते हुए इस बारे में ट्वीट किया था।
स्पष्ट था कि राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) इस मामले में जांच करने जा रही थी। राष्ट्रीय सम्मान, गरिमा और सुरक्षा को चुनौती देने वाले युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया था और उनमें से एक को तो हिरासत में पीटा भी गया था।
इस सारी नोटंकी का अंततोगत्वा क्या परिणाम निकला था? भाजपा सरकार ने आरोपपत्र ही दायर नहीं किया था। रात गई, बात गई वाली स्थिति हुई थी। जिस कपटपूर्ण और ढोंगी राष्ट्रवाद तथा भावनात्मक और आडम्बरयुक्त नोटंकी का तब प्रदर्शन हुआ था, उसमें राष्ट्रवाद का अंश बहुत मामूली था। सुषमा स्वराज ने एक बार फिर इसी बात की पुनरावृत्ति की है।
यह राष्ट्र के समय और ऊर्जा की बर्बादी मात्र है और मंत्रियों (खासतौर पर भारी जिम्मेदारियां वहन करने वाले मंत्रियों) को इस प्रकार की सर्कस में शामिल नहीं होना चाहिए।