सऊदी अरब चाहता है कि शिया-सुन्नी टकराव और बढ़े

Edited By ,Updated: 20 May, 2017 11:36 PM

saudi arabia wants shia sunni conflicts and increases

21 मई को सऊदी अरब के उपयुवराज मोहम्मद बिन सुल्तान ने अमरीकी राष्ट्रपति....

21 मई को सऊदी अरब के उपयुवराज मोहम्मद बिन सुल्तान ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सम्मान में एक मुस्लिम उत्सव जश्र का कार्यक्रम बनाया हुआ है जहां वह यह प्रदर्शित करने का प्रयास करेंगे कि दुनिया भर के सुन्नी मुस्लिम सऊदी अरब का प्रभाव स्वीकार करते हैं। 

ट्रम्प को स्वयं कुछ तथ्यों का परीक्षण करना होगा। यानी कि उन्हें पाकिस्तान में जाकर देखना चाहिए जहां नवाज शरीफ कहेंगे कि वह अपनी आस्था की दृष्टि से सुन्नी हैं लेकिन ऐसे देश का नेतृत्व कर रहे हैं जहां मुस्लिमों के विभिन्न सम्प्रदाय हैं। यहां तक कि शिया सम्प्रदाय की आबादी पाकिस्तान की कुल आबादी का 5वां हिस्सा बनती है। 

मोहम्मद बिन सुल्तान को तब शायद अपने कानों पर विश्वास नहीं होगा जब उन्हें यह सुनने को मिलेगा कि पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल रहील शरीफ जो इस समय रियाद में सऊदी अरब प्रायोजित इस्लामिक सेनाओं का नेतृत्व कर रहे हैं, पाकिस्तानी सेना का युद्धघोष ‘‘नारा-ए-हैदरी: या अली, या अली’’ लगाते हुए बड़े हुए थे। दूसरी ओर पैगम्बर मोहम्मद के दामाद तथा शिया समुदाय के प्रथम इमाम अली का नाम लेना भी सऊदी अरब के वहाबियों के लिए वर्जित है। ट्रम्प के लिए इस प्रकार की जानकारी दिमाग के बंद कपाट खोलने वाली सिद्ध होगी। 

ट्रम्प के काफिले के बहुत से सदस्यों के हृदय में यह झूठ रचा-बसा होगा कि सऊदी अरब वाले ही दुनिया भर के सुन्नियों के नेता हैं। लेकिन यह बात सच्चाई से कोसों दूर है। यह तो सत्य है कि सऊदी अरब वाले ईरान के विरुद्ध एक गठजोड़ बना रहे है और इसका नेतृत्व भी कर रहे हैं। सऊदी अरब 18वीं शताब्दी के कट्टरपंथी मुस्लिम सुधारक अब्दुल वहाब का अनुयायी है। इस समुदाय का नेतृत्व करना सम्पूर्ण सुन्नियों के नेतृत्व से भिन्न तरह की बात है। 

अब्दुल वहाब के अनुयायियों में ओसामा बिन लादेन, अलकायदा तथा लगभग प्रत्येक अन्य मुस्लिम पंथ को काफिर मानने वाले तकफीरी भी शामिल हैं। जब मिस्र के शक्तिशाली अब्दुल फतेह अल-सीसी ने मोहम्मद मुर्सी को मिस्र के राष्ट्रपति की कुर्सी से अपदस्थ कर दिया तो सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला ने शाबाशी के रूप में उन्हें 8 अरब डालर की राशि दी थी। अभी और राशि भी दिए जाने की सम्भावना है। मुर्सी घोर कट्टरपंथी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ का नेतृत्व करते थे जो कि सऊदियों के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं। 

