प्रणव मुखर्जी एक योग्य और सक्षम राष्ट्रपति के तौर पर याद किए जाएंगे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jun, 2017 12:32 AM

pranab mukherjee will be remembered as a worthy and competent president

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 25 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं जिससे नए राष्ट्रपति के.....

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 25 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं जिससे नए राष्ट्रपति के पद संभालने का रास्ता साफ होगा। भाजपा उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं देना चाहती और उन्होंने भी घोषणा कर दी है कि वह दूसरा कार्यकाल नहीं चाहते। राष्ट्रपति भवन में नया ‘किराएदार’ आएगा क्योंकि भाजपा के पास उनका उत्तराधिकारी चुनने के लिए पर्याप्त संख्या है। 

मुखर्जी से पहले कई राष्ट्रपतियों ने रायसीना हिल्स में अपने पदचिन्ह छोड़े हैं। उनमें से भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद का कद सबसे ऊंचा था। हमारे सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे विद्वान राष्ट्रपति थे। अब्दुल कलाम को लोगों का राष्ट्रपति कहा जाता था जबकि संजीवा रैड्डी तथा ज्ञानी जैल सिंह के सत्ताधारियों के साथ उतार-चढ़ाव भरे संबंध रहे। फखरूद्दीन  अली अहमद जैसे ‘विनम्र’ राष्ट्रपति भी थे जिन्होंने आपातकाल के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे तथा आर. वेंकटरमण और के.आर. नारायणन जैसे हां में हां मिलाने वाले  राष्ट्रपति भी थे। प्रतिभा पाटिल एकमात्र ऐसी राष्ट्रपति थीं जिन्होंने अपनी कोई विरासत पीछे नहीं छोड़ी। 

अपने 5 वर्ष के कार्यकाल के बाद प्रणव मुखर्जी किस प्रकार की विरासत पीछे छोड़ेंगे? उन्होंने अपने एक हालिया टी.वी. साक्षात्कार में कहा था, ‘‘मैं कोई विरासत नहीं छोडऩा चाहता क्योंकि यह लोकतंत्र है। लोकतंत्र एक समूह है और मैं इस समूह का एक हिस्सा। मैं समूह में घुल जाऊंगा। हवा में घुल जाऊंगा। मैं लोगों के बीच रहना चाहूंगा। मैं कोई विरासत नहीं छोड़ूंगा।’’ मुखर्जी का कार्यकाल काफी हद तक गैर-विवादास्पद रहा और उनके सामने बहुत अधिक चुनौतियां नहीं थीं। मुखर्जी को यू.पी.ए. ने नामांकित किया था जिनके पास एक कांग्रेस नेता के तौर पर लंबा अनुभव था। 

अपने स्वीकार्यता भाषण में उन्होंने कहा था, ‘‘मैं इस उच्च पद पर चुने जाने के लिए भारत के लोगों का धन्यवाद करता हूं। लोगों द्वारा दिखाया गया उत्साह तथा गर्मजोशी उल्लेखनीय है। जितना मैंने दिया है उससे कहीं अधिक मुझे इस देश के लोगों, संसद से मिला है। अब मुझे एक राष्ट्रपति के तौर पर संविधान की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया है। मैं लोगों के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा।’’ 2014 के लोकसभा चुनाव उनका पहला परीक्षण होता मगर राजनीतिक पंडितों की एक अन्य गठबंधन सरकार की भविष्यवाणी के बावजूद भाजपा अपने बूते पर सत्ता में आई। शुरू से ही मोदी सरकार और राष्ट्रपति के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण रहे। जब मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने का निर्णय किया तो उन्होंने इसमें पूरा सहयोग दिया। 

संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उन्होंने राज्यपालों की कांफ्रैंसों का आयोजन किया तथा कई बार उन्हें वीडियो कांफ्रैंसिंग के माध्यम से भी संबोधित किया। मुखर्जी के संसद के साथ संबंध भी सौहार्दपूर्ण थे। सभी दलों के संसद सदस्य उनसे आमतौर पर मिलते रहते थे और ऐसा ही राजनीतिक दलों के नेता भी करते थे क्योंकि मुखर्जी ने खुद को देश की राजनीतिक स्थिति के प्रति सचेत रखा था। लंबे समय तक सांसद रहे मुखर्जी ने गत माह जयपुर में कहा था कि 80 करोड़ लोगों ने लोकसभा सदस्यों तथा सभी 29 राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों को अत्यंत शक्ति प्रदान की है। यदि हम उस विशेषाधिकार तथा शक्ति का इस्तेमाल नहीं करते तो इसका दोष हमें खुद को देना होगा। 

