एन.पी.ए. की समस्या: ‘नया दिवालिया कानून’ सही दिशा में उठाया गया कदम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Aug, 2017 12:17 AM

npa problem of new bankruptcy law

वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप बहुत से भारतीय बैंकों ने ऋणों के मामले में एक आक्रामक रणनीति अपनाई....

वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप बहुत से भारतीय बैंकों ने ऋणों के मामले में एक आक्रामक रणनीति अपनाई है जो अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एक जुए की तरह है। जितना अधिक ऋण बिना पर्याप्त जांच के बांटा गया, उतनी जल्दी ही उनकी पूंजी गुणवत्ता खराब हुई। अत्यधिक ऋणों के बोझ से दबे सैक्टरों में विकास की गति कम होती गई जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर, धातुएं, टैलीकॉम तथा कपड़ा उद्योग ने इस समस्या को और बढ़ाया। 

9 वर्ष बीत चुके हैं मगर खराब स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) की जून में जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बैंकिंग प्रणाली की सकल खराब ऋण दर मार्च 2017 में 9.6 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2018 में कुल बुक किए गए ऋण पर 10.2 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। यह विशेष रूप से एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है जिसके कार्पोरेट बांड बाजार उथले तथा अविकसित हैं और इसलिए बैंकिंग प्रणाली के ऋण के बोझ में सांझेदारी करने में सक्षम नहीं हैं।

दुर्भाग्य से गत दशक के दौरान जितने भी समाधानों को लेकर प्रयास किया गया, जैसे कि स्क्रूटिनाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनैंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समैंट आफ सिक्योरिटी इंट्रस्ट (एस.ए.आर.एफ.ए.ई.एस.आई.) एक्ट, कार्पोरेट डैब्ट, रिकंस्ट्रक्टिग मैकेनिज्म, स्ट्रैटेजिक डैब्ट रिकंस्ट्रक्चरिंग स्कीम, स्कीम फार सस्टेनेबल स्ट्रैस्ड एसेट्स अथवा एस4ए तथा अन्य ने खराब ऋणों की स्थिति सुधारने में कोई विशेष सहायता नहीं की। ऐसा इसलिए नहीं कि इन योजनाओं में कोई कमी थी, मगर इसलिए कि इन्हें लागू करने के लिए वातावरण सुचालक नहीं था। नया दिवालिया कानून यद्यपि परफैक्ट नहीं है फिर भी सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। 

कई विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तावित ढांचागत परिवर्तनों में बैंक कन्सोलिडेशन, महत्वपूर्ण विनिवेश और यहां तक कि निजीकरण शामिल हैं। यद्यपि ये आदर्श समाधानों की तरह दिखाई देते हैं मगर दक्षिण कोरिया के कैमको (कोरिया एसेट मैनेजमैंट कार्पोरेशन) या मलेशिया की दानहर्ता की तरह एक अधिक व्यावहारिक सोच अपनाते हुए नैशनल एसेट मैनेजमैंट कम्पनी (एन.ए.एम.सी.) बनाने की जरूरत है। यह विचार सबसे पहले आर.बी.आई. के डिप्टी गवर्नर विरार आचार्य ने इस वर्ष के शुरू में मुम्बई में आयोजित एक कांफ्रैंस में प्रस्तावित किया था। एशियाई वित्तीय संकट के बाद कैमको तथा दानहर्ता दोनों ने एक निर्धारित समय-सीमा के भीतर पीड़ित बैंकों की दबावयुक्त पूंजी में कमी लाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनका प्रमुख योगदान दबावयुक्त पूंजी के लिए बाजारों में त्रुटियों को कम करना था जिससे तरलता तथा प्रोत्साहन में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हुई। अत्यधिक अतरल होने के अतिरिक्त दबावयुक्त पूंजी के लिए बाजार की विशेषता सूचना में व्यापक असंतुलन भी था। विक्रेताओं को खरीदारों के मुकाबले खराब पूंजियों के बारे में अधिक जानकारी थी। इससे बाजारों से माल की निकासी के अवसरों को नुक्सान पहुंचा। दूसरी ओर सूचना की कमी के अभाव में खरीदारों को पूंजी के लिए अधिक दाम चुकाने पड़े। यहीं पर, उदाहरण के लिए कैमको ने फस्र्ट-मूवर के तौर पर कदम रखते हुए अतरल बाजार में प्राइस डिस्कवरी की मदद की। 

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) की 2004 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 1999 के मध्य तक कैमको ने खराब ऋणों को खरीदने के लिए औसत से अधिक कीमतें चुकाईं। यद्यपि इसके शीघ्र बाद कीमतें अधिक यथार्थपूर्ण बन गईं, संकटपूर्ण ऋणों के लिए बाजार में ‘प्राइवेट प्लेयर्स’ की भी रुचि उत्पन्न  होने लगी। कैमको ने एक ऐसा बाजार निर्मित करने का मार्ग प्रशस्त किया जहां पहले कोई नहीं था। भारत के पास आज ठीक ऐसा ही अवसर है। इसमें सरकार की भूमिका एक सहायक की होनी चाहिए। 

कैमको को एक समय पर राजनीतिक दखलअंदाजी का सामना करना पड़ा था। दाएवू के पतन के बाद इसे इन्वैस्टमैंट ट्रस्ट कम्पनियों (आई. टी.सी.) से दाएवू के बांड्स खरीदने के लिए मजबूर किया गया। ऐसा करके सरकार आई.टी.सीज की स्थिरता सुनिश्चित करना चाहती थी। निश्चित तौर पर सरकार ने कैमको के प्रशासन पर ऐसा दबाव अपनी मैज्योरिटी होल्डिंग के कारण बनाया। दूसरी ओर एन.ए.एम.सी. पर राजनीतिक दबाव के आगे झुकने के लिए कम इन्सैंटिव होंगे क्योंकि इसमें सरकार केवल एक अल्पसंख्यक होल्डर होगी। 

यूरोपियन सैंट्रल बैंक के जॉन फैल, मैसिएज ग्रोजिकी, रेनर मार्टिन तथा एडवर्ड ओ’ब्रायन ने एक एन.पी.ए. ट्रांजैक्शन प्लेटफार्म गठित करने का भी सुझाव दिया है जो भागीदारी बैंकों की दबावयुक्त पूंजी पर डाटा के केन्द्रीय कोष के तौर पर काम करेगा। इससे ट्रांजैक्शन डाटा के मानकीकृत तथा पारदर्शी बनने से तरलता में और भी वृद्धि होगी, जिससे निवेशकों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। कैमको की सफलता के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक था राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना जिसे सार्वजनिक कोषों को सही इस्तेमाल करना सुनिश्चित करने के लिए मजबूत जनसमर्थन हासिल था। भारत सरकार ने भी एन.पी.ए. संकट को सुलझाने के लिए अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए दिवालिया कानून लागू किया है। 

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