खतरे से खाली नहीं परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाना

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Dec, 2017 03:31 AM

no nuclear energy plant installed in danger

18 मई, 2017 को यह खबर बहुत धूमधाम से प्रकाशित हुई थी कि सरकार ने ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए 4 अलग-अलग राज्यों में कुल 7000 मैगावाट क्षमता वाले 10 स्वदेश निर्मित परमाणु रिएक्टर स्थापित करने का निर्णय लिया है। इसके जल्दी ही बाद 2 जून को यह समाचार...

18 मई, 2017 को यह खबर बहुत धूमधाम से प्रकाशित हुई थी कि सरकार ने ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए 4 अलग-अलग राज्यों में कुल 7000 मैगावाट क्षमता वाले 10 स्वदेश निर्मित परमाणु रिएक्टर स्थापित करने का निर्णय लिया है। इसके जल्दी ही बाद 2 जून को यह समाचार आया कि कुडनकुलम में 2 अतिरिक्त रूसी रिएक्टर भी लगाए जाएंगे। 

इन दोनों समाचारों से सभी जागरूक लोगों को सदमा लगा। रही-सही कसर इस समाचार ने पूरी कर दी है कि सरकार ने अनुबंध की शर्तों को संशोधित करते हुए क्रमश: 1650 मैगावाट क्षमता वाले 6 फ्रांसीसी रिएक्टर लगाने का भी फैसला कर लिया है। परमाणु ऊर्जा उत्पादन की वैधता तो उस समय से ही विवादों में है जब देश में इस प्रयास की शुरूआत हुई थी जब 1959 में मुम्बई के निकट तारापुर में देश का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया था तो जाने-माने वैज्ञानिक दामोदर धर्मानंद कौसांबी (प्रख्यात इतिहासकार डी.डी. कौसांबी के पुत्र) ने पंडित नेहरू को इसके खतरे के बारे में आगाह किया था।

उन्होंने बताया था कि इसके भौतिक दुष्प्रभावों के साथ-साथ यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी खतरनाक है और वित्तीय दृष्टि से पायदार नहीं। उन्होंने यहां तक कहा था कि भारत में वर्ष भर में जितनी धूप उपलब्ध होती है उसके मद्देनजर परमाणु ऊर्जा पर पैसा खर्च करना बेकार है। धूप के अलावा हमारे देश में हवा, समुद्र की लहरों तथा बायोमास के रूप में सतत् ऊर्जा स्रोत भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। कौसांबी ने तब परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के खतरे के बारे में जो कुछ कहा था वह अमरीका के ‘थ्री माइल आईलैंड’, रूस के चेर्नोबिल तथा जापान के फुकुशिमा की विनाशलीला से प्रमाणित हो चुका है। इसके अलावा अन्य कई संयंत्रों में छोटे स्तर पर अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

सतत् ऊर्जा स्रोतों से विद्युत उत्पादन के संबंध में कौसांबी के आकलन कालांतर में सही सिद्ध हुए हैं- खास तौर पर सौर और पवन ऊर्जा के संबंध में। भारी-भरकम मानवीय एवं अन्य प्रकार की कीमत चुकाकर एक के बाद एक देश ने सबक सीखा और पुराने परमाणु संयंत्र बंद कर देने के साथ-साथ नए परमाणु संयंत्रों के आर्डर भी रद्द कर दिए और सौर ऊर्जा की ओर बदलाव शुरू कर दिया। यहां तक कि हमारे देश में भी काफी संख्या में सौर ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण या तो हो गया है या फिर किया जा रहा है।

इसका नतीजा यह हुआ है कि सौर ऊर्जा का विकास प्रारम्भिक दौर में होने के बावजूद इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली 2.62 पैसे प्रति यूनिट की दर से सप्लाई की जा रही है और अगले 5-7 सालों में यह लागत घटकर 1.5 रुपए तक आ जाएगी। इसके विपरीत परमाणु संयंत्र द्वारा सप्लाई की जाने वाली बिजली के लिए कुडनकुलम में स्थापित रूसी रिएक्टर नम्बर 3 और 4 द्वारा 6.30 पैसे प्रति यूनिट और जापान द्वारा सप्लाई किए गए वैसिं्टगहाऊस रिएक्टरों द्वारा 9 रुपए प्रति यूनिट तथा फ्रांस द्वारा लगाए गए अरीवा रिएक्टरों द्वारा 12 रुपए प्रति यूनिट वसूल किए जा रहे हैं। 

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के जैतापुर में स्थापित किए जाने वाले 6 फ्रांसीसी रिएक्टरों में से प्रत्येक द्वारा 1650 मैगावाट विद्युत उत्पादन किया जाएगा और सितम्बर 2015 के अनुमानों के अनुसार इन पर आने वाला पूंजीगत खर्च 11.5 बिलियन डालर यानी कि लगभग 74 हजार करोड़ रुपए प्रति इकाई होगा यानी कि सभी 6 रिएक्टरों पर कुल 4,44,000 करोड़ रुपए होगा। ये रिएक्टर केवल 60 वर्ष तक काम कर सकेंगे। अनेक रिपोर्टों से यह प्रभाव मिलता है कि सामान्य परिचालन की स्थिति में भी परमाणु संयंत्र से जो रेडियो एक्टिव उत्सर्जन होता है वह इंसानों (खास तौर पर बच्चों), आसपास के पेड़-पौधों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है और वे ल्यूकीमिया (खून का कैंसर), थाइरायड कैंसर तथा मस्तिष्क के ट्यूमर से पीड़ित हो जाते हैं लेकिन थ्री माइल आईलैंड (अमरीका), चेर्नोबिल (रूस) और फुकुशिमा (जापान) में तो बहुत भारी रेडिएशन (विकिरण) पैदा हुआ था। 

