‘नोटबंदी’ की कड़वी गोली को निगलना आसान नहीं पर...

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2016 01:29 AM

notbandi not easy to remove the bitter pill

पर्टी को ऐसे प्रश्र पूछने की आदत है जो देखने में बहुत भोले-भाले लगते हैं लेकिन जिनका विश्वास भरा उत्तर देने से पहले

(करण थापर): पर्टी को ऐसे प्रश्र पूछने की आदत है जो देखने में बहुत भोले-भाले लगते हैं लेकिन जिनका विश्वास भरा उत्तर देने से पहले आपको काफी मग्ज-पच्ची करनी पड़ती है। गत सप्ताह ऐसा ही हुआ था।’’ इसमें तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं कि नोटबंदी ने हर किसी को व्यथित किया है। या तो आपको नकदी की तंगी से जूझना पड़ता है या फिर आपके पास जो नकदी है उसे कोई भी स्वीकार करने को तैयार नहीं। पर्टी ने रोना रोया। फिर कुछ देर रुक कर कहने लगा,‘‘फिर भी बहुत ही कम लोग शिकायत कर रहे हैं। वास्तव में तो अधिकतर लोग प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं कि उन्होंने ऐसा कदम उठाया है। क्या यह विडम्बना है या इसकी कोई व्याख्या की जा सकती है?’’

मैं इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि वह सच कह रहा है। पर्टी भी इस बात को जानता है लेकिन समस्या तो यह है कि इसकी व्याख्या कैसे की जाए। इसलिए आज मुझे यह देखना है कि क्या मैं यह व्याख्या कर सकता हूं और क्या आप मेरी दलीलबाजी से सहमत हो सकते हैं।

शुरूआती बात यह है कि हम सभी लोग भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। यह हमारी जिंदगियों को दीमक की तरह चाट रहा है। वास्तव में हम उस मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां हम यह स्वीकार करने लगे हैं कि रिश्वत दिए बिना कोई भी काम नहीं हो सकता। जितनी ही आपकी जान-पहचान कम हो और जितना आपका दबदबा कम हो उतना ही रिश्वतखोरी का कैंसर आपको अधिक बुरी तरह परेशान करता है। इसलिए भ्रष्टाचार की इस संस्कृति को नुकेल लगाने के किसी भी गंभीर कदम का नि:संदेह स्वागत ही होगा। मैं विश्वास से कह सकता हूं कि मिस्टर मोदी की नोटबंदी के पक्ष में इतने अधिक जन समर्थन का यही प्रथम कारण है।

फिर भी इसमें एक सवाल पैदा होता है कि मिस्टर मोदी ने जो कदम उठाया है वह कितना प्रभावी रहा है? ईमानदारी भरा उत्तर यही है कि इस बारे में हम नहीं जानते, इसलिए हम इस तथ्य का पता लगाने का इंतजार कर रहे हैं। कहावत है कड़वी दवा ही असाध्य रोग का इलाज करती है और नोटबंदी की कड़वी गोली निगलना कोई आसान नहीं। 

इसलिए मनोवैज्ञानिक तथा भावनात्मक दृष्टि से हम यह विश्वास करने की ओर रुचित हैं कि नोटबंदी का कदम प्रभावी होगा। वास्तव में इससे जो पीड़ा पहुंच रही है अधिकतर लोगों द्वारा इसे इलाज के अनिवार्य अंग के रूप में देखा जा रहा है। यानी कि नोटबंदी का अनुमोदन करने का यह दूसरा कारण है। इसे आकाश बेल की तरह फैल रहे भ्रष्टाचार के कैंसर पर समूलनाशक हमले के रूप में देखा जा रहा है।

फिर तीसरा कारण है जो अधिकतर लोगों की नजरों में निर्णायक है। हममें से अधिकतर लोग यह विश्वास करने की ओर रुचित होते हैं कि हर क्रिया बेहतरी के लिए ही होती है। दूसरे शब्दों में इसे यूं कहा जा सकता है कि  अंततोगत्वा सब कुछ ठीक हो जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि हम या तो आशावादी हैं या फिर अंधेरे की सुरंग चाहे  कितनी भी लम्बी क्यों न हो, इसके दूसरे छोर पर मात्र एक प्रकाश बिंदु देख कर ही खुद को ‘चढ़दी कला’ में रखने का दावा करते हैं। मैं भी निश्चय ही इसी तरह का बंदा हूं लेकिन मेरा ख्याल है कि आप में से अधिकतर भी ऐसे ही हैं। ऐसा न होता तो जीवन के बुरे वक्तों में से गुजर पाना ही असंभव हो जाता।

इसका अभिप्राय यह है कि ऐन जिस पल हम अपने दांत भींच रहे होते हैं उसी समय हम अंधकार के छंट जाने की भी उम्मीदें दृढ़ता से लगा रहे होते हैं और यह आशा करते हैं कि ऐसा निकट भविष्य में ही होकर रहेगा। जब भ्रष्टाचार पर नुकेल लग जाएगी और हम अपना अधिकार बिना कोई रिश्वत दिए हासिल कर लिया करेंगे।

यदि आप ऐसी उम्मीदों को केवल सपना कह कर टाल देते हैं तो याद रखें सपने ही तो लोगों को जिंदा, संघर्षशील तथा आशावादी बनाए रखते हैं। खासतौर पर यह दलित लोगों के मामले में तो शत-प्रतिशत सही है और यदि मिस्टर मोदी आपको इस बात से कायल कर सकें कि वह आपके सपनों को वास्तविकता बना कर रहेंगे तो कौन है जो तब तक उनका समर्थन नहीं करता रहेगा, जब तक वह आपके विश्वास को आहत नहीं करते? आप कह सकते हैं कि यह बहकाने की हद तक सरल है यानी कि आप मानते हैं कि यह बहकावे भरा आशावाद है।

अब जब मैंने ये सब दलीलें पर्टी के सामने प्रस्तुत कीं तो उसने बहुत सनकी ढंग से नथुने फुलाए, ‘तुम्हें दरअसल विवादग्रस्त समाज शास्त्र और मनोविज्ञान का यह  मिलगोभा तैयार करने की कोई जरूरत नहीं थी। सौ बात की एक बात यह है कि हम ऐसी स्थिति में हैं जब हम सभी चाहते हैं कि मोदी सफल हों और इसी कारण हम न केवल यह मानने की इच्छा ही रखते हैं बल्कि दिल की गहराइयों से चाहते हैं कि वह सफल हों। कम से कम इतना तो मानते ही हैं कि वह ऐसा कर सकते हैं। यही कारण है कि इतने सारे लोग उनका समर्थन कर रहे हैं।

अब सवाल पैदा होता है कि यदि नोटबंदी काले धन को प्रभावी ढंग से समाप्त करने तथा भ्रष्टाचार के कैंसर का इलाज करने में सफल नहीं रहती तो आगे क्या होगा? इस बात को हम किसी अन्य इतवार के लिए छोड़ देते हैं और तब तक आशावादी बने रहना जारी रखें।            

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