आसमानी बिजली दुनिया भर की ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकती है

Edited By ,Updated: 26 Mar, 2017 10:47 PM

sky power can meet the energy needs of the world

बिजली आज सभ्य समाज की बुनियादी जरूरत बन चुकी है। गरीब-अमीर सबको इसकी.....

बिजली आज सभ्य समाज की बुनियादी जरूरत बन चुकी है। गरीब-अमीर सबको इसकी जरूरत है। विकासशील देशों में बिजली का उत्पादन इतना नहीं होता कि हर किसी की जरूरत को पूरा कर सके। इसलिए बिजली उत्पादन के वैकल्पिक स्त्रोत लगातार ढूंढे जाते हैं।

पानी से बिजली बनती है, कोयले से बनती है, न्यूक्लियर रिएक्टर से बनती है और सूर्य के प्रकाश से भी बनती है। लेकिन वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर जिन्होंने वैदिक विज्ञान के आधार पर आधुनिक जगत की कई बड़ी चुनौतियों को मौलिक रूप से सुलझाने का काम किया है। उनका दावा है कि बादलों में चमकने वाली बिजली को भी आदमी की जरूरत के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

यह कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत है। दुनिया के विकसित देश जैसे अमेरिका, जापान, चीन, फ्रांस आदि तो इस बिजली के दोहन के लिए संगठित भी हो चुके हैं। उनकी संस्था का नाम है ‘इंटरनैशनल कमीशन ऑन एटमॉस्फॉरिक इलैक्ट्रिसिटी’। दुर्भाग्य से भारत इस संगठन का सदस्य नहीें है। अलबत्ता यह बात दूसरी है कि भारत के वैदिक शास्त्रों में इस आकाशीय बिजली को नियंत्रित करने का उल्लेख आता है। देवताओं के राजा इंद्र को इसकी महारत हासिल है। सुनने में यह विचार अटपटा लगेगा। ठीक वैसे ही जैसे आज से सौ वर्ष पहले अगर कोई कहता कि मैं लोहे के जहाज में बैठकर उड़ जाऊंगा! तो दुनिया उसका मजाक उड़ाती। 

पृथ्वी की सतह से 80 कि.मी. ऊपर तक तो हमारा वायुमंडल है। उसके ऊपर 220 कि.मी. का एक अदृश्य गोला पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। जिसे ‘आयनोस्फियर’ कहते हैं। जो ‘आयंस’ से बना हुआ है। इस आयनोस्फियर के कण बिजली से चार्ज होते हैं। उनके और पृथ्वी की सतह के बीच लगातार आकाशीय बिजली का आदान-प्रदान होता रहता है। इस तरह एक ग्लोबल सर्किट काम करता है, जो आंखों से दिखाई नहीं देता लेकिन इतनी बिजली का आदान प्रदान होता है कि पूरी दुनिया की 700 करोड़ आबादी की बिजली की जरूरत बिना खर्च किए पूरी हो सकती है। उपरोक्त अंर्तराष्ट्रीय संस्था का यही उद्देश्य है कि कैसे इस बिजली को मानव की आवश्यकता के लिए प्रयोग किया जाए। 

जब आकाश में बिजली चमकती है, तो यह प्राय: पहले पहाड़ों की चोटियों पर लगातार गिरती है। डा.कपूर बताते हैं कि इस बिजली से 30,000 डिग्री सैंटीग्रेड का तापमान पैदा होता है। जिससे पहाड़ की चोटी खंडित हो जाती है। उपरोक्त अंर्तराष्ट्रीय संस्था ने अभी तक मात्र इतनी सफलता प्राप्त की है कि इस बिजली से वे पहाड़ों के शिखरों को तोड़कर समतल बनाने का काम करने लगे हैं, जो काम अभी तक  डायनामाइट करता था। ऋग्वेद के अनुसार देवराज इंद्र ने शंभर राक्षस के 99 किले इसी बिजली से ध्वस्त किए थे। ऋग्वेद में इंद्र की प्रशंसा में 300 सूक्त हैं। जिनमें इस बिजली के प्रयोग की विधियां बताई गई हैं। 

वेदों के अनुसार इस बिजली को साधारण विज्ञान की मदद से ग्रिड में डालकर उपयोग में लाया जा सकता है। न्यूयॉर्क की मशहूर इमारत एम्पायर एस्टेट बिल्डिंग के शिखर पर जो तडि़चालक लगा है, उस पर पूरे वर्ष में औसतन 300 बार बिजली गिरती है। जिसे लाइटनिंग कंडक्टर के माध्यम से धरती के अंदर पहुंचा दिया जाता है। भारत में भी आपने अनेक भवनों के ऊपर ऐसे तडि़चालक देखे होंगे, जो भवनों को आकाशीय बिजली के गिरने से होने वाले नुक्सान से बचाते हैं। अगर इस बिजली को जमीन के अंदर न ले जाकर एडॉप्टर लगाकर, उसके  पैरामीटर्स बदलकर, उसको ग्रिड में दे दिया जाए तो इसका वितरण मानवीय आवश्यकता के लिए किया जा सकता है। 

मेघालय प्रांत जैसा नाम से ही स्पष्ट है, बादलों का घर है। जहां दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश होती है और सबसे ज्यादा बिजली गिरती है। इन बादलों को वेदों में पर्जन्य बादल कहा जाता है और विज्ञान की भाषा में कुमुलोनिम्बस क्लाऊड कहा जाता है। किसी हवाई जहाज को इस बादल के बीच जाने की अनुमति नहीं होती। क्योंकि ऐसा करने पर पूरा जहाज अग्नि की भेंट चढ़ सकता है। बादल फटना जोकि एक भारी प्राकृतिक आपदा है, जैसी उत्तराखंड में हुई, उसे भी इस विधि से रोका जा सकता है। अगर हिमालय की चोटियों पर ‘इलैक्ट्रिकल कनवर्शन यूनिट’ लगा दिए जाएं और इस तरह पर्जन्य बादलों से प्राप्त बिजली को ग्रिड को दे दिया जाए तो उत्तर भारत की बिजली की आवश्यकता पूरी हो जाएगी और बादल फटने की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा। 

धरती की सतह से 50000 कि.मी. ऊपर धरती का चुम्बकीय आवर्त; ‘मैग्नेटोस्फियर’ समाप्त हो जाता है। इस स्तर पर सूर्य से आने वाली सौर्य हवाओं के विद्युत आवर्त कण; (आयन्स) उत्तरी और दक्षिणी धु्रव से पृथ्वी में प्रवेश करते हैं, जिन्हें अरोरा लाइट्स के नाम से जाना जाता है। इनमें इतनी उर्जा होती है कि अगर उसको भी एक वेव गाइड के माध्यम से इलैक्ट्रिकल कनवर्शन यूनिट लगाकर ग्रिड में दिया जाए तो पूरी दुनिया की बिजली की आवश्यकता पूरी हो सकती है। डा. कपूर सवाल करते हैं कि भारत सरकार का विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय क्यों सोया हुआ है, जबकि हमारे वैदिक ज्ञान का लाभ उठाकर दुनियों के विकसित देश आकाशीय बिजली के प्रयोग करने की तैयारी करने में जुटे हैं।                 

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