पंजाब की चिंता करें: चुनाव कहीं विनाश की ओर न ले जाएं

Edited By ,Updated: 22 Sep, 2016 02:03 AM

punjab to worry the choice not to take destruction anywhere

आजकल पंजाब विधानसभा चुनाव के कारण टी.वी. और अखबारों में खूब समाचार आ रहे हैं। हर कोई अपने-अपने कयास लगा रहा है।

आजकल पंजाब विधानसभा चुनाव के कारण टी.वी. और अखबारों में खूब समाचार आ रहे हैं। हर कोई अपने-अपने कयास लगा रहा है। नए राजनीतिक दल और गुट मैदान में आ रहे हैं और हर कोई बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहा है। हमारे नेताओं की आदत है कि चुनाव से पहले अधिक से अधिक वायदे करते हैं। हर कोई हर चीज मुफ्त में देने को कह रहा है। इतनी घोषणाएं की जा चुकी हैं कि कोई यह नहीं बताता और न ही हम पूछते हैं कि इतना खर्च कौन बर्दाश्त करेगा, पैसा कहां से आएगा? पंजाब तो पहले ही कर्जाई है, नए कर्ज ले नहीं सकता। रिजर्व बैंक द्वारा प्रत्येक प्रदेश की कर्जा लेने की सीमा तय की जाती है। पंजाब की खुद की आमदन बढ़ नहीं रही है। हमारे यहां उद्योगों की कमी है, कर्मचारियों को वेतन मुश्किल से मिलता है। फिर ये नए नेता जो लोगों से तालियां बजवा रहे हैं, आपकी झोलियां कहां से भरेंगे? 

लेकिन आज का स्तंभ मैं एक बड़े खतरे को मद्देनजर रखते हुए लिख रहा हूं। हर किसी को पता है कि पंजाब भौगोलिक रूप में भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। इसलिए इस  प्रदेश में सदा ही उथल-पुथल होती रही है। प्रत्येक आक्रमणकारी सबसे पहले पंजाब में आया और हम उजड़ते रहे, हमारी लूट होती रही। जब महाराजा रणजीत सिंह का शासन आया तो पंजाब को शांति और खुशहाली नसीब हुई। 

1850 से अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ, जो लगभग 100 वर्ष चला। उस समय स्वतंत्रता का संघर्ष पंजाबियों ने लड़ा। जरा स्मरण करें कि पंजाबियों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं। अंग्रेजों ने भी कोई कम अत्याचार नहीं किए। कूका लहर, गदर लहर, बब्बर अकाली लहर, जलियांवाला बाग, अकाली मोर्चे, सविनय भंग आंदोलन-पंजाब में ये सब कुछ हुआ। 1947 में देश विभाजन की त्रासदी में सबसे अधिक पंजाबी ही मौत के  शिकार हुए। देश का विभाजन वास्तव में पंजाब का विभाजन था। 

पंजाब फिर से बसा लेकिन आंदोलन भी शुरू हो गए। पंजाबी सूबे की लहर ने केन्द्र सरकार के लिए चुनौती खड़ी कर दी। काफी देर बाद 1966 में यह मांग मानी गई लेकिन पंजाब को केवल कुछ वर्ष ही चैन का सांस आया था। केन्द्र सरकार की भेदभाव भरी नीतियों के कारण हरियाणा बहुत आगे निकल गया। पंजाब की जायज मांगों को लेकर आंदोलन बढ़ते गए और आखिर धर्मयुद्ध मोर्चा शुरू हुआ। हमारा दुर्भाग्य यह है कि पंजाब कई वर्ष ऐसे दौर में से गुजरा कि हम आज तक अपनी स्थिति संभाल नहीं पाए। केन्द्र सरकार विरुद्ध संघर्ष ने पंजाब को जो नुक्सान पहुंचाया है, उसकी उदाहरण नहीं मिलती। इस समय स्थिति कहां तक पहुंच गई है, ये सभी पंजाबी जानते हैं। 

बेशक केन्द्र की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक राज्य की सहायता करे लेकिन अनुभव बताता है कि इसमें राजनीतिक गणनाएं भी हावी होती हैं। पंजाब क्यों पीछे रह गया, इसी को लेकर हमारी राजनीतिक लड़ाई चलती रहती थी। मुख्यमंत्री हमेशा अपनी योजनाएं लेकर जाते हैं और उन्हें पास करने वाले तो यह देखते हैं कि उन्हें इनसे क्या लाभ मिलेगा। इंद्र कुमार गुजराल का ही उदाहरण लें। उन्होंने बादल साहब को कहा था कि आप हर समय हमारी सरकार के विरुद्ध मतदान करते हैं, फिर भी हमसे अपनी बात मनवानी चाहते हैं। इंद्र कुमार गुजराल क्योंकि पंजाब से सांसद थे इसलिए वह पंजाब का ऋण माफ कर गए। अकाली इस बात के लिए दाद के हकदार हैं कि कभी-कभी वे दूरदृष्टि से भी काम ले लेते हैं। उन्होंने गुजराल साहिब को जिता दिया और जालंधर से सांसद बनाया था। 

पंजाबियों में समझदारी और राजनीतिक सूझबूझ की कमी नहीं, मतदान अपनी मर्जी से करते हैं। फिर भी मुझे डर है कि कहीं ऐसी स्थिति न बन जाए कि पंजाब फिर से युद्ध का मैदान बन जाए और केन्द्र सरकार के विरुद्ध संघर्ष की घोषणा कर दे। पंजाब के पास इतनी सामथ्र्य नहीं कि वह लम्बी लड़ाई लड़ सके। मैं किसी प्रकार की हताशा या किसी अन्य उद्देश्य से ऐसा नहीं लिख रहा हूं। हमारे युवक बेरोजगार हैं, उद्योग के साथ-साथ नहरों को पक्का करने की जरूरत है। खेती के कारण भूमिगत जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। कृषि उत्पादन का पूरा मोल नहीं मिल रहा। हर दृष्टि से हम नुक्सान उठा रहे हैं। 

ऐसी योजनाएं बनाएं  जिनसे पंजाब मजबूत हो। आज भारत के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं लेकिन मैंने दिल्ली में देखा है कि किस प्रकार वे पाॢटयां कठिन वक्त में केन्द्र सरकार की सहायता करके अपने लिए कुछ न कुछ ले जाती हैं। ऐसी कई उदाहरणें दी जा सकती हैं। सभी ने देखा है कि मायावती, मुलायम सिंह, जयललिता, करुणानिधि, चंद्रबाबू नायडू, अब्दुल्ला ने केन्द्र सरकार की सहायता करके कैसे कीर्ति अर्जित की? 

आज केन्द्र में अपने अकेले दम पर मजबूत सरकार बनी हुई है, जिसकी नीतियां अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से अलग हैं। कोई भी राजनीतिक पार्टी अपनी शक्ति लगाकर जीत हासिल करे, इसमें कोई ऐतराज वाली बात नहीं, लेकिन यह तो बताएं कि वह लोगों की समस्याएं कैसे हल करवा सकेगी या फिर लोगों को आंदोलन के रास्ते पर धकेलेगी। आज देश में केन्द्र-राज्य संबंधों को लेकर जगह-जगह सैमीनार हो रहे हैं। हमारी लड़ाई आर्थिक और सामाजिक है। कैसे जीत हासिल करें? कहीं समय हमारे हाथ से निकल न जाए और चुनाव विनाश की ओर न ले जाएं। फैसला पंजाबियों ने करना है।  

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