वास्तव में सच्चाई यह है कि जिस समय ईरान में इस्लामिक क्रांति की बदौलत अयातुल्ला सत्तासीन हुए थे तो उसके समांतर ही सऊदी अरब में उससे भी अधिक नाटकीय घटनाक्रम चला था। जिसने कई वर्षों तक सऊदी अरब के शासकों की नींद हराम कर रखी थी, हालांकि इसका उल्लेख बहुत कम होता है। वास्तव में तो उस दौर की यादों से सऊदी अरब के शासक आज तक परेशान हैं। 26 नवम्बर 1979 को एक सऊदी मजहबी एक्टीविस्ट एवं मिलिटैंट जोहाएमान अल-ओतयबी, जो कि मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठन से संबद्ध था, ने 400 साथियों को लेकर मक्का की सबसे बड़ी मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, ऐसा उसने सऊदी शाही परिवार के भ्रष्टाचार एवं पतन के विरुद्ध रोष व्यक्त करने के लिए किया था। दो सप्ताह तक वह और उसके साथी डटे रहे। उन्हें खदेडऩे के लिए पाकिस्तान, फ्रांस और अमरीकी स्पैशल फोर्सों ने मस्जिद पर हल्ला बोला था। बहुत अजीब स्थिति पैदा हो गई थी। 

हल्ला बोलने से पहले अमरीका और फ्रांस के सैन्य अधिकारियों ने अस्थायी रूप में धर्मांतरण करके इस्लाम कबूल किया था। ट्रम्प यह कहानी जानकर शायद बहुत प्रसन्न होंगे। हकीकत यह है कि दुनिया भर के सुन्नियों का नेतृत्व करना तो दूर, सऊदी अरब वाले सुन्नी समुदाय के भिन्न पंथों और उपपंथों से बुरी तरह भयभीत हैं। सबसे अधिक डर तो उन्हें मुस्लिम ब्रदरहुड यानी कि इखवानुल मुसलमीन से लगता है, जिसका मिस्र और तुर्की जैसे देशों तथा गाजापट्टी के हमस में काफी सशक्त जनाधार है। 

वास्तव में सऊदी अरब वालों को यह उम्मीद है कि अपने ताजा कदम से वे शिया और सुन्नी के बीच खाई को और भी बढ़ा सकेंगे जिसके फलस्वरूप ईरान और शिया लोगों के विरुद्ध सुन्नियों में भावनाएं भड़केंगी। यह चाहता है कि शिया-सुन्नी टकराव अब वहाबी-सुन्नी टकराव को पृष्ठभूमि में धकेल दे। हाल ही में ईरान और पाकिस्तान ब्लोच इलाकों में हो रही झड़पें वास्तव में शिया-सुन्नी टकराव का ही विस्तार हैं और सऊदी अरब वाले रात-दिन यही प्रयास कर रहे हैं कि यह टकराव और भी अधिक फैल जाए। यदि इसका दायरा बढ़ जाता है तो इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की योजना खटाई में पड़ जाएगी जबकि चीन के ‘‘वन बैल्ट वन रोड’’ रणनीतिक प्रयास में यही महत्वपूर्ण तत्व है। 

पाकिस्तानियों द्वारा ईरानी सैनिकों की हत्या के बाद ईरानी सेना प्रमुख ने सऊदी अरब को भी कड़ी चेतावनी दी थी कि वह अपने तौर-तरीके सुधार ले, नहीं तो ईरान की बदले की कार्रवाई के फलस्वरूप सऊदी अरब में मक्का और मदीना को छोड़कर शेष सब कुछ बर्बाद कर दिया जाएगा। ईरान इस प्रकार की कठोर भाषा आम तौर पर प्रयुक्त नहीं करता। दूसरी ओर सऊदी रक्षा मंत्री एवं वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सुल्तान ने पाकिस्तान द्वारा ईरानी क्षेत्र में घुसकर की गई कार्रवाई का समर्थन किया है। 

सऊदी अरब की यह हताशा क्या रूप ग्रहण करेगी यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस टकराव में पाकिस्तान की हैसियत एक टुच्च भाड़े के टट्टू से बढ़कर कुछ नहीं। यदि समय रहते पाकिस्तान इस टकराव में से बाहर न निकला तो यह स्वयं ही इसमें झुलस जाएगा।      

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