राहुल गांधी को नेहरू के पदचिन्हों पर चलना चाहिए

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Sep, 2017 02:19 AM

rahul gandhi should follow nehrus footprints

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गंाधी ने गलत कहा है कि पूरा भारत खानदानों पर चलता है। शासन करने का...

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गलत कहा है कि पूरा भारत खानदानों पर चलता है। शासन करने का मतलब है केन्द्र में सत्ता संभालना। ऐसा करने का अवसर सिर्फ जवाहरलाल नेहरू के परिवार को मिला है। नेहरू ने 17 साल शासन किया, उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने 18 साल तथा राजीव गांधी, इंदिरा गांधी के पुत्र ने 5 साल। इस तरह यह खानदान केन्द्र में 40 साल तक सत्ता में रहा, जो अगस्त 1947 में आजादी मिलने के बाद की अवधि का आधे से भी ज्यादा है। 

नेहरू ने यह पक्का किया कि उनकी बेटी शासन करेगी, अगर उनके शासन के तुरंत बाद नहीं तो कुछ समय बाद। मैं जब लाल बहादुर शास्त्री के साथ सूचना अधिकारी के रूप में काम कर रहा था और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए तैयारी करने को कहता था, खासकर उस समय जब नेहरू को हृदयाघात आया था तो शास्त्री कहते थे, ‘‘उनके मन में तो उनकी सुपुत्री है’’ और इसके साथ यह भी जोड़ते थे कि यह आसान नहीं होगा। वह पंडित जी को चुनौती नहीं देंगे और इलाहाबाद लौट जाएंगे लेकिन मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी को स्वीकार नहीं करेंगे। 

नेहरू के मरने के बाद यही हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज नेहरू के कट्टर समर्थक थेे। उन्होंने एक चाबी ढूंढ निकाली जिससे कई ताले खुलते थे। दक्षिण से संजीवा रैड्डी, कलकत्ता से अतुल्य घोष तथा बम्बई से एस.के. पाटिल अपने ही अधिकार से दिग्गज थे लेकिन वे शास्त्री को स्वीकार करने के लिए तैयार थे क्योंकि वह उन लोगों को यह महसूस नहीं होने देते थे कि वे उनके बराबर नहीं हैं। उस समय मैंने लिखा था, ‘‘सन् 1963 की गर्मियों में एक खामोशी भरी रात में 5 लोग दक्षिण के प्रसिद्ध तीर्थस्थल तिरुपति की फैली हुई घाटी को निहारते एक सुनसान बंगले को ढूंढते हुए पहुंचे। 

एक बेढंगा और भारी भरकम था, दूसरा बड़े डील-डौल वाला, तीसरा फुर्तीला और तेज, चौथा कम लंबाई का और पांचवां एक मांसल कुश्तीबाज की तरह था। पांचों अलग-अलग दिशाओं से आए थे ताकि कोई उन्हें पहचान न सके और ऐसा करने में वे सफल रहे। सड़क पर शायद ही कोई नजर आ रहा था। ज्यादातर लोग जल्द ही सो गए थे ताकि सुबह होने से पहले मंदिर पहुंच सकें।’’ शास्त्री के मरने के बाद सत्ता खानदान के पास लौट आई। लेकिन राहुल गांधी असहिष्णुता का माहौल पैदा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाते हैं तो सही करते हैं। 17 करोड़ की संख्या वाले मुसलमानों ने लोगों की नजर से भी अपने को दूर कर लिया है। ऐसा है, मानो उन्होंने अपने ही देश में दूसरी श्रेणी के नागरिक की हैसियत को स्वीकार कर लिया है। 