कूटनीतिक पक्ष से, राष्ट्रपति को ही भारत में नियुक्त होने वाले राजदूतों का स्वागत करना होता है। वही भारत आने वाले राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों के लिए भोज का आयोजन भी करते हैं और उनके दौरों के दौरान उनसे बातचीत भी करते हैं। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में मेहमान कक्ष खोला और शेख हसीना (बंगलादेश), हामिद कारजेई (अफगानिस्तान), भूटान नरेश तथा जापान के साम्राट सहित अन्य गण्यमान्यों की मेजबानी की। उन्होंने बराक ओबामा (अमरीका), पुतिन (रूस), शी जिनपिंग (चीन), फ्रैंकोएस होलांदे (फ्रांस), अबे (जापान) सहित भारत दौरे पर आने वाले अन्य गण्यमान्य अतिथियों से भी बातचीत की। 

अपने कार्यकाल के दौरान मुखर्जी ने बंगलादेश, नेपाल, चीन, नामीबिया, घाना, न्यूजीलैंड, फिलस्तीन, बैल्जियम, स्वीडन, इसराईल, जार्डन तथा भूटान सहित कई देशों का दौरा किया। उन्होंने फोरम फार इंडिया-पैसेफिक आईलैंड कंट्रीस की दूसरी सम्मिट की मेजबानी की। जहां मुखर्जी को जनता के मूड के अनुसार सही मुद्दे उठाने का श्रेय जाता है वहीं राष्ट्रपति शासन लगाने जैसे मामलों में उन्होंने झटपट हस्ताक्षर कर दिए और सुप्रीम कोर्ट ने उनके इन निर्णयों को पलट दिया। उनके आलोचक यह मानते हैं कि वह इन मामलों को एक बार वापस भेज सकते थे जैसा कि उनके पूर्ववर्ती के.आर. नारायणन ने किया था, मगर भीतरी लोगों का कहना है कि उन्होंने फाइल पर अपनी आपत्ति दर्ज करवा दी थी। 

मुखर्जी ने मृत्युदंड प्राप्त दोषियों की दया याचिकाओं की समीक्षा करने के दौरान सरकार के सुझावों को खारिज कर उसे अपनी ताकत दिखाई थी। उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के तीन के मुकाबले 30 दया याचिकाएं (जिनमें से दो गत सप्ताह) खारिज की हैं। मुखर्जी ने कई मुद्दों पर अपने मन की बात कही है। समाहित राजनीति, भ्रष्टाचार तथा सहिष्णुता पर उनके विचार स्पष्ट हैं। सहिष्णुता पर उन्होंने अपने भाषणों में से एक में कहा था कि हम एक राष्ट्र हैं। यह सह-अस्तित्व, पारस्परिक समझ हमारी ताकत है। इस विभिन्नता का प्रबंधन करना हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। यदि यह कहा जाए कि भारतीय तर्क करने वाले हैं तो मैं इससे सहमत हूं, मगर यदि यह कहा जाए कि भारतीय असहिष्णु हैं तो मैं इस पर सहमत होने से इंकार करता हूं।

असहिष्णुता की कभी भी इजाजत नहीं दी गई। राज्यसभा में बहुमत के अभाव के कारण 8 महीनों में सरकार द्वारा 8 अधिसूचनाएं जारी करने बारे उन्होंने कहा था कि एक कार्यपालिका तभी प्रभावी हो सकती है यदि यह दावेदारों के बीच मतभेद सुलझाने में सक्षम तथा बनाए व लागू किए जाने वाले कानून के लिए सर्वसम्मति बनाने में सफल हो। मुखर्जी की विरासत को उच्च शिक्षण तथा प्रशासन की विभिन्न संस्थाओं में अलग-अलग चरणों में स्थापित करने के लिए याद रखा जाएगा। कुल मिलाकर राष्ट्रपति एक शांत जीवन जीने, एक आधार बनाने व पुस्तकें पढऩे व लिखने के लिए रायसीना हिल्स को छोड़ रहे हैं, मगर उन्हें एक सक्षम राष्ट्रपति के तौर पर याद किया जाएगा।
 

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