हमारे अरबपति नेता : क्या मोदी ‘भ्रष्टाचार-मुक्त भारत’ बनाने में सफल होंगे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Sep, 2017 12:32 AM

our billionaire leaders

झूठ,सफेद झूठ व आंकड़े और वे भी शपथ पत्र पर दिए गए। इससे भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी द्वारा छेड़ी गई जंग कमजोर हो गई। ऐसा कार्य हमारे नेताओं के अलावा...

झूठ,सफेद झूठ व आंकड़े और वे भी शपथ पत्र पर दिए गए। इससे भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी द्वारा छेड़ी गई जंग कमजोर हो गई। ऐसा कार्य हमारे नेताओं के अलावा और कौन कर सकता है जो सफेदी की चमकार, स्वच्छ छवि को नकार देते हैं।

इसलिए इस बात से हैरान होने की आवश्यकता नहीं है कि हमारे नेतागणों की सबसे बड़ी संपत्ति उनकी झूठ बोलने की क्षमता है। गैर-सरकारी संगठन लोक प्रहरी द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर जनहित याचिका से यह स्पष्ट हो गया है कि हमारे देश की राजनीति एक लाभप्रद व्यवसाय बन गया है। इस याचिका में 26 लोकसभा सांसदों, 11 राज्यसभा सांसदों और 257 विधायकों की आय और परिसंपत्तियों के बारे में शिकायत की गई है जिनकी आय 2009 और 2014 के चुनावों के बीच 500 प्रतिशत से लेकर 1200 प्रतिशत तक बढ़ी है और उन्होंने इस बात को निर्वाचन आयोग को दिए गए अपने शपथ पत्रों में दर्ज किया है।

इस याचिका में मांग की गई है कि चुनावी कानूनों में बदलाव किया जाए ताकि उम्मीदवार को अपना नामांकन पत्र भरते समय अपनी तथा अपने परिवार की आय के स्रोतों का प्रकटन करना पड़े। वर्तमान में वह केवल अपनी, अपने पति-पत्नी, बच्चोँ और आश्रितों की संपत्ति का प्रकटन करता है, न कि आय के स्रोतों का। मोदी सरकार को न्यायालय ने कहा है कि वह इन कानून निर्माताओं के विरुद्ध कार्रवाई कर काले धन के विरुद्ध अपनी कार्रवाई की विश्वसनीयता को प्रमाणित करे।

न्यायालय ने कहा, ‘‘हमें बताएं कि गत वर्षों में विधायकों और सांसदों की आय की वृद्धि दर क्या रही है। इस बारे में अस्पष्ट बयान न दें। जब आप कहते हैं कि आप कार्रवाई में विश्वास करते हैं तो बताइए कि आपने इन विधायकों और सांसदों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की है। यही आपकी विश्वसनीयता को प्रमाणित करेगा। ये शपथ पत्र कागज के टुकड़ों के अलावा कुछ नहीं हैं।’’

न्यायालय ने सही कहा है क्योंकि आय की घोषणा के प्रपत्र का न तो मानकीकरण किया गया है न ही वह इन कानून निर्माताओं की संपत्ति के बाजारी मूल्य को दर्शाता है जिसके कारण उसमें अनेक विसंगतियां पैदा होती हैं और वह पारदॢशता के मार्ग में बाधक भी बनता है। एक कर अधिकारी के अनुसार, ‘‘हम जानते हैं कि संपत्तियों, गहनों तथा अन्य चल-अचल संपत्ति का मूल्य कम आंका गया है, किंतु हम उन्हें केवल नोटिस ही जारी कर सकते हैं।’’ 

साथ ही कर अधिकारियों का यह दावा कि आय प्रकटीकरण में विसंगतियां केवल लोकसभा के 7 सांसदों और 98 विधायकों के घोषणा पत्रों में पाई गई हैं। इस पर न्यायालय ने केन्द्र से कहा है कि वह चुनाव सुधारों से परहेज नहीं करता है किंतु उसने बुनियादी आंकड़े और आवश्यक ब्यौरा प्रस्तुत क्यों नहीं किया है। क्या सरकार का रुख यही है? सरकार ने अब तक क्या किया है? यह केवल गंदगी साफ करने का मामला नहीं है।

यह इस बड़ी समस्या का अंश मात्र है। 16वीं लोकसभा के लिए पुन: निर्वाचित 165 सांसदों की संपत्ति में औसतन 137 प्रतिशत की वृद्धि हुई है अर्थात वह 2009 में 5.38 करोड़ रुपए से बढ़कर 2014 में 12.78 करोड़ रुपए हुई है। वह भी तब जब औसत आर्थिक वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत रही और रीयल एस्टेट के दामों में गिरावट आई। यही नहीं, 542 में से 113 सांसदों ने अपने व्यवसाय को सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीति, गृहिणी आदि बताया। 

वर्ष 2009-2014 के बीच सांसदों और विधायकों की आय में 500 से 1200 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई । 4 सांसदों की आय 1200 प्रतिशत बढ़ी। 22 सांसदों की 500 प्रतिशत। राज्यसभा के 8 सांसदों की 200 प्रतिशत, असम के 1 विधायक की 5000 प्रतिशत, केरल के 1 विधायक की 1700 प्रतिशत आय बढ़ी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि राष्ट्र को एक सस्ते राजनेता से महंगा कुछ भी नहीं पड़ता है।