दूसरी ओर, कुल मिलाकर हिंदुओं ने उन्हें विभाजन के लिए माफ नहीं किया है। आज भी जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव होता है तो मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जाता है। वैसे भी उन्हें उन बस्तियों, जो झोंपड़पट्टियां हैं, में खुद अपनी देखभाल के लिए छोड़ दिया जाता है। रोजगार में उनकी गिनती उंगलियों पर हो सकती है। प्रतियोगिता परीक्षा में वे बहुत थोड़े सफल होते हैं। सच्चर कमेटी ने सामने लाया है कि किस तरह उनकी हालत दलितों से बदतर है। हिंदुओं को उन्हें गरीबी के ढेर से बाहर निकालना है लेकिन उन्हें लाचारी के कीचड़ में पड़े रहने को छोड़ दिया गया है। धर्म के नाम पर बंटवारे ने एक ऐसी लाइन खींच दी जिसके कारण मुसलमानों को सबसे ज्यादा तकलीफ उठानी पड़ी है और फिर भी वे धार्मिक पूर्वाग्रहों के पक्ष में हैं।

मिली-जुली कालोनियां भी गायब हो रही हैं और मुसलमान तब अपने समुदाय के बीच ही सुरक्षित महसूस करते हैं जब जगह एकदम रहने लायक नहीं होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में दो समुदायों के बीच खाई बढ़ रही है। आर.एस.एस. के लोग यह ध्यान रखते हैं कि कोई मुसलमान सार्वजनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण पद पर न हो। मुझे याद है कि एक मुसलमान इंजीनियर, जिसने मुझे श्रीनगर हवाई अड्डे छोड़ा था, ने शिकायत की कि एक नौकरी की तलाश में वह बेंगलुरू गया था लेकिन जब पहचान-पत्र देखा गया तो उसे सीधे खारिज कर दिया गया। पाकिस्तान के संस्थापक कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सोचा था कि दोनों देश-एक हिंदू बहुमत वाला, दूसरा मुस्लिम बहुमत वाला, अपना कामकाज इस तरह चलाएंगे कि राज्य के मामलों के बीच धर्म नहीं आएगा। 

यह दुख की बात है कि कांग्रेस अप्रासंगिक हो गई है। नहीं तो, इसने देश को सैकुलर मंच दिया होता। राहुल गांधी धीरे-धीरे समझेंगे कि उनकी पार्टी को फिर से जमीन पर काम करना पड़ेगा और लोगों के स्वभाव को बदलने की कोशिश करनी पड़ेगी। भारत ने एक लोकतांत्रिक और सैकुलर देश बनाने की लड़ाई लड़ी थी और महात्मा गांधी तथा जवाहर लाल नेहरू, दोनों ने लोगों को अपनी विरासत की याद दिलाई थी जिसके वारिस हिंदू और मुसलमान दोनों हैं। वास्तव में, यह अचरज की बात है कि नेहरू के नाम को मिटाने की कोशिश हो रही है। उदारवादी अटल बिहारी वाजपेयी नेहरू के उत्साही समर्थक थे। वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो मैं उस समय सांसद था, उनसे मिलने उनके कमरे में गया। 

वाजपेयी ने बहुत गर्व से कहा कि वह उसी कुर्सी पर बैठे हैं जिस पर एक समय नेहरू बैठते थे लेकिन आज भाजपा नेहरू मैमोरियल सैंटर से नेहरू का नाम हटाने की कोशिश कर रही है। कुछ विद्वान इस प्रयास को रोकने की कोशिश में हैं लेकिन मामला प्रधानमंत्री कार्यालय के पास छोड़ा हुआ है। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि नेहरू उन दिग्गजों में से थे जिन्होंने अंग्रेजों को भगाने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया था। उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन देश की आजादी के लिए उनका संकल्प थोड़ा भी कम नहीं हुआ। राहुल गांधी को उनके नक्शेकदम पर चलना चाहिए और संघर्ष करना चाहिए, खानदान की रक्षा के लिए नहीं बल्कि लोकतंत्र और सैकुलर मूल्यों के लिए। भारत के लोग कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक बना देंगे। महत्वपूर्ण चीज है एक लोकतांत्रिक और सैकुलर विरासत। 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!