उदाहरण के तौर पर चेर्नोबिल हादसे के बाद 60 प्रतिशत रेडिएशन का सामना अकेले बेलारूस को ही करना पड़ा था जिससे 5 लाख बच्चों सहित इसके 25 लाख नागरिक प्रभावित हुए थे। 2005 में ‘चेर्नोबिल फोरम’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 80 वर्ष की अवधि में कैंसर से 4000 मौतें होने की उम्मीद थी। यूक्रेनी जनता के रेडिएशन संरक्षण के लिए गठित राष्ट्रीय समिति ने रिपोर्ट दी थी कि चेर्नोबिल हादसे के बाद साफ-सफाई में लगे श्रमिकों की 1995 तक 5722 मौतें हुई थीं। ‘चिंतित वैज्ञानिकों के संगठन’ के अनुसार दुनिया भर में कैंसर से लगभग 27000 लोगों के मरने की आशंका है।

‘ग्रीन पीस’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 1990 से 2004 के बीच सामान्य परमाणु रेडिएशन से होने वाली मौतों के अलावा 10,000 से 20,000 तक अधिक लोग मौत का शिकार हुए थे। यूक्रेनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनुमान लगाया था कि उसकी लगभग 70 प्रतिशत आबादी में परमाणु हादसे के कारण श्वसन तंत्र, रक्त और तंत्रिका प्रणाली पर रोगों का हमला हुआ था। बेलारूस में चेर्नोबिल दुर्घटना के 6 वर्ष बाद तक जन्मजात रोगों में 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई थी। रेडिएशन से बहुत बुरी तरह प्रभावित बेलारूस के एक जिले के संबंध में 2005 में आई रिपोर्ट में बताया गया था कि 95 प्रतिशत बच्चे कम से कम एक दीर्घकालिक रोग से पीड़ित हो गए हैं। 50,000 परमाणु सफाई कर्मियों, जो चेर्नोबिल में जीवित रोबो के रूप में कार्यरत थे, उनमें से भारी संख्या में से ल्यूकीमिया के कारण मर गए थे। जापान की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद फरवरी 2016 में जारी हुई रिपोर्टों के अनुसार बच्चों के थाइरायड कैंसर में 10 गुणा वृद्धि हुई थी तथा पूरे जापान के समूचे कैंसर मामले 9600 से बढ़कर 66000 हो गए थे। 

चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद जीव और वनस्पति दोनों ही बुरी तरह प्रभावित हुए थे। यह विपत्ति केवल 1000 मैगावाट क्षमता वाले एक ही परमाणु रिएक्टर में हुई दुर्घटना का नतीजा थी। दुर्घटना के बाद प्रभावित इलाके से बेलारूस, यूक्रेन और रूस को 3,50,400 लोगों को घरों से निकालकर अन्य जगहों पर बसाना पड़ा था। बेलारूस की लगभग 40,000 वर्ग किलोमीटर कृषि भूमि रेडिएशन के दुष्प्रभावों की मार में आ गई थी। इस दुर्घटना के 30 वर्ष बाद भी दुर्घटनास्थल के 30 किलोमीटर के दायरे में अभी तक रेडिएशन का बहुत ऊंचा स्तर बना हुआ है। यानी कि लगभग 2800 वर्ग किलोमीटर इलाका अभी भी खतरे से भरा हुआ है। 

मार्च 2011 की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद परमाणु रिएक्टर के 30 किलोमीटर दायरे में से लगभग 1,54,000 लोगों को निकालना पड़ा था। अभी तक इन लोगों में से आधे अपने पुश्तैनी घरों को नहीं लौट पाए हैं क्योंकि वहां आज भी रेडिएशन का स्तर काफी ऊंचा है। नवम्बर 2011 में जापानी विज्ञान मंत्रालय ने रिपोर्ट दी थी कि इस दुर्घटना के कारण लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सीजियम-137 के रेडिएशन से प्रदूषित है। मात्र एक रिएक्टर की दुर्घटना से चेर्नोबिल में जो कुछ हुआ उसके मद्देनजर यह कल्पना करें कि 1650 मैगावाट प्रत्येक की क्षमता वाले 6 परमाणु रिएक्टर जो जैतापुर में लगाए जाने का प्रस्ताव है, उसके परिणाम कितने विनाशकारी होंगे। इन 6 रिएक्टरों से सामान्य परिचालन के दौरान निकलने वाले रेडिएशन से जो नुक्सान होगा वह इस बर्बादी से अलग है।-पी.बी. सावंत

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!