प्रश्न यह भी उठता है कि एक बेरोजगार जनसेवक इतनी बड़ी संपत्ति कैसे जुटा लेता है? वे इसे कैसे अर्जित करते हैं? क्या कोई ऐसा कानून या नियम है जो उनसे पूछे कि उन्होंने यह संपत्ति कैसे अर्जित की है? क्या वे आयकर देते हैं? काले धन के बारे में उनका क्या दृष्टिकोण है? खबरों के अनुसार अनेक नेताओं के स्विस बैंकों में खाते हैं किंतु कर अधिकारियों ने अभी इसका पता नहीं लगाया है, जबकि पनामा पेपर लीक में पाकिस्तान में पहले ही प्रधानमंत्री को सजा दी जा चुकी है। हमारे सांसदों और विधायकों के घोषणा पत्र केवल दिखावा हैं।

कांग्रेस के एक औसत सांसद की संपत्ति 16 करोड़ रुपए से अधिक है, जबकि भाजपा के सांसदों की औसत संपत्ति 11 करोड़ से अधिक है। सबसे गरीब उम्मीदवार माकपा के विधायकों की औसत संपत्ति 79 लाख है। तृणमूल कांग्रेस की उमा सारेन सबसे गरीब सांसद हैं जिनकी संपत्ति 5 लाख से कम है। सर्वाधिक वृद्धि भाजपा के बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की आय में 778 प्रतिशत हुई है। उनकी आय 5 वर्ष में 15 करोड़ से बढ़कर 131.74 करोड़ रुपए हुई है। 

बीजद के पिनाकी मिश्रा की आय 29.69 करोड़ से बढ़कर 137.09 करोड़ हुई है। भाजपा सांसद वरुण गांधी की आय में 625 प्रतिशत अर्थात 20 करोड़ की वृद्धि हुई है। कर्नाटक के पी.सी. मोहन की आय में 786 प्रतिशत वृद्धि अर्थात 5.&7 करोड़ से बढ़कर 47.58 करोड़ हुई है। भाजपा के वयोवृद्ध नेता अडवानी की आय में 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

 
इस मामले में कांग्रेस का प्रदर्शन भी अच्छा नहीं है। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की आय 2009 से 2014 के बीच 25 करोड़ से बढ़कर 114 करोड़ हुई है अर्थात उसमें 258 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की आय 10.15 करोड़ से बढ़कर 38 करोड़ रुपए हुई है। 

क्षेत्रीय क्षत्रप भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की आय में इस दौरान 613 प्रतिशत की वृद्धि हुई और बहू डिम्पल की आय में 210 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मराठा क्षत्रप शरद पवार की लाडली सुप्रिया सुले की आय 51.53 करोड़ से बढ़कर 113.90 करोड़ हुई है। 

चारा घोटाले के कुख्यात लालू और उनके परिवार के बारे में कम ही कहा जाए तो अ‘छा है। स्कूल अध्यापिका से दलित मसीहा बनी मायावती ने अपनी संपत्तियों में वृद्धि के बारे में यह तर्क दिया कि यदि ठाकुर और ब्राह्मण करोड़पति हो सकते हैं तो एक दलित की बेटी क्यों नहीं। वास्तव में दलित की बेटी भी करोड़पति हो सकती हैकिंतु जब अपने जन्मदिन पर वह अपने हीरों के हार का प्रदर्शन करती हैं तो वह कहती हैं कि उन्हें उनके गरीब भक्तों ने उपहार में दिया है। कुल मिलाकर राजनेता बनना ‘बड़े लाभ का धंधा’ है।

हमारे देश में भ्रष्टाचार एक ऐसा  पुराना गीत है जिसे हमारे नेतागण मिलकर गाना चाहते हैं। किंतु लगता है मोदी भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने और काले धन को समाप्त करने के लिए गंभीर हैं किंतु इस काले धन और भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोडऩा इतना आसान नहीं है जो हमारे लोकतंत्र के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। आज के युग में सार्वजनिक कार्य निजी लाभ और संपत्ति जुटाने के लिए किए जाते हैं। इसलिए राजनीति के व्यापार में राजनीतिक सत्ता का दुरुपयोग नेतागणों द्वारा अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है। न्यायालयों को ऐसा तंत्र विकसित करना पड़ेगा जिससे कि नेता घूस लेने, झूठ बोलने या अपनी और अपने आश्रितों की संपत्ति छुपाने से पहले दस बार सोचें।

सरकार को इन नेताओं की अवैध स्रोतों से जुटाई सारी संपत्ति जब्त करनी चाहिए। इनकी संपत्तियों के बाजार मूल्य के आकलन के लिए विशेषज्ञों की सेवा ली जानी चाहिए और गलत साधनों से अर्जित संपत्ति की नीलामी की जानी चाहिए। साथ ही हमारे आयकर  अधिकारियों को नेताओं के शपथ पत्रों और उनकी आयकर विवरणी का मिलान करना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो इसके लिए लेखा परीक्षकों की सेवा भी ली जानी चाहिए। साथ ही सार्वजनिक पद के कार्यकाल की सीमा भी निश्चित की जानी चाहिए। सीजर की पत्नी की तरह हमारे नेताओं को संदेह से परे रहना होगा और लोगों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे।

मोदी को राजनीतिक क्षेत्र में आई गंदगी को साफ करना होगा और हमारे नेताओं की स्वघोषित ईमानदारी और नैतिकता पर भरोसा करना छोडऩा होगा। राजनीति को गंदगी से मुक्त करने के लिए सभी संभव कदम उठाए जाने चाहिएं। देखना यह है कि क्या मोदी भारत को इस गंदगी से मुक्त करने के अपने वायदे को पूरा कर पाते हैं या नहीं। जब स‘चाई का महत्व कम हो जाता है तो फिर झूठ का बोलबाला हो जाता है। 

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