सत्ता के नशे में नेता खुद को ‘भगवान’ समझने लग जाते हैं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jun, 2017 11:57 PM

power minded leaders begin to understand themselves as god

कल जिस तरह का पंजाब विधानसभा का दुखदायी  घटनाक्रम हुआ, आज तक पंजाब विधानसभा....

कल जिस तरह का पंजाब विधानसभा का दुखदायी घटनाक्रम हुआ, आज तक पंजाब विधानसभा में हुई सबसे अप्रिय घटना है। सन् 1952, 57, 62 में जो एम.एल.ए. निर्वाचित हुए उनमें से ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानी और बहुत ऊंचे चरित्र के मालिक थे। उनमें अनुशासन सर्वप्रिय था। विरोधी की बात बर्दाश्त करने का बहुत बड़ा माद्दा था। 

सरकार विरोधी पक्ष और आम आदमी पार्टी की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि सदन चलने दें। उनको स्मरण रखना चाहिए कि 2014 में जब श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने उन्होंने अपना सिर पार्लियामैंट की दहलीज पर रखकर एकनया उदाहरण पेश किया और लोकतंत्र के मंदिर की आस्था कायम रखने की शपथ ली। हम क्या कर रहे हैं? मंथन की जरूरत है। भारत वर्ष को दुनिया में प्रजातंत्र की मां तसव्वुर किया जाता है। यह देश संसार के लोगों के सामने एक अनुकरणीय, ऐतिहासिक संस्कृति और सभ्यता का देश है। 21वीं सदी के युग में भारत वर्ष के प्रजातंत्र में निर्वाचित सदस्य किस प्रकार की शैली और आचरण दिखा रहे हैं यह एक गंभीर चिंता का विषय है। 

आज जब आए दिन विधानसभाओं में अध्यक्ष महोदय के ऊपर कागज फैंकना, माइक तोडऩा, वैल में आना, कुर्सियां फैंकना, परस्पर तकरीरें देना, भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करना इत्यादि रोजमर्रा की बात हो गई है। आज तो पंजाब विधानसभा के दो निर्वाचित सदस्यों ने स्पीकर की गरिमा पर भी गंभीर प्रश्र चिन्ह लगा दिया। इस संदर्भ में यह बात और भी प्रासंगिक हो गई है कि संसद या विधानसभाओं में अवाम के मुद्दों को उठाने की बजाय पगड़ी और दुपट्टे उतारने का दुखदायी कांड आरंभ हो गया है। कई बार एक उच्च स्तरीय भाषण मील पत्थर और इतिहास बन जाता है। जम्हूरियत में बहस का स्तर और शब्दों का चयन बहुत महत्व रखता है। 

मैं जब पहली बार 1992 में फरीदकोट लोकसभा संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुआ तो मुझे लोकसभा स्पीकर ने लाइब्रेरी कमेटी का मैम्बर नामजद कर दिया। मेरी दिलचस्पी संसद में हुई बेहतरीन तकरीरों का अध्ययन और मंथन करना था। 29 मई, 1964 को अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन पर तकरीर की जो अतुलनीय थी। वह आज के वातावरण में हिन्दुस्तान के निर्वाचित हुए सदस्यों के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हो सकती है। नेहरू जी के निधन पर श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहे गए कुछ अंश: 

एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूंगा हो गया, एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अंधेरे में लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया। मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ाकर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या जरूरी था कि मौत इतनी चोरी-छिपे आती है? 

जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई। भारत माता आज शोकमग्न है-उसका सबसे लाडला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है-उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है-उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया, जन-जन की आंखों का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया, विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय देकर अन्तरध्यान हो गया। मुझे याद है जब चीनी आक्रमण के दिनों में हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के प्रति पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें तब एक दिन मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया। जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के प्रश्र पर समझौता नहीं होगा तो हमें दो मोर्चों पर लडऩा पड़ेगा तो वह बिगड़ गए और कहने लगे कि अगर आवश्यकता पड़ी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। किसी दबाव में आकर वह बातचीत करने के खिलाफ थे। 

संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा, शायद तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा। वह व्यक्तित्व, वह जिंदादिली, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी। मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रमाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति और उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और  कुछ नहीं है। इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। इस एक तकरीर को पढऩे के बाद हमारे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी में से कौन बड़ा नीतिवान और राजनेता था। 

सात दिन चले पंजाब विधानसभा के इजलास में किसी भी भाषण को म्यारी और सर्वोत्तम नहीं कहा जा सकता। पंजाब और देश के लोग राजनीतिक नेताओं की तकरीरें और उनके शब्दों का टी.वी., फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर बहुत गंभीरता से अध्ययन करते हैं। यह ठीक है कि मस्खरापन और कॉमेडी भाषणों को एक नया रूप बख्शती है लेकिन पंजाब के प्रमुख नेता जब बोल रहे होते हैं तो ऐसा लगता है कि लोगों को बुद्धू बनाने का प्रयास किया जा रहा है। उच्च स्तरीय भाषण पर तालियां अपने आप बजती हैं, कहने और दबाव पर कभी लोग प्रतिक्रिया नहीं करते। बजट के दौरान भी अगर हम उर्दू अल्फाज और फिलासफाना शायरी का ही जिक्र करते जाएं तो यह हवाई फायरिंग सिद्ध होती है। 

कभी-कभी अहंकार और ताकत के नशे में हुक्मरानों को अपने में खुदा नजर आने लगता है। 25 साल राज करने की फुंकार भी इसी संदर्भ में दी जाती थी जिससे मुझे पाकिस्तान के इंकलाबी पंजाबी शायर हबीब जालब की ये सतरें बहुत याद आती हैं :‘‘वह शख्स जो तुमसे पहले यहां पर तख्त नशी था,उसको भी अपने खुदा होने पर इतना ही यकीं था।’’ राष्ट्रपति चुनाव और विरोधी पक्ष हाल ही में राजग और भाजपा की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी गई है। राम कोविंद एक पढ़े-लिखे, मृदुभाषी और विद्वान व्यक्ति हैं। 

भाजपा ने आखिरी मौके तक इस नाम को गोपनीय रखकर बहुत बड़ी दूरअंदेशी व कुटिल नीति का संदेश दिया। इसका आगामी निर्णायक नतीजा 2019 के आम लोकसभा चुनाव में भाजपा को पुन: सत्ता में लाने की दिशा में एक शानदार राजनीतिक फैसला सिद्ध होगा। मुझे इस बात की हैरानी हुई कि विरोधी पक्ष के नेता पूर्व अनुमान लगाने की बजाय यही कल्पना करते रहे कि उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम बताया जाए। यह एक सारहीन तर्क था। इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने चाणक्य नीति का सबूत दिया। नीतिश कुमार मुख्यमंत्री बिहार और मुलायम सिंह यादव ने राम कोविंद की हिमायत का बिना शर्त ऐलान कर दिया है। इससे विरोधी पक्ष अधिक कुण्ठा और निराशा में चला गया है। यह निराशा फैसले को छुपाने, लटकाने की वजह से हुई। 

अब विपक्ष कोई भी उम्मीदवार उतारे उसका वकार कायम नहीं रह पाएगा। यह मुकद्दरों का ही खेल समझिए कि कुछ समय पहले बिहार के गवर्नर राम कोविंद को शिमला में महामहिम के लिए सुरक्षित रिट्रीट के अंदर जाने की इजाजत नहीं मिली और वही शख्स अब देश का प्रथम नागरिक बनने जा रहा है। अहमद फराज साहिब का एक शेर है ‘‘बरसों के बाद देखा, इक शख्स दिलरुबां सा अब जहन में नहीं है, पर नाम था भला सा।’’अंतिका मैं जब भी पंजाब केसरी समूह के लिए लिखता हूं तो मुझे फिरोजपुर के जाने-पहचाने साहसी पत्रकार श्री सत्यपाल बागी याद आ जाते हैं जिन्होंने 1973-74 में जब मैं सरकारी कालेज मुक्तसर में विद्यार्थी था मुझे लाला जगत नारायण, श्री रमेश चंद्र और श्री विजय चोपड़ा से मिलवाया।

पंजाब केसरी समूह ने हमें एक प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया जिसमें हमें राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्रियों तक पंजाब को ऊपर उठाने के लिए मेरे जैसे हजारों लोगों को आवाज बुलंद करने का मौका दिया। एक बार मैं भारी उलझन में श्री विजय कुमार चोपड़ा से एक राजनीतिक राय लेने जालंधर पहुंचा तो वह कुछ समय तो चुप रहे और अपने दबंग लहजे में देशभक्ति से लबरेज मिजाज में कहने लगे, ‘‘अगर मेरी मानो तो ऐसा कभी नहीं करना...’’ मैंने गलती की-अगर उनकी राय मानी होती तो आज पंजाब की राजनीति का दृश्य अलग तरह का होता।